मंगलवार, 28 जून 2016

सिगरेट और औरतें












गौर करना कभी
गावँ में बीड़ी पीती हुई
हुक्की गुड़गुड़ाती हुई
नसवार सूँघती या पान खाती
औरतो की -और शहर में
सिगरेट पीती धुँआ उड़ाती
औरतो की भाव भंगिमाएं
आँखों में चढ़ते उतरते रंग
सब एक जैसे होते है
पर बदल जाती है
तुम्हारी नज़र
संस्कृति और अपसंस्कृति
की परिभाषाएं गढ़ती हुई
तुम्हारी नज़र है कि
शहर वालीओ पर से हटती नहीं है
और तुम उसकी आँखों में
कश पे कश ढूँढने लगते हो

सुनीता धारीवाल

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