बुधवार, 20 नवंबर 2019

कोई अनजान मुझे अपना सा लगा है 
उसके संग एक नया  सपना सा सजा है
 
खोया था जो बरसों पहले सपनो से 
आज वही सपना मेरा फूलों से लदा है

बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

नीड़

किस नीड़ से भला 
कहाँ रुके है 
पर निकले परिंदे 
नीड़ का मुहाना ही 
बनता है 
पहला मंच 
जहां से उड़ा जाता है
और बैया 
बस देखती है 
वह आखेट 
और तन्द्रा तोड़ 
ताकती है फिर 
नर बैया की और 
ताकि फिर से बना सके 
एक और लांच पैड 
कुछ नए परिन्दों के 
आखेट के लिए 
और वह यूँ ही 
दोहराती रहती है 
सिलाई 
धागा पर धागा
सुनीता धारीवाल

शनिवार, 17 अगस्त 2019

बहुत मजबूत डोर से बंधा
भाई मेरा
भोगौलिक दूरी पर
आज मुझे ताकता है
और पा लेता है
आती जाती ध्वनियों में
तरंगो में
और हम बात भी करते है
बिना कुछ कहे सुने
अति सूक्षम कुछ अहसास
हम करते है
बिना कलाई को छुए
और बिना किसी धागे
और मनाते है साल दर साल
यूँ ही खूबसूरत सा
बिना औपचारिकता
रक्षा बंधन
जानती हूँ वो प्राण है
मैं देह।। निसंदेह

शनिवार, 3 अगस्त 2019

एक थी भूली

…भूली ….

भूली नाम था उस अल्हड़ सी लड़की का जो आज तक नही भूली । घर का नाम था उसका भूली और स्कूल का नाम निर्मला ।उसे अपने दोनों नाम पसंद नही थे।वह निर्मल कहलाना पसंद करती थी निर्मला की जगह ।भूली नाम इसलिए था कि माता पिता ने कहा कि दो बेटों और एक बेटी होने के बाद यह चौथी सन्तान तो भूलवश आ गई ।तभी से उसकी नाम भूली हो गया और लहजे याद करूँ तो उसे पूहली बुलाते थे सब ।और मुझ से वह बिल्कुल अपेक्षा नही करती थी कि मैं भी उसे पूली कहूँ ।मैं उसे निर्मल ही पुकारती ।उस से मेरी पहली मुलाकात हुई 21 अप्रैल 1985 को चंडीगढ़ में वह मेरी बारात में आई चन्द युवतियों में से एक थी गुलाबी रंग का सूट पहने  बालों की चोटियों में प्लास्टिक के फूल सजाये मुस्करा रही थी ।उस ने मेरे साथ फोटो खिंचवाई थी अन्य युवतियों के साथ ।तभी मेरी चाची की आवाज आई थी वह किसी को बता रही थी कि यह लड़की हमारी  बेबी की ननद है तब मैंने उसे एक बारगी ध्यान से देखा था ।बड़ी बड़ी आंखे गोरा और कसा बदन एक कस्बाई लड़की थी वह न ग्रामीण न ही शहरी बीच बीच का सा लुक था उसका ।फोटो के बाद   वह वहां से  चली गई शर्माती हुई  सी अन्य युवतियों के साथ ।फिर मेरी अगली मुलाकात उस से ससुराल के घर खनौरी में हुई वो मेरे इर्द गिर्द रहती ।वह मेरी तस्वीर अपने स्कूल के बस्ते में किताबो में रखती थी ।उस ने मेरी तसवीर अपने स्कूल की सब सहेलियों को दिखाई थी और उन सब में भी उत्सुकता पैदा कर रखी थी मूझे देखने की ।वह स्कूल जाती छुट्टी के समय आते एक दो लड़कियां उसके साथ  मुझे देखने आती ।
उसे घर आने की जल्दी होती ।वह मेरे अंग संग रहती हमेशा मेरे साथ रहती।मुझ से कभी यह साड़ी कभी वह सूट पहनने का आग्रह करती मेरा शृंगार करती मुझे टकटकी लगा कर देखती रहती । मैं उस की ओर देखती तो मुस्कुरा देती ।
कहीं भी नई दुल्हन का चाय पानी होता साथ जाती ।बाजार ले जाती ।वह अपने लड़कियों के समाज मे  अपनी भाभी के बहुत ख़ूबसूरत होने का सिक्का जमाती ।आस पास की कुनबे की औरतो ने उस का नाम रख दिया था पोटिया । जैसे दूल्हे की घोड़ी पर एक  लड़का  बैठा देते हैं वह पोटिया या दुल्हन के साथ कोई छोटा आ जाये वह पोटिया ।वह साथ साथ रहता है पर कुछ करता नही ।आवश्यक साथी यानी पोटिया ।मुझे अपना पोटिया बहुत पसंद था क्योंकि बाकी जन की बाते मुझे कम समझ आती थी मेरा पोटिया दुभषिये का काम करता थ ।मेरे लिए उसकी उपयोगिता  बहुत थी ।ठेठ हरियाणवी बोली के मुहावरों लहजो और भाव प्रदर्शन के शब्द या निःशब्द हूँगारे वही मुझे समझाती थी मुझे क्या कहा जा रहा है ।पंजाब के संगरूर जिले का छोटा सा कस्बा जो गांव से बस कुछ थोड़ा बड़ा था । यह क्षेत्र हरियाणा के उन 25 गांव का है जिसे हरियाणा पंजाब जिलो की तकसीम में पंजाब के हवाले कर दिया गया था ।इन आस पास के गांवों की माँ बोली लहजा तो हरियाणवी था परंतु स्कूल में सब पंजाबी पढ़ते थे ।और मेरी मां बोली तो पंजाबी थी पर पिता के हरियाणा से और दादी के हरियाणवी होने से मुझे हरियाणवी भी समझ आती थी ।वहां पर ठेठ हरियाणवी चल रही थी ।दादी सास से ले कर सबसे छोटी चाची सास और कुनबे की सब स्त्रियं हरियाणा के जींद कैथल के आस पास के क्षेत्रों से ही थी तो पंजाब के उस टुकड़े पर हरियाणवी का बोलबाला था ।मेरा जन्म तो चंडीगढ़ में हुआ और शिक्षा भी जितनी हुई वह यहीं चंडीगढ़ से थी ।भूली के लिए इतराने की एक  वजह यह भी थी कि उसको खूबसूरत भूरी आंखों वाली भाभी बड़े तहजीब के साफ सुंदर शहर चंडीगढ़ से थी ।मेरा चंडीगढ़ से होना उसकी  सहेलियों में उसकी सत्ता स्थापित कर देता था ।
कुनबे की सबसे पहली बहु थी मैं तो सभी बच्चों को भाभी कहने का बहुत चाव होता था ।नीचे कमरे में दोपहर को कुछ आराम करने को यदि मै लेट जाती थी तो बच्चे खिड़की में झांकते और जोर से भाभी कह कर भाग जाते ।फिर आ जाते ।सारी दोपहर मेरी उठक बैठक होती रहती ।फिर एक दिन वह डंडा ले कर खिड़की पर बैठ गई।आओ जरा अब देखती हूँ कौन कौन भाभी कहने आता है ।वह हर दोपहर खिड़की पर बैठ जाती और सो जाती वहीं वह अपना स्कूल का होम वर्क करती ।
एक दिन मैं छत पर कपड़े सूखा रही थी तो नीचे से सासु माँ ने आवाज लगाई ' ऐ बहुत कापण ढक दिए .मेरे लिए कापण शब्द नया था मुझे आस पास कुछ दिखाई नही दिया कि क्या ढ़कूँ ।नीचे भूली गली में स्टापू खेल रही थी मैंने उसको आवाज लगाई कि ये कापण क्या है मम्मी कुछ बोल रही है ढकने को।उस ने ज्यूँ हंसना शुरू किया कि बंद नही हुई बावरी हो गई सभी को बताने लगी भाभी नै कापण का कोनी बेरा भाभी ने कापण का कोनी बेरा
।सारे कुनबे को पता चल गया कि मुझे कापण का नही पता ।हंसते हंसते ऊपर आई और मिट्टी के हारे का मिट्टी का बना ढक्कन ढक दिया उस मे दाल पकने को रखी थी ।तब मुझे पता चला यह कया था पर मेरे चेहरे की हवाईयां उड़ रही थी उस की हंसी से ।मुझे किसी भी शब्द का अर्थ नही पता होता तो मेरे दो ही खेवनहार थे मेरे पति और भूली ।
वह अपनी स्कूल की अन्य सहेलियों के साथ बड़ी बढ़िया पंजाबी बोलती था पर परिवार में आ कर झेंप जाती
आखिर वहां पर पढ़ाई का माध्यम तो पंजाबी ही था इसलिए उसे पंजाबी भी बखूबी बोलनी आती थी ।
वह मुझ से कुकिंग में नए व्यजन सीखती हर दोपहर हम किताबे पढ़ पढ़ नए डिश बनाना सीखते ।यकीन मानो हम दोनों ने एक महीने में एक पीपा घी का निबटा दिया था
वह मुझ से बस तीन वर्ष ही छोटी थी ।मेरी उम्र भी कच्ची थी और उसका संग सहेली जैसा था ।कुछ महीनों बाद मेरे पति की नौकरी लग गई और पंचकूला पोस्टिंग आ गई ।अब मुझे उस आँगन को छोड़ना था और पति के साथ खुद का आशियाना बनाना था ।
मेरे और पति के वहां से अलग घर बनाना उसको पीड़ा दे गया था
अगर मैं सुविधाएं और भविष्य देखूं तो उस कस्बे में कुछ नही था और यदि घर और प्रेम देखूं तो वहां सब कुछ था ।मेरा जी भर भर के आता था ।ससुर जी ने स्वयं ट्रक की व्यवस्था की और मेरा देहज का सब सामन ट्रक में चढ़ने लगा ।जब मेरी सास ने मेरे दहेज की स्टील की नमकदानी से मसाले निकाल कर दोबारा लकड़ी की नमकदानी में उड़ेलने शुरू किए तो मेरा मन टूट गया और इतना पिघला कि मैं फुट फुट सास के गले लग कर रोई
