मंगलवार, 28 जून 2016

लिखने लगी हैं औरतें












चलो ढूंढें उन्हें
जो कोमल नन्हे हाथो से
मेहँदी लगे हाथो
तरेड़ फटे हाथो से
लिख रहीं है कहीं 
फिर फाड़ रही है
कहीं छुपा रही हैं
किसी स्कूल जाते
बच्चे की बची
कॉपी के खाली पन्नों पर
किसी बही के बचे गत्तो पर
किसी अखबार पर
किसी दिवार पर
और फिर पोंछ देती है
कभी खुद ही
उन लकीरों को पढ़
रो देती है
कभी हंस लेती हैं
और मिटा देती है
ये काले अक्षर
कितना राहत देते है उन्हें
पर डराते भी हैं उन्हें
कि कोई पढ़ लेगा तो
वे फिर मिटा देती हैं
वे नहीं जानती वे
वे इतिहास दर्ज कर रही है
आज के समाज का
आओ खोजे और पढ़े उन्हें
और बताये जहान को
कि उनसे भीतर
अक्षर मिट नहीं रहें है
और उन्होंने अब
वाक्य जोड़ लिए हैं
तुम्हारे वजूद से
बात करने के लिए
सुनीता धारीवाल

चित्र  साभार -gettyimages#google

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