बुधवार, 22 नवंबर 2017

जिन रातों की नींन्द गवाई उनका हिसाब बाकी है
तेरे हाथों दवा हकीमी मेरा इलाज बाकी है

शनिवार, 4 नवंबर 2017

तेरे तप से है थोड़ी सी आंच मुझ में
तेरी रौशनी से रौशन है मिजाज मेरा

शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

बेकरारी

आखों से खुद की बिछड़ने नही देता
नजदीक आता है हद से गुजरने नही देता
दूर से जताता है बेकरारी खुद की
ख्वाहिशों के पंख मेरे उगने नही देता

तुम्हारी खामोशी मुझे अच्छी नही लगती हजारो ख्वाब मरते है जब तुम खामोश होते हो

तुम्हारी खामोशी मुझे अच्छी नही लगती
हजारो ख्वाब मरते है जब तुम खामोश होते हो

कटघरे में

वाह रे नसीब
कटघरे में ले आई
नादानियां मेरी
तुम पर भी यूँ
असर करेंगी
सब  कहानियां मेरी

मातम

तुम न रहोगे
तो मातम रहेगा
बस एक की जगह है
इस दिल में मेरे

रेत

अक्सर बिना कसूर
मेरे हाथों से
रेत की तरह फिसले
कई अवसर
कई मित्र कई रिश्ते
और मैं हक्की बक्की
देखती रह गई
खाली हाथ
खुद को दो थप्पड़ मार लिए
और उन्ही हाथो से ताली बजा ली खुद पर
हर बार ठगे जाने की
बारी मेरी आती है
जिंदगी यूँ मेरा साथ निभाती है

तेरे सिरहाने नींद थी मेरे सिरहाने ख़्वाब

तेरे सिरहाने नींद थी
मेरे सिरहाने ख़्वाब
तेरा दिल दुनियादारी
मेरा दिल जज्बात

बरकत

: सुनो..
बड़ी #बरकत है,तेरे इश्क में,
जब से हुआ है,बढता ही जा रहा है ...

मुझ में मैं कहाँ बची हूँ तेरे बिन भी कहाँ जँची  हूँ


मुझ में मैं कहाँ बची हूँ
तेरे बिन भी कहाँ जँची  हूँ

दो पंक्तियां


तेरी खुशबू का पता करती है
मुझ पर एहसान हवा करती

वो जो मैं थी

ये जो
तुम हो
तुम ही बाक़ी हो मुझ मेँ..
वो जो
मैं थी
वो तो मर गई तुम पर.!

कुछ सफर ऐसे होते है


तुम पास बैठे भी दूर
रहते हो मुझ से कितना
लेकिन मैं जानती हूँ
हर दिन पास आ रहे हो तुम
बस एक दिन होश में न रहना तुम
फिर चल देंगे उन रास्तो पर
जो न कहीं जाते है न पहुँचते है
कुछ सफर ऐसे भी होते है

भूगोल

क्या किया अब तक
बस भूगोल ही जांचा
औरत का
नाप ली एक ही झटके में
एक ही नज़र से
सब आगे पीछे ऊंचाई गहराई
माददा नहीं है तुम्हारा 
उसके दिल और दिमाग की
गहराईयों का उत्खनन करने का
तभी तो तुम्हारा इतिहास अधूरा है
और मेरा सब ज्ञान पूरा है
औरत न जान पाओगे
गर भूगोल में घूमने जाओगे
सुनीता धारीवाल

चले आये क्यों

इतना तो जानती हूँ मैं
मुसाफिर हो
कहाँ रुक पाओगे तुम
यूँ ही किसी मोड़ पर
फिर मिल जाओगे तुम
ठोकरों के हवालों से
भला क्या डर जते हम
इतने भर से ही
कहाँ  डगमगाते हम
हम तो प्यार में भी जख्मी 
सरे आम हुए है
जब जिस संग चाहां
वहां बदनाम हुए है
इतने कमजोर नहीं कि
टूटने के खौफ से चटक जाते
हम तो चूर चूर हो
कर भी बन आये है
जाना ही था तो
चले आये क्यूँ
पाना न था तो
खो आये क्यूँ
खुद से डरते हो
या खुदाई से डरते हो
अँधेरे से डरे हो या
परछाई से डरते हो
हम कुचले भी है
छलनी छलनी हम भी है
ये अलग बात है
तेरे लायक हम नहीं है