सास ने जो आवश्यक सामान मेरे दहेज में नही था वह भी इक्क्ठा किया चकला बेलन तवा बाल्टी मग आदि सब दिया ।फ्रिज से सब सामाम निकाला और फ्रिज भी ट्रक में आ गया ।आज मुझे समझ आता है यह सब देखते ही मैं इतना द्रवित हुई थी तो मैंने उनको ऐसा करने से रोका क्यों नही ।पति एक बार कहा था मम्मी रहने दो पर सास ने कहा कि बहु को इन सुविधाओं की आदत है उस से नही रहा जाएगा ।अभी तुम्हारी गृहस्थी नई है और कहां खरीद पाओगे हम ही और ले लेंगे।मेरी सास की उदारता ने एक भी चमच्च नही रखा और बाकी जरूरत का सामान अपने हाथो से जोड़ कर दे दिया ।मेरी आत्मा उस स्त्री के आगे नतमस्त हुई
जहां मुझे उनके छोड़ने का गम था वहीं कहीं भीतर अपने घर का सपना भी कुलांचे भर रहा था । घर का माहौल गमगीन था सब को रोना आ रहा था और मेरी तो हालत रो रो कर खराब बिल्कुल वैसे जैसे माँ के घर से विदा होते रोई थी यूँ ही उस दिन रोई थी ।भूली चुपचाप मां का हाथ बटाते देख रही थी
सास मां ने एक महीने भर का राशन घर का देसी घी वहीं से बांध दिया ।भूली ने सब पैक किया ।उसके सब्र का भी बाँध टूट गया वह भीतर कमरे में रो कर आई ।फिर जाते हुए मुझ से गले मिली और रोई ।
मुझे वहां से आते आते  गाड़ी में सब आंखों के आगे फ़िल्म की तरह चलने लगा ।भूली का मुझे चुडिया दिलवा के लाना ,नलके से पानी भरने में मदद करना ,घास काटने की मशीन पर गारे लगवाना .।रस्सी कूदना , पिछली बगीची में साइकल चलाना , सास द्वारा मुझे बार बार काला टीका लगाया जाना ससुर की द्वारा मेरे सर पर हाथ रखना मेरी प्रसंशा करना ,सड़क पर पंचकूला शहर के मील पत्थर पर नजर पड़ी तो मन खुद ब खुद पलट कर नए घर मे कहाँ सोफे लगेंगे कहाँ डाइनिंग टेबल यह सब सोचने लगा और  हम अपने घर मे हम दोनों के घर मे आ गए ।फिर मैं गर्भवती हुई ।भूली की खुशी का ठिकाना न था ।उसने हाथ से नवजात के लिए स्वेटर बुन लिए ।छोटे छोटे कपड़े बना लिए ।हम लगभग हर सप्ताह अंत  सासु मां के घर जाते और उनकी खुशी में शामिल होते ।उन्होंने नया फ्रिज और नई स्टील की नमकदानी भी ले ली थी ।परिवार में धन और साधनों की कमी न थी ।अच्छा ओढ़ना पहनना और खाना था और समाज मे भी इज्जत थी ।सुनार मेरी अंगूठियों के गहनों के डिज़ाइन ले जाते और वहीं डिज़ाइन कस्बे की अनेक बहुओ के पास होता ।भूली इन सब बातों को सुन कर बहुत खुश होती ।लक्स की साबुन की जगह वहां लुक्स मिलती
तो भूली जब ही जाती ये क्या दे गई पता भी है चंडीगढ वाली भाभी के लिए मंगवाया था  ।यह क्यों पकड़ा दिया ।मुझे  तो अक्षर पढ़ने की इतनी आदत थी चने के दोने के कागज पर लिखे अक्षर भी आंखों आगे से निकल नही सकते थे ।बिना पढ़े ।इसलिए नकली वस्तुओ का पता लग जाता था ।फिर सारी मंडी के कान हो गए अब इस घर मे कोई नकली माल नही बेचा जा सकता ।धीरे धीरे सब जागरूक हुए और मंडी में लाला को भी अपना स्तर बढाना ही पड़ गया ।हालांकि यह बातें बहुत मामूली प्रतीत होती है पर यह  जागरूकता ले आई हमारे इर्द गिर्द भी सब उपभोक्ता सजग हो गए । कुनबे में एक पढी लिखी बहु आने से बहुत कुछ बदलने लगा ।पीतल के बर्तन स्टील में परिवर्तित हो गए चूल्हे का स्थान गैस ने ले लिया ।नलके पर मोटर लगी हाथ से पानी खींचना बन्द हो गया । मिट्टी से लीपने के फर्श बदल गए ईंटो के फर्श पक्के हो गये ।इसलिए नही कि मेरे जाने से वहां की बहुत आर्थिक तरक्की हुई बल्कि इसलिए कि मुझ से पहले वे साधारण सी गांव की सी  जीवन शैली से खुश थे ।