गुरुवार, 2 जून 2016

बस स्वीकार कर लो- कभी कुछ था



अपनाओ मत 
बस स्वीकार कर लो
कभी था कुछ 
तेरे मेरे बीच
जो जिस्मो में भी
जिस्मो से परे था
नजर चुरा कर
तुम्ही तो लगाते हो मोहर
कुछ होने की
अब बस मुझसे
मुकरा नहीं जाता
तुम्हारी तरह
न मैं अपनी रूह से
न जिस्म से नज़र चुरा पाती हूँ
जहाँ आज भी
तेरे निशान सबसे गहरे हैं
हर उस निशान से गहरे
जो तेरे मुकरने पर
बनाये थे मैंने
खरोंच खरोच कर
कि मिटा सकूँ तुम्हे
बस अब और नहीं
अब हिसाब जमाना कर देगा
कुछ इसी जन्म
कुछ अगले जन्म

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