बुधवार, 1 नवंबर 2017

मुलाकात

सच मे आप से मुलाकात
जिंदगी से मुलाकात होती है
आपका प्यार से देखना मुझे
सबसे बड़ी सौगात होती है
मैं कहीं भी रहूं कही चल दूँ
बस तुम्हारी बात होती है
तुम्हारे संग गुजरे हर  पल
रूमानी आस होती है
तुम्हे पा कर भी बिरहा की
तड़प और प्यास होती है

तू जिंदगी सा लगता है

ए दोस्त
तू मुझे जिंदगी सा लगता है
तेरे मन  का है नूर
जो मेरे चेहरे पर झलकता है
तेरी बातों  में
तेरे  जीवन का तप झलकता है
तेरी नजर ए इनायत से
रोम रोम मेरा महकता है
तेरी आँखों मे सच्चाई
तेरा ईमान चमकता है
इश्किया रूह के कारण  
तेरा चेहरा दमकता है
मुझ से कोई पूछ कर देखे
तू मुझको कितना जंचता है
मैं तेरी हो नही सकती
तू मेरा हो तो सकता है
तू है तो मन मे मेरे
असंख्य  दीपों का  उजाला  है
शक्ति  मेरे भीतर है
प्रेम मेरी ज्वाला है
कोई पूछे  कैसे मैने
अपना यह दिल सम्भाला है

शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

मैं कभी कभी # यात्रा

यह बड़ा असामान्य मानसिक  व्यवहार है मेरा दिमाग एक ही समय मे कई सतहो पर सक्रिय रहता है हर सतह स्वतंत्र काम करती है और तेजी से ।विचार बोध अति सक्रिय होता है conciuos माइंड और subconcious दोनो एक ही समय मे सक्रिय रहते है और sub concious की भी कई परते एक ही समय मे सक्रिय रहती है मैं किसी भी micro सेकंड में इन सब मे खुद को शिफ्ट कर लेती हूं अभी जो संसार मे हो रहा है दिख रहा है उस मे होती हूँ दूसरे पल subconcious की यात्रा शुरू ।न सामने कुछ दिखता है न सुनता है सामने वाले को पता ही नही चलता मैं क्या कह सुन रही हूं हो सकता है मैंने उसकी बात सुनी ही न हो  अनेक बार होता है ।भीतरी तहों में विचरण अच्छा लगता है पास्ट से बात कर रही हूं या किसी कल्पना से बात में मग्न होती हूं पर सामान्य नही होती ।ऐसी हो चुकी हूं मैं
सभी को लगता है मैं ठीक हूँ मस्त हु हो सकता है उसी वक्त मैं किसी पीड़ा भरी लेयर में दर्द से लबरेज महसूस कर रही होती हूँ । हां मगर सब निचली तहों में कहीं भी उत्साह या बहुत खुशी नही कभी महसूस हुई ये सब सिर्फ concious लेयर में ही महसूस होता है ।किसी तह में तो सिर्फ अंधेरा किसी मे खामोशी किसी में जल्दी होती है उम्र पूरी करने की किसी मे मैं यात्रा पर होती हु अजनबी से ब्रह्मांड में ।अजीब सा अनुभव है शायद सभी को यह नही होता होगा ।फाइनली मेरे दिमाग मे कोई लोचा जरूर है बिगाड है कोई ।जितनी भी मैंने श्रेष्ठ रचनाएं या क्रिएटिव काम किये है वो भी इन निचली तहों की देन है

सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

बस ऐसे ही होते है

जो दिल हारे होते है
वो बड़े बेचारे होते है
आंखे से अंधे होते है
कानो से बहरे होते है
न कुछ होश रहता है
न वो बेहोश होते है