पक्की छत थी फ़र्श भी था ।बस सुविधाओ को जुटाना आ गया ।थाली में कटोरीयो  में सब्जियां पर खाने से पहले मीठा खाने की परंपरा ,राख से मांजे जाने वाले बर्तन डिटर्जेंट से मंजने लगे  ।डोंगे में  डाइनिंग टेबल पर परोसना आ गया ।इक्कठे बैठ कर कभी कभी बराबर बैठ कर खाया जाने लगा ।तब लगता था हम शहर वालो ने उन्हें सीखा दिया ।पर आज इस उम्र और अनुभव से लगता है कि उनकी वही जीवन शैली बहुत शुध्द थी वह सबसे अनमोल थी। चांदी पीतल ताँबे के बर्तनों में खाना ज्यादा अच्छा था ।लकड़ी जलाना गोबर के उपले जलाना अच्छा था ।मटके का ठंडा पानी अच्छा था । मैंने एक साफ सुंदर प्रकृतिक गांव में शहरी घुसपैठ की थी जो आंवला रीठा से सर धोती स्त्रियों के बालों को  शैम्पू जैसी केमिकल की और  ले गई ।
आज चाहती हूं वह जैसे थे वैसे रहते तो बहुत अच्छा था।भैस का असली दूध ,घर का दही मक्खन,खीर,सब उन्ही पीतल के कांसे के बर्तनों में मिल जाये मिट्टी के बर्तनों में पक जाए।हारे पर पकती बाजरे की खिचड़ी दाल सब्जी हलवा सब वैसा ही हो जाये ।पर अब सँगमरर से बने ऐयर कंडीशन जैसी सुविधाओ के घर की जगह   लकड़ी के  शहतीरों की कड़ियों मिट्टी से चिनाई वाली  कोठड़ी दोबारा आ जाए ।पर अब यह कभी न होगा ।नये घर मे पुराने घर की नीवं यूँ की यूँ दफना दी गई हैं ।
एक युग जो सच्चा था कृतिमता से बहुत परे था उसको हमने विकास के नाम पर दफनाया है ।उसी पुराने घर की उतारी गई खिड़कीयो में से आज भी आवाज आई थी भाभी जोर से कह कर कोई भाग गया । उस दरवाजे की चौगाठ भी जमीदोज पड़ी थी जहां से मैंने लाँघ कर घर के अंदर पैर रखा था दुल्हन बन के
एक सदी को एक इतिहास को जमीदोज होते देखा था नया घर बनाने हुए
कुछ लम्हे हमारी छाती पर बैठे  होते है और दिल पर चोंच मारते रहते है यह घर और उसकी यादे ऐसे मेरी छाती पर जमा है ।इन सब को लिखते हुए न जाने कितने आंसू स्क्रीन पर गिरे है ।और यह भी जानती हूं कि भूली को लिखते हुए तो मैं दहाड़े मार मार विलाप भी करूँगी ।

  अब पंचकूला में किराए का घर शहर की आबो हवा पति की काम मे व्यस्तता बढ़ते बढ़ते हर  हफ्ते खनौरी  जाना बंद सा  हो गया ।वह घड़ी भी आई मेरी गोद मे बेटी आई
भूली ने खबर पाते ही रात रात में कितनी की नन्ही नन्ही फ्रॉक  सिल डाली ।मेरी देखभाल के भूली मेरे पास आ गई ।वह नन्ही गुड़िया को घण्टो निहारती सब काम करती बच्ची को नहलाना धुलाना दूध गर्म करना दूध की बोतल तैयार करना । अब वह उम्र से पहले बड़ी हो चुकी थी ।मेरी सास ने भूली को भाभी का जापा निकालने भेज दिया ।किसी स्त्री का जापा किसी किशोरी से कैसे निकल सकता है यह आज भी मेरी समझ से परे है।वह दिन भर काम करती अब उसे यह घर भाभी का घर लगता था उसका मां के घर जैसा  शासन का विचार यहां मेरे घर नही आता था।वह थोड़ी सहमी और झिझकती थी किसी चीज को भी हाथ लगाते हुए
।मेरी सास सालो साल सभी को गर्व से  यह कहती रही देखो मेरी तो बेटी ने ही बहु का जापा निकलवा दिया ।मेरे लिए तो भूली भी एक बालक ही थी मेरी नजर में वह भी कन्या देवी ।मैं उस से  अपने प्रसव के खून सने कपड़े हर रोज के अंतः वस्त्र कैसे धुलवा सकती थी ।न ही पति को कह सकती थी।प्रसव दौरान 22 टांको की पीड़ा मुझे पैरो के भार तो बैठने नही देती थी ।मैं बड़ी मुश्किल से सौच के लिए जा पाती थी ।तब इंडियन सीट पर शौच तो अत्यंत पीड़ा दायक था ।पर मैं उसको नही कह सकती थी
मैं हर  बार स्वयं ही खड़े खड़े की शौच जाती ।एक दिन बाद खड़े खड़े ही नहाती और अपने कपड़े धोती और बाथरूम में बहुत रोती अपनी माँ को याद करती ।मेरी माँ इसलिए नही आ सकती थी कि जापा ससुराल में हो रहा था।और सिर्फ भूली ही बड़ी बूढ़ी स्त्री के रूप में मेरे पास थी जबकि वह बालक ही थी ।वह घर के सब काम मे निपुण थी खाना बना लेती थी साफ सफाई सब करती और गुड़िया के भी सब काम करती थी ।पति उन दिनों व्यस्ततम पुरुष थे ।तो 21 दिन मैं और भूली यही संगम रहा।
उसकी झिझक ने मुझ में भी झिझक पैदा कर दी
मुझे भूख लगती तो मैं उस से अपने लिए कुछ मांग नही पाती थी
वह सोचती भाभी कहे तो वह कुछ खाने को दे और मैं सोचती यह कुछ कहे कि खा लो तो खाऊं न तो सासु मां को शिकायत कर देगी कि भाभी इतना खा जाती हैं।मेरी तो सभी माँओं से याचना है जापा निकालने कभी किसी छोटी बालिका को न भेजें ।
मेरे पति ने मुझ से शादी की रात वायदा लिया था कि मैं उनकी मां को कभी दुखी नही करूँगी ।तब से मैं और डर कर रहने लगी थी ।आज तक सीमा नही लांघी कि उनको आगे पलट कर कुछ कहूँ अव्वल में तो वे कुछ कहती ही नही यदि कहें तो इधर उधर खिसकना बेहतर ।यूँ ही इस विधान में निकल गई जिंदगी ।ढेर सी यादों के साथ भूली चली गई ।अब चुकी वह बड़ी हो गई थी तो ससुर जी ने एक दिन कहा कि बड़ो की जिम्मेदारी मैंने कर दी है अब तुम कमाने लगे हो तो भूली की जिम्मेदारी हम दोनों पति पत्नी  ने लेनी है सो मैंने तो बात गांठ बांध ली ।अब मैं उसकी शादी का सपना देखती थी उस के लिए दहेज जोड़ रही
सोने का सेट बनाया सभी घर के छोटी छोटी जरूरत की चीजें जमाती और किसी छुट्टी में सासु मां के घर रख कर आती
दूल्हे की अंगूठी कपड़े देने लेने की कितनी ही औपचारिक चीजे सब जमा किये मैंने ।फिर एक दिन दूल्हा भी खोज लिया गया ।मेरे पिता को अपने समाज मे अत्यंत प्रबुद्ध प्रखर इंजीनयर को भूली के लिए खोज निकाला ।वह लम्बा गोरा युवक रोहतक के बलियाणा गांव से था जिसका भविष्य सुरक्षित था और तरक्की भी निश्चित थी ।वह बहुत समझदार व सुलझा हुआ युवक था ।
सगाई कर दी गई और भूली के पंख लग आए थे ।वह चहकती दमकती और खुश थी ।और अब तो बहुत घने लम्बे बालो वाली रूपसी ,गदराए बदन वाली बेहद गोरी चिट्टी नव यौवना में तब्दील हो गई थी और 11 में मेरे पास पंचकूला आ गई पेपर देने ।
एक बार इन्ही दिनों भूली को बड़ी माता निकल आई
और तब आज जैसे कोई कैब नही मिलती थी न रिक्शा मिलती थी
।मैं उसको दवाई दिलवाने गई हम लगभग आधा किलोमीटर पैदल गए थे उसको बहुत तेज बुखार था ।उसने गुड़िया को भी गोद मे उठा लिया था।उस से चला भी न जा रहा था पर उसने मुझे बताया नही या मैं ही उसके हाल का अंदाजा नही लगा पाई
बड़ी मुश्किल हम रिक्शा तक पँहुचे और डॉक्टर तक गए
आ कर उसने मुझे रो कर बताया कि भाभी मैं तो गिरने वाली थी बड़ी मुश्किल मेरे पैर उठ रहे थे ।ऊपर से गुड़िया भी उठा कर चलना बहुत मुश्किल था और कहने लगी आज मम्मी याद आई और रो पड़ी ।मुझे बेहद दया आई ।आज सोचती हूँ तब मैं क्यों न रिक्शा लेने खुद गई और उसे ले जाती घर से ही ।दरअसल वह अपनी पीड़ा को छुपा लेती थी जब उसके सर से ऊपर गुजर गई तब आंसुओ से ही कहना आया उस को ।
एक और वाकया याद है जिस के लिए मुझे आज भी खुद पर शर्म आती है ।हुआ यूं कि घर मे मैंने गोलू की पहली लोहड़ी का आयोजन रखा जिस में सभी परिवार को और मित्रो को आना था। मैं व्यवस्थाओ में बहुत व्यस्त थी ।मेरी सास मां और भूली आये ।मुझे खुशी हुई पर मैं ज्यादा ध्यान न दे पाई थी सभी व्यस्त थे ।भूली अपने साथ दो बड़े बड़े कन्टेनर लाई थी जिसमे एक मे लस्सी थी एक मे दूध।उसे पता था कि उसकी भाभी को लस्सी बहुत पसंद है और मेरी सास को पता था कि उसका बेटा असल दूध पीने वाला बेटा है ।माँ की ममता ने रास्ते भर परिवार के प्रेम में दूध का घी का बोझ उठाया और ननद रानी ने भाभी का ख्याल रखा ।भीड़ भरी बसों में बा मुश्किल दूध लस्सी को ढ़ो कर मेरे घर तक लाई मैं लापरवाह इन सब भावनाओ से कठनाइयों से अनभिज्ञ थी ।मुझे ख्याल तक न आया कि ये बसे बदल कर पैदल चल कर हमारे पास पँहुचे हैं ।
तभी खानसामे रात की पार्टी के व्यजन बना रहे थे उन्होंने मुझ से खाली बर्तन मांगा जो मेरे पास नही था जिस में सब्जी उड़ेली जा सके।मुझे सामने लस्सी का कनस्तर दिखा मैंने वह लस्सी नाली में बहा दी और खानसामे को वह दे दिया । मुझे जरा भी आभास नही था उस वक्त की मैं प्रेम को नाली में बहा रही हूं भावनाओ को नाली में बहा रही हूं  ।पर मेरी यह नावाजिब हरकत भूली ने देख ली और और उसके भीतर कुछ न बचा उसको बस के धक्के मुक्के गर्मी और कंधों पर पड़े कनस्तर उठाने के निशान पीड़ा देने लगे
और वह रो ली कहीं ओट में। मुझे कुछ भी न पता चला ।कुछ महीनों बाद उस ने मुझे बताई अपनी भावना तो मैं बहुत शर्मिदा हुई उसका सारा दुख मेरी नसों में उतर आया था ।मेरे पास सांत्वना के शब्द नही थे ।भावनाओ के कत्ल का विलाप सुनने के लिये रूह की आँखों की जरूरत होती तब मेरी आँखें पार्टी की चकाचौध में खोई थी ।मैंने माफी मांग ली ।उस ने तो चाहे मुझे माफ़ कर दिया हो पर मैं खुद को नही कर पाई आज तक

सगाई के बाद भूली मेरे पास रह रही थी और पढ़ रही थी उसकी ट्यूशन भी लगवा दी थी मैंने मुझे सास ने हिदायत दी थी इसको अकेले कहीं नही जाने देना साथ जाना है साथ आना है।जब ट्यूशन पर जाती तो मैं साथ जाती फिर उसको लेने जाती ।फिर एक दिन भूली ने कहा भाभी आप ने यहां भी गांव बना दिया साथ साथ जाने की क्या जरूरत है।बाकी  छात्र मेरा मजाक करते हैं
।मैंने कहा ठीक है पर मैं सास के वचनों से बंधी थी तो मैंने उसके साथ समझौता कर लिया ।अब मैं उसके साथ जाती तो थी पर फासला रखती थी कि किसी को यह न पता चले कि मैं बॉडी गार्ड हूँ  ।और लगे हम दो अलग अलग लोग है।यूँ इस तरह मुझे दूर बैठी सासु का भी डर था ।उस से भी ज्यादा पति का डर जिसने कसम ली थी कि मां से शिकायत नही आनी चाहिए मैं यह बर्दाश्त नही करूँगा । मेरी पहरेदारी की न पूछो ।भूली की सगाई के बाद नरेंद होने वाले ननदोई का खत आया मेरे पते पर निर्मला के नाम
मैंने खत उसे दे दिया ।कई दिन सहेलियों की तरह पूछती रही कि बता दे क्या लिखा है वह शरमा जाती और नही बताती थी। उसके खतो का सिलसिला शुरू हो गया और एक दिन नरेंद्र भूली से मिलने ही आ गया ।उसका दिल की धड़कने काबू में न रही और देखते ही बोलो "" हाय भाभी ये क्यों आ गया " पर भीतर उसकी उत्सुकता का ठिकाना नही था खुशी का ठिकाना नही था ।मैंने दिन में दोनों को ड्राइंग रूम में बैठा दिया कि बाते कर लो।वे बतियाते रहे ।शाम को भाई के आने से पहले वे सामान्य हो गए और वह दूसरे कमरे में बंद रही छुपी सी रही।फिर डिनर किया और सब सो गये रात को करीब अढाई बजे मैं उठ गई और बाथरूम जाने लगी तो रास्ते मे भूली का कमरा था वह मुझे दिखाई नही दी अपने बिस्तर पर ।मेरा शौच का तनाव उसे नदारद देख कर चरम पर हो गया एक बार  सास का चेहरा घूम गया और मैं डर गई ।जब मैंने ड्राइंग रूम में झांकने की कोशिश की तो दरवाजा अधखुला तकरीबन तकरीबन ढका हुआ और नरेन्द्र और भूली की बाते करने की आवाज आ रही थी ।मैं दरवाजा खटकाने की हिम्मत ही न जुटा पाई और बेहद डर गई अब मेरे भीतर सास के डर की जगह मां प्रवेश कर गई थी ।मन शकाओं से भर गया
मैंने बाथरूम की दरवाजे की जोर से आवाज की पर उस बातो में मग्न जोड़े को कुछ नही सुना । मैं अकेली बाहर खड़ी रही पसीना पसीना ।कहीं कुछ समझ नही आ रहा था ।वे केवल बातें कर रहे थे । आधा घण्टा तक इंतजार के बाद मैंने अपनी गुड़िया को थप्पड़ मार कर जगा कर रुला दिया और किचन में जाने का का रास्ता ड्राइंग रूम से गुजर कर ही जाता था ।रोने की आवाज से और मेरे कमरे ही हलचल से दोनों छिटक गए ।और मैं रसोई में दूध बना लाई फिर मुझे नींद न आई।सुबह नाश्ते के बाद नरेंद्र दिल्ली और पतीदेव दफ्तर चले गये तो भूली को बैठा लिया और पूछा कि रात तुम दोनों को बाते करते देखा मैने बस मुझे यह बता दे कि कुछ गलत तो न कर लिया समय से पहले।अगर नियत्रण छूट जाए तो ऐसे लड़के शादी करने से मुकर जाते है।मैं क्या मुँह दिखाउंगी सासु मां ने तो एक पल भी आंखों से लड़की को दूर नही करने की मेरी गारंटी से तुम्हे पढ़ने यहां भेज दिया है ।अगर ऊंच नीच हुई तो सारा दोष मुझ पर होगा ।बाहर पहरेदारी करती रही और घर मे छापेमारी न देख सकी ।यकीन मानो उस वक्त मेरी गोदी की गुड़िया भी उतनी ही बड़ी दिखी मुझे और मैं अब माँ हो कर बात कर रही थी  । भूली ने शांत और संयत स्वर में बताया कि भाभी ऐसा कुछ नही हुआ उसने सिर्फ अपने घर की बताई।उसने कहाँ कि मुझे कुएं से पानी भर के लाना होगा।फिर तूने क्या जवाब दिया मैंने पूछा वह बोली मैंने कह दिया भाभी कि ले आउंगी
।मेरे मन को थोड़ा तो चैन पड़ा पर बेचैनी बढ़ गई ।मुझे यह अंदेशा होने लगा कि अब नरेंद्र बार बार आएगा और मैं कैसे पहरेदारी करूँगी।वह एक बार और आया भी पर अब मैं उसकी पोटिया हो गई ।मैंने सासु मां से भूली की शादी की जल्दी मचा दी और जल्द ही ब्याह की तारीख आ गई और उस प्रेमी जोड़े को रोक दिया कि अब शादी के बाद ही मिलना ।
भूली की धूमधाम से  शादी हुई दिनांक ..को खनौरी में ।हम सब ने बड़े लाड़ चाव से विदा किया। भरपूर दान  दहेज दिया उसकी पसंद और सुविधाएं सब दी गई। ससुर जी ने कन्यादान किया ।सबसे छोटी बहन की शादी से सब खुश थे। वे सही में एक दूसरे के प्रेमी थे बहुत प्यार करते थे  शादी के बाद दोनों साथ आते साथ ही चले जाते थे।
गांव में ब्याह कर गई भूली ने सूट बदल बदल कर पानी ढोया ।पति का प्रेम उस से वह सब करवा रहा था जो उस ने कभी नही किया था ।रोहतक जिले के गांव में पानी की किल्लत थी ।पीने का खाना बनाने का नहाने का पानी कुएं से भर कर ढो कर लाना होता।पानी लाने का काम नई और युवा बहुओ के ही हिस्से में आता था ।और हर एक पानी लाने के चक्कर मे उसे घर से नया सूट पहन कर जाना होता है।बहु का पानी लाते हुए बार बार सूट बदल कर जाना उसके पीहर की आर्थिक हैसियत का परिचायक होता था।उसे बहुत कष्ट प्रद लगता था पर वह नकार नही सकती थी।पति जो कन्डीशन सबसे पहले में लगाये उसकी तो पालना करनी ही होती थी उसकी अवहेलना करने का कोई सवाल नही होता था।वक्त बीता भूली और नरेंद्र ने दिल्ली में अपना छोटा सा सपनो का घर बना लिया ।उस जोड़े के घौंसले में दो सुंदर बालक भी आ गए एक बेटा और बेटी ।वह दुनिया के प्रेमी जोड़ी में से एक थी जो एक दूसरे के बिना पल भी नही रहते थे।बच्चे स्कूल जाने लगे। नरेन्द्र की भी तरक्कियां होती रही। वे हर साल छुट्टियों में आते बच्चो को ले कर ।सासु मां के पास भी जाते मेरे पास भी आते ।मैं हर बार उसकी छूट कर देती बाजार से जो पसंद है वो ले लो जैसा भी सूट साड़ी जो भी लेना है लो ।खूब मंहगे कपड़े उसके न न करते भी उसको ले कर देती  ।वह मेरी प्यारी लाडली बेटी जैसी ननद थी जो हर शाम मेरी नजर उतारते उतारते बड़ी हुई थी ।अब मैं अक्सर उसकी नजर उतारती थी ।हर साल यूँ ही आती गर्मी की छुट्टियों में और हम घूमते फिरते उनकी सेवा करते खुश होते।।
