वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
रविवार, 3 सितंबर 2017
पलके मेरी
पलको तले
दफन होते है
बहुत से ख्वाब
तुम सामने आते हो
तो बह निकलते है
भारी बहुत हो गई
है पलके मेरी
तेरे सपनो के बोझ में
नींदें दब गई है कहीं
अब नही आती वक्त बेवक्त
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें