बुधवार, 15 जून 2016

रास्ते












चल तो दूं मैं उन्ही 
रास्तो पे कहीं
जाते तो है मगर
पहुँचते ही नहीं
तुम जो  संग चलो
तो चलूँ फिर वहीँ
लाएं  झोले में भर
यादों की एक डली
ज़िन्दगी कहते हैं जिसे
वो वही थी मिली
थे बंद सब रास्ते
और तुम थी मिली
कैसे क्या हो गया
कैसे मैं खो गया
था तिल्लिसम नया
दिल में है खलबली
जानता तो हूँ मगर
मानता मैं नहीं
तू नहीं है मेरी
हासिल ए महजबीं
याद है वो घड़ी
जब थी तुम यूँ खड़ी
जैसे छावं कोई
तपती राह  पे पड़ी
और  बस एक बार
आओ फिर से चले
रास्तो पे उन्ही
जायेंगे जो मगर
पहुंचेंगे नहीं
आ भी जाओ प्रिय
पलटो तो फिर सही
अब न लौटेंगे हम
रास्तों से उन्ही
जायेंगे जो ज़रूर
पहुंचेंगे नहीं

सुनीता धारीवाल






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