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

लम्हो में जी लूँ गिन गिन

बिन तेरे न कटती रातें
बिन तेरे न कटते दिन

न मिलते गर  तुम मुझको
मैं अंतिम सांसें लेती गिन

हर पल तेरी बाट में बीते
बिरहा में तड़पे मेरा मन

कौन घड़ी जब संग नही तुम
मेरे खाली न कोई  पल छिन

तुम अनहोना सा  सपना मेरा
तुमको लम्हों में  जी लूँ  गिन गिन  

तुम रिश्तो का एक कल्प वृक्ष
मैं सत्य बेल लिपटी तुम पर

मैं मृग तृष्णा में ढूंढ रही हूं
मेरे जिंदा होने के चिन्ह

तुम हर रिश्ते के पार मिले हो
नामुमकिन प्रेम  हुआ मुमकिन

मुझको जीना है बस कुछ दिन
सच न जी पाऊंगी अब  तुम बिन

तुम बिन

बिन तेरे न कटती रातें
बिन तेरे न कटते दिन

न मिलते गर  तुम मुझको
मैं अंतिम सांसें लेती गिन

हर पल तेरी बाट में बीते
बिरहा में तड़पे मेरा मन

कौन घड़ी जब संग नही तुम
मेरे खाली न कोई  पल छिन

तुम अनहोना सा  सपना मेरा
तुमको लम्हों में  जी लूँ  गिन गिन  

तुम रिश्तो का एक कल्प वृक्ष
मैं सत्य बेल लिपटी तुम पर

मैं मृग तृष्णा में ढूंढ रही हूं
मेरे जिंदा होने के चिन्ह

तुम हर रिश्ते के पार मिले हो
नामुमकिन प्रेम  हुआ मुमकिन

मुझको जीना है बस कुछ दिन
सच न जी पाऊंगी अब  तुम बिन

बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

रौशन तुम से

देखो न
तुमसे रौशन है
मेरे मन का हर कोना
कितने अंधेरों को
तुम्हारी लौ ने हर लिया है
अब अंधेरे मित्र नही मेरे 
न ही उजाले डराते है
उजले से ही  तुम हो
उजाला मुझे दिखाते हो
कुछ हौंसला सा मुझ में
फुलझड़ियों सा मुस्काता है
दीपमाला की चांदनी में 
मुझे तेरा पता मिल जाता है
तुम  ने मेरे तन मन भीतर
दीवाली सी रच डाली है

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

तुम दिया माटी


इस दीवाली मैं तुम्हे
माटी के दिये की नर्म  लौ
और मद्धम  सी आँच में ढूंढूंगी
और तुम मुझे जलती झुलसती
बाती में ढूंढना
मै मिटूंगी  राख हो जाउंगी
  और तुम माटी रहोगे 
और फिर से  कोई बाती
तुम्हे अपनाएगी और
रौशनी बिखेर जाएगी

सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

तुम थोड़े थोड़े से मेरे

यूँ ही बड़े दिनों बाद :

तुम थोड़े थोड़े से मेरे
मैं सारी की सारी तेरी

मैं  कतरा कतरा सी तुम में 
और तुम पूरे के पूरे मुझ में

तुम तिनका तिनका से उलझे
मैं उलझन की बगिया सारी

तुम हो धरती पर पैर टिकाए
मैं तो नभ में हूँ पंख फैलाये

तुम  सच हो मेरे जीवन का
मैं झूट भी नही तेरे मन का

तुम श्वास  हो मेरा आते जाते हो
मैं धड़कन सी रहूं नाचती तुम में

तुम कोई नही बस  कल्पना हो मेरी
मैं तो  हूँ तो हकीकत मेरा न कोई

सुनीता

रविवार, 3 सितंबर 2017

परिणीति


मैं रोती कहाँ हूँ
ये अलग बात है 
आजकल आंखों में
हर ख्वाब तुम्हारा होता है
और सच का धरातल
धूल के कण की तरह
आंखों में रड़कता है
और रहती है
नींदे उड़ी उड़ी सी।
मेरी बेबसी का आंनद
लेती है मेरी ही नज़र
इस फलसफे में
कुछ नही रखा बस
इतना याद है
कि तुम जीने की वजह हो
और मैं त बॉवली
परिणीति की बाट में हूँ

पलके मेरी

पलको तले
दफन होते है
बहुत से ख्वाब
तुम सामने आते हो
तो बह निकलते है

भारी बहुत हो गई
है पलके मेरी 
तेरे सपनो के बोझ में
नींदें दब गई है कहीं
अब नही आती वक्त बेवक्त

शनिवार, 2 सितंबर 2017

दुआ में मेरी असर हो

काश दुआ में मेरी असर हो
हर लम्हा तेरे संग बसर हो
जी तो लुंगी यूँ भी दूर से
तेरी बस मुझ पर नजर हो
जब रुखसत हो जाऊं जग से
सबसे पहले तुम्हे खबर हो

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

बहनों के सोलह श्रृंगार @ ये कीजिये आप

1 सपना देखिए #खुद के भविष्य का #कल्पनाएं कीजिये
2 जो लक्ष्य चुना है या जो सपना देखा है उसको पूरा करने के स्वयं का विकास करें # स्वय की क्षमता को बढ़ाइए#  सीखिए#  जानकारी हासिल कीजिये#  लक्ष्य का पीछा कीजिये # खुद पर मेहनत कीजिये # निरंतर अपडेट कीजिये अपनी क्षमता और ज्ञान को
3 सकारात्मक सोच बनाये रखिये #चाहे परिस्तिथि कैसी भी हो ।नितांत अकेले भी पड़ जाओ # चाहे  विपरीत परिस्थितियों से घिर जाओ ।पर साहस न कम होने दे

4 सभी को सुनिए पर हर बात खुद अनुभव करें
जीवन मे worst के लिए भी तैयार रहिये ।अच्छे और बुरे दोनो तरह के अनुभव स्वयं कीजिये ।अच्छे अनुभव है तो बुरे भी आप को की अनुभव जरूर करने है
5 साहस बहुत जरूरी है समाज की प्रयोगशाला में ।चुनौतियां स्वीकारें
6 चरित्रहीनता के दोष आरोपण को देह और दिमाग पर अलंकरण की तरह स्वीकारें।और सुन कर खुश रहें
ऐसी बातों को बहुत हल्के में लेना सीख लें और आनन्द लें
7 परिश्रम से कभी न चूकें अपने काम मे लगे रहें निरंतर ।
8 बार बार गिरें भी और खड़े  भी होते रहे पर चलायमान रहें प्रयास करना न छोड़े कभी
9 जरुरी नही कि हर कोई आपको समझे ठीक उसी तरह जैसे आप खुद को समझती है या अपने बारे में औरो को  समझाना चाहती है
10 नकारात्मक लोगों से दूरी भी बनाइये और चुप्पी भी बनाइये
11 जिंदगी दोबारा नही मिलेगी सभी से प्रेम जी भर कर कीजिये बिना किसी अपेक्षा से
12 खुद पर विश्वास कीजिये लोग आप पर विश्वास करेंगे ।
13 अपने फैसले खुद करें खुद का चिंतन करें अपनी सोच को पराधीन न होने दे
14 आज में जियें वर्तमान में बस ।आज तक भी  आपके सोचने से कुछ नही हुआ है सब  आपके करने से हुआ है आगे भी होगा ।आज में विश्वास रखें ।

15 खुद से प्रेम करें # स्वाभिमान अनुभव करें # भावुक क्षणों में बड़े फैसले न करें टाल दें ।स्नेह बंधनो की पराकाष्ठा में भी बुध्दि को सतर्क रखने का प्रयास करें

16 सक्रिय रहें मानसिक और शारीरिक रूप से भी ।नारी के सब नैसर्गिक गुण भाव अनुभव करें ।जो  मन आये वो करें अपनी सीमा स्वयं तय करें

सोमवार, 14 अगस्त 2017

यार तू वतन सा लगता है

ए यार मेरे तू वतन सा लगता है
मर जाऊँ और मिट जाऊँ
तेरा बाल भी बाँका न होने दूँ
तेरी मैं  सरहद बन जाऊं

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

दूरी

दूरी है शहर की
दूरी है उम्र की
दूरी है परिवेश की
दूरी है सोच की
दूरी है लग्न की
दूरी भी है अग्न की
दूरी है कद की
दूरी है चाहने की हद की
दूरी है भाषा की
दूरी है आशा की
दूरी है चाह की
दूरी अलग अलग राह की
फिर भी दो कदम ही सही
चलो चल के देखें तो सही
ज़िन्दगी रोमांच सी लगेगी
बाकि मुक्क़दर ही सही
दूरी इतनी भी नहीं कि नपेगी नहीं

पंजाबी टप्पे लोक गीत


हाथ जोड़ा ए पखियाँ दा
वे इक वार तक सोहनेया
की जांदा ए अखियाँ दा

दो कारा बजार आइयाँ
झिडक न देयीं सोहनया
अखां करण दीदार आइया

मुल्तान नू राह जांदा
मौत दा नाम बनदा
गम सजना दा खा जांदा
चलो टप्पे सुनो

कोठे ते खलो माहिया
चन्न भावें चढ़े न चढे मैनु तेरी लो माहिया

भठियाँ तो भुना दाणे
दिल विच तू वस्दा
तेरे दिल दिया रब्ब जाणे

कोठे ते खेसी ऐ
इक सानू तू मरिया
दूजा जग परदेसी है

टेशन दिया तो लाइना
तू ते सानू छड्ड वे गया
हुन जी के की लेना

तैनू मिलने दा चाह माहिया
कर के बहाना कोई
घर साडे तू आ माहिया

दावा इश्के दा करना ऐ
किहो जेहा आशिक ऐं
दुनिया तो डरना ऐं

रांझे इश्क़ निभाया सी
कन्न पड़वा के ओ
जोगी बन आया सी

झोली सदरा दी भर लांगे
आ मिल मेले ते
गल्ला रज्ज के कर लांगे

गलां भोलियाँ करना ऐ
तेरे लड़ की लगना
तू ते लगियां तो डरना ऐं
कोई सोने का किल माहिया
: हाथ जोड़ा ए पखियाँ दा
वे इक वार तक सोहनेया
की जांदा ए अखियाँ दा

दो कारा बजार आइयाँ
झिडक न देयीं सोहनया
अखां करण दीदार आइया

मुल्तान नू राह जांदा
मौत दा नाम बनदा
गम सजना दा खा जांदा

कोई कतनी आं रू माहिया
इक चंगा तू लगदा
दूजा फेर वि तू माहिया

मीट्टी चढ़ गई ए टैरा
सजन मना लेना
हाथ रख के पैराँ ते

कोई चिमटा आग जोगा
न सानू आप राखिया ई
न रखिया ही जग जोगा

गुलाब दे फुल ले ले
जे रब्ब तौफीक देवे
बन्दा सजना नू मुल्ल ले ले

कोई सोने का किल माहिया
जात न रलदी चन्ना
रल जांदे ने दिल माहिया

कोई सोने का किल माहिया
लोका दिया रोण अखियाँ
साडा रोंदा ए दिल महियाँ

काली जूती गोरा पैर होवे
सज्जी आख फडकदी ए
साडे सजना दी खैर होवे

छापड़ी च अम्ब तिरदा
एस जुदाई नालो
रब्ब पैदा ही न करदा

तकड़ी वि तुल गई ए
सजना ने आवाज मारी
जुत्ती पौनी वी भूल गयी ए

कबूतर लाइ बाजी
जिहदे पीछे मैं रुल गई
ओह बोल के नहीं राजी
आँख खुलते ही याद आ जाता है तेरा चेहरा....
दिन की ये पहली खुशी भी कमाल होती है...!!!

दूरी

दूरी है शहर की
दूरी है उम्र की
दूरी है परिवेश की
दूरी है सोच की
दूरी है लग्न की
दूरी भी है अग्न की
दूरी है कद की
दूरी है चाहने की हद की
दूरी है भाषा की
दूरी है आशा की
दूरी है चाह की
दूरी अलग अलग राह की
फिर भी दो कदम ही सही
चलो चल के देखें तो सही
ज़िन्दगी रोमांच सी लगेगी
बाकि मुक्क़दर ही सही
दूरी इतनी भी नहीं कि नपेगी नहीं

शनिवार, 8 जुलाई 2017

*बुल्ला कि जाणां मैं कौन....?*

ना मैं मोमिन विच मसीताँ-1
ना मैं विच कुफ्र दियां रीताँ-2
ना मैं पाकां विच पलीताँ-3
ना मैं अन्दर वेद किताबाँ-4
ना मैं रहदाँ भंग शराबाँ-5
ना मैं रिंदाँ मस्त खराबाँ-6
ना मैं शादी ना ग़मनाकी-7
ना मैं विच पलीति पाकी-8
ना मैं आबी ना मैं खाकी-9
ना मैं आतिश ना मैं पौण-10

1- ना मेरी मस्जिद में आस्था है।
2- ना व्यर्थ की पूजा पद्धतियों में।
3- ना मैं शुद्ध हूँ ना मैं अशुद्ध।
4- मैं नहीं वेदों और धर्मग्रंथों में हूं।
5- ना ही मुझे भांग या शराब की लत है।
6- ना ही शराब सा मतवालापन।
7- ना तुम मुझे पूर्णतः स्वच्छ मानो।
8- ना ही गंदगी से भरा हुआ।
9- ना जल, ना थल
10- ना अग्नि, ना वायु

*बुल्ला कि जाणां मैं कौन.....?*

ना मैं अरबी ना लहोरी-1
ना मैं हिन्दी शहर नगौरी-2
ना हिन्दु ना तुर्क पेशावरी-3
ना मैं भेद मज़हब दा पाया-4
ना मैं आदम हव्वा जाया-5
ना मैं अपणा नाम कराया-6
आव्वल आखिर आप नूँ जाणां-7
ना कोइ दूजा होर पहचाणां-8
मैं थों होर न कोई सियाणा-9
बुल्ला शाह खडा है कौण-10

1- ना मैं अरब का हूँ, ना लाहौर का।
2- ना नगौर मेरा शहर है, ना मैं हिंदभाषी हूं।
3- ना तो मैं हिंदू हूँ, ना पेशावरी तुर्क।
4- ना मुझे धर्मों का ज्ञान है।
5- ना मैं दावा करता हूँ कि मैं आदम और हव्वा की संतान हूँ।
6- ये जो मेरा नाम है वो ले कर इस दुनिया में मैं नहीं आया।
7- मैं पहला था, मैं ही आखिरी हूँ।
8- ना मैंने किसी और को जाना है, ना मुझे ये जानने की जरूरत है।
9- गर अपने होने का सत्य पहचान लूँ....
10- तो फिर मुझ सा बुद्धिमान और कौन होगा....?

*बुल्ला कि जाणां मैं कौन.....?*

ना मैं मूसा न फरौन-1
ना मैं जागन ना विच सौण-2
ना मैं आतिश ना मैं पौण-3
ना मैं रहदां विच नादौण-4
ना मैं बैठां ना विच भौण-5
बुल्ला शाह खडा है कौण-6
बुल्ला कि जाणां मैं कौन

1- ना तो मैं मूसा हूँ और ना ही फराओ।
2- ना मैं जाग रहा हूं, ना ही निंद्रा में हूं।
3- ना तो मैं आग में हूं, ना ही हवा में।
4- ना मैं ठहरा हूं, ना ही लगातार चल रहा हूं।
5- मैं बुल्ले शाह आज तक अपने अक्स की तालाश में हूँ।
6- मैं नहीं जानता हूं मैं कौन हूं .....?

मेरे दोस्त प्रकाश के whatsapp message से

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

रेगिस्तान

काश तुम देख पाते
मेरे भीतर का रेगिस्तान
महसूस कर पाते
तपती रेत की आंच
कितना जलाती है
तन के साथ रूह भी
दावानल हो जाती है
फिर  कुछ नही बचता
स्याह राख के सिवाय
सुलगती है माटी मेरी
उकेरे जाने को तरसती
तेरे जल से बुझने को भटकती
बस स्याह हुई जाती है

रविवार, 25 जून 2017

अच्छा लगता है

लेखिका ना मालूम

*जिस औरत ने भी इसे लिखा है कमाल लिखा है*
___________________________________
*मुझे अच्छा लगता है मर्द से मुकाबला ना करना और उस से एक दर्जा कमज़ोर रहना -*

*मुझे अच्छा लगता है जब कहीं बाहर जाते हुए वह मुझ से कहता है "रुको! मैं तुम्हे ले जाता हूँ या मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ "*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझ से एक कदम आगे चलता है - गैर महफूज़ और खतरनाक रास्ते पर उसके पीछे पीछे उसके छोड़े हुए क़दमों के निशान पर चलते हुए एहसास होता है उसे मेरा ख्याल खुद से ज्यादा है*

*मुझे अच्छा लगता है जब गहराई से ऊपर चढ़ते और ऊंचाई से ढलान की तरफ जाते हुए वह मुड़ मुड़ कर मुझे चढ़ने और उतरने में मदद देने के लिए बार बार अपना हाथ बढ़ाता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब किसी सफर पर जाते और वापस आते हुए सामान का सारा बोझ वह अपने दोनों कंधों और सर पर बिना हिचक  किये खुद ही बढ़ कर उठा लेता है - और अक्सर वज़नी चीजों को दूसरी जगह रखते  वक़्त उसका यह कहना कि "तुम छोड़ दो यह मेरा काम है "-*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मेरी वजह से सर्द मौसम में सवारी गाड़ी का इंतज़ार करने के लिए खुद स्टेशन पे इंतजार  करता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे ज़रूरत की हर चीज़ घर पर ही मुहैय्या कर देता है ताकि मुझे घर की जिम्मेदारियों के साथ साथ बाहर जाने की दिक़्क़त ना उठानी पड़े और लोगों के नामुनासिब रावैय्यों का सामना ना करना पड़े-*

*मुझे बहोत अच्छा लगता है जब रात की खनकी में मेरे साथ आसमान पर तारे गिनते हुए वह मुझे ठंड लग जाने के डर से अपना कोट उतार कर मेरे कन्धों पर डाल देता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे मेरे सारे गम आंसुओं में बहाने के लिए अपना मज़बूत कंधा पेश करता है और हर कदम पर अपने साथ होने का यकीन दिलाता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह खराब  हालात में मुझे अपनी जिम्मेदारी  मान कर सहारा  देने केलिए मेरे आगे ढाल की तरह खड़ा हो जाता है और कहता है " डरो मत मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा"* -

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे गैर नज़रों से महफूज़ रहने के लिए समझाया  करता है और अपना हक जताते हुए कहता है कि "तुम सिर्फ मेरी हो "* -

*लेकिन अफसोस हम में से अक्सर लड़कियां इन तमाम खुशगवार अहसास को महज मर्द से बराबरी का मुकाबला करने की वजह से खो देती हैं फिर* ۔۔۔۔۔۔۔۔

good morning....sir ji

बुधवार, 14 जून 2017

कहाँ छुपे हो

कहाँ छुपे हो सीने में
तो सांसे भारी रहती है

आंखों में रहते हो तो
पलके भारी रहती है

ख्वाबो में तुम रहते हो तो
नींदे भारी रहती है

दिल मे तुम रहते हो तो
हर धड़कन बेचारी रहती है

तुम रहते हो जहन में धंसे हुए
मेरी मति मारी रहती  है

बस पा लूँ तुम्हे पाने की तरह
मेरी यहीं  गरारी रहती है

सुनीता धारीवाल

मंगलवार, 13 जून 2017

प्यास

मन की सूखी धरती पर
मैंने प्यास बिछा दी है

तुम बरसो तो तब जानूं
मैंने तो जान लगा दी है

बादल तुम और धरती मैं
जलधर को मैंने  सदा दी है

मैं सूखी माटी फट बैठी हूँ
मैं आस तेरी में डट बैठी हूँ

सब  जल थल हो जाना चाहूँ मैं
कर  सृजन नया इतराऊं मैं

तुम दूर गगन में उड़ते हो
बस हवा से बाते करते हो

मेरा मौन चीख कर  बुलाता है
तुम्हे सृष्टि रचना में लगाता है

चहुँ ओर प्यास ही बिछा दी है
तेरे रिसने को जगह बना दी है

ओ बरसो मेरे तन मन पर
मैंने सावन को पुकार लगा दी है

सुनीता धारीवाल





रविवार, 28 मई 2017

मान क्यों नही जाते तुम

तुम मान क्यों नही जाते
तुम भी मुझको जीते हो

मेरा इंतज़ार करते हो
मुझ से बातें करते हो

क्यूँ  मेरा  मन पढ़ते हो
महसूस मुझे करते हो

मेरे लिए कभी जगते हो
कभी नींद झटक उठते हो

तुम मान क्यों नही लेते
आंखे तुम ने भी पढ़ी है ।

तुम ने दस्तक सुन ली है
ये द्वार तुम्ही ने खोला है

आसन भी तुम्ही ने दिया है
दिल ने महफ़िल चुन ली है

तुम मान क्यों नहों जाते
ये इकतरफा गली नही है

मानो तो पाप नहीं है
मानो तो सजा बड़ी है

इतने तंगदिल तुम न हो
जितना तुम कह देते हो

मानो न मानो सजना
तुम प्यार मुझे करते हो

मैंने टुकड़ो में मांगा था
तुम टुकड़ा ही देते हो

बेनाम शहर में घर मेरा है
मेरा पता तुम ही को पता है ।

मैं प्रेम कर बैठी तुमसे
मेरी बस यही खता है ।

तुम रोको न खुद को
नियति एक दिन रोकेगी ।

तब सब कुछ रुक जाएगा
तुम चाहोगे तब भी  न होगा

वक्त पर भी कुछ छोड़ो तुम
कुछ दिल की भी  मानो तुम

मत बहकाओ खुद को
बस मान जाओ तुम

दूर गगन के

तुम बादल किसी दूर गगन के
तुम से न बरसा जाएगा

मै तपती धरती मारू थल
तुम से न सींचा जाएगा

मैंने देखा तुम्हे  पुकार लिया
तुम से तो रुका न जाएगा

तुम झुके जरा जरा थोड़े थोड़े
पर तुम से बरसा न जाएगा

तुम रख लो अपना जल भीतर
आंखों से बह मुझ तक आएगा

चलो कोशिश करो न बरसोगे
एक दिन मुझको भी तरसोगे

मैं नहीं मिलूंगी उस सेहरा में
मैं मृग मारीचिका सी छल जाउंगी

तुम जल भर कर जब भी गुजरोगे
मैं पानी पानी हो जाउंगी

सुनीता धारीवाल

फरिश्ते

मन्नतों का कोई धागा
न बना है मेरे लिए
न कोई पेड़ बाकी है
न कोई टहनी ऐसी है
जहाँ बेनाम रिश्तो की
दुआएं मांगी जाती हों ।

न कोई पीर की चादर
बनी है वास्ते मेरे
न कोई मजार बाकी है
जहां सदका उतरता हो
बेनामी पाक रिश्तो का

न कोई मंदिर है मस्जिद है
न कोई  अजान न घंटी है
जो शोरोगुल में कह पाए
जो  कुछ बेनाम रिश्ते है
वो दुनिया के फरिश्ते हैं ।

न कोई  पंच न पंचायत ।
न  कोई थाना न कचहरी है
जहां दरख्वास्त भेजूं मैं
सजा खुद मांग लूँ अपनी
कि हर गलती भी मेरी है

न कोई दवा न दवाखाना
जहां  बेनामी दर्द और रिश्ते
रिसते हो और सिसकते हो
उन्हें कुछ बाम मिलता हो

न कोई है  मधु न मधुशाला
जहां कोई भूल पाता हो
नशा सर चढ़ कर बोला था
वो सर से उतरा जाता हो

न कोई मदरसा  न पाठशाला
जो रिश्तो के कायदे बताती हों
बे रिश्तों में रहूं कैसे जियूँ कैसे
मरना न मुझको जीना आया है

बता कोई तो जगह होगी
जहां पर वो फरियादी हो
जिनका रूहों से मिलना हो
जिनकी रूहानी शादी हो

सुनीता धारीवाल

शनिवार, 27 मई 2017

लहर

लहरों का मुक्कदर देखो
समंदर में ही  रह
किनारों से सर पटकती है
मैं जैसे लहर तुम में रहूं भी
और अपना सर पटकूं भी
किनारों से न अलग हो पाऊं ।

लहर को लहर रखता है
हवा का कहर रखता है
तू कितना गहरा समुन्द्र है
ज्वार में  फर्क रखता है

शुक्रवार, 26 मई 2017

कैसे मन  की परिभाषा में
तन की अभिलाषा दम तोड़ी

मैं इतनी भी खुदगर्ज नही
जा तेरी ही आशा छोड़ी

तन माटी और मन सोना सही 
माटी का मोल बस दो कौड़ी

तन रूहों का ही घर होता है
रब्ब ने ये जगह नही  छोड़ी

न गलत कोई न सही कोई
होता है वही जो होगा सही

क्यों तुमको मन समझाना है
क्यूँ सिद्धांतो को  सरकाना है

मैं कुछ दिन की ही हूँ तड़प बड़ी
मैंने खुद ब खुद आगे बढ़ जाना है 

क्यूँ नाहक चिंता तुम करते हो
चिंतन तो मेरा तराना है

मैं बाट  मुसाफिर थकी हुई
तुमको देखा तो प्यास लगी

सागर में रहती हूँ उथल पुथल
तुम मीठा झरना  मैं  बहक गई

तुम रहो मगन अपने तन मन में
क्यूँ मैंने तुमको भरमाना है

मैं कारावास आदि नहीं
मैंने तोड़ जंजीरें जाना है

चलते जाना ही जीवन है
रुकना तो बस मर जाना है