फिर एक ऐसा हुआ जिसकी हमने कल्पना भी नही की थी ।मैं राजनैतिक काम से दिल्ली गई हुई थी और वो मेरे घर की ओर रवाना हुई ।कुछ समय पहले फोन आया था कि वो आएगी एक हफ्ते तक नरेंद्र को छुट्टी मिलते ही आएगी ।एक रात दिल्ली के एक सरकारी संस्थान के होस्टल में अपने कमरे में सो रही था कि रात को एक बजे मेरे पति का फोन आया कि कहां हो कैसी हो ? मैंने कहा ठीक हूँ सुरक्षित हूँ फिर कहने लगे कब आओगी
मैंने कहा एक दो दिन में।तब उन्होंने फोन रख दिया ।मुझे पता नही था नींद में क्या समय हुआ है मैं उसे रूटीन का फोन समझा।फिर सुबह 3 बजे के आसपास फिर फोन आया तब मैंने समय देखा तो पतिदेव ने कहा अभी आ जाओ नरेंद्र और निर्मला का एक्सीडेंट हो गया और वो 32 के हस्पताल में है।और तुम जल्दी आ जाओ अभी चल दो ।
मेरी नींद को जाने क्या हुआ कहाँ गई । हड़बड़ाहट हो गई मैं  अनहोनी के ख्याल से ही सिहर गई मुह से बोल न निकले बिल्डिंग का चौकीदार न मिले ।ड्राइवर कहाँ सोया पता न चले
चार मंजिल के हॉस्टल में चार पांच  चक्कर काट गई उपर से नीचे तक ।गेट की चाबी गेट की लेने  और चौकीदार ने ड्राइवर को कहां सुलाया है ढूंढने लगी । 100 से अधिक कमरों वाले होस्टल में मैं ऊपर नीचे भागने लगी।कोई भी जाग नही रहा था ।थक कर  बाहर गेट पर एक चाय वाला था उसको आवाज दी कि शायद इसे चौकीदार का फोन पता होगा ।वह चाय वाला दीवार कूद कर अंदर आ कर  सचमुच चौकीदार को ढूंढ लाया ।
ड्राइवर को जगाया लगा ड्राइवर मुँह धोने में इतना टाइम क्यों लगा रहा है यह बिना टॉयलेट जाए नही चल सकता क्या ।होस्टल का बिल बिना पूछे अंदाज से पैसे निकाल चौकीदार को दे आई
वहां से चल दी ।रास्ते भर परमात्मा को जपती रही हे भगवान कोई बुरी खबर मत सुनाना ।।तेज स्पीड पर गाड़ी मुझे रेंगती लगे
करनाल के पास पंहुच कर हिम्मत कर के पति को फोन किया कि मैं करनाल पंहुच गई हूं सभी का क्या हाल है ।पति ने कहा दोनो नही बचे लालड़ू के पास गाड़ी  सामने आते ट्रक से टकराई और नरेंद्र की तत्काल  घटनास्थल पर और निर्मल की हस्पताल में मौत हो गई  दोनो बच्चे केशव और शिफाली पिछली सीट पर बैठे थे ।टक्कर से पिछली दरवाजा खुल गया और केशव कार से बाहर लुढ़क गया ।उसे मामूली खरोंचे आई है और शेफी  गाड़ी में रह गई तो उसकी टाँग में कार का टूटा कोई लोहा घुस गया है और उसकी टांग की हड्डी टूट गई है ।शेफी भी  वहीं हस्पताल  में दाखिल है
मैं चीख चीख कर रोई गाड़ी में ।रास्ते मे उनकी कार देखी क्षतिग्रस्त कांच देखा तो भीतर  कुछ नही बचा ।जैसे तैसे मैं सुबक सुबक कर रोती सेक्टर 32 में पंहुच गई । एंट्री गेट पर ही एक दीवार छोटी सी वहीं  बैठ गई ।पति देव मिले सब आने लगे हम चीख चीख कर रो रहे थे सब भीतर से पर औपचारिक भीड़ में सिर्फ सुबक रहे थे। पति के भाग कर गले लग कर रोई ।फिर शांत होते तो कोई और सदस्य आ जाता तो उसकी आँखों मे झाक कर निरीह आंखों उसको बताती सब चला गया वे बचे नही ।
अभी सुबह  11 बजे शव पोस्टमार्टम के लिए गए हुए थे । नरेन्द्र की मौत हो चुकी थी और हस्पताल तक आते आते भूली की सांस बची थी।उसे 32 सेक्टर के हस्पताल से PGI ले जाया गया था कि शायद बच जाए वह भी भीतरी चोटों का ताव न सहते हुए अल सुबह दम तोड़ गई थी । कायदे से हम तो बेटी वाले तो दोनों के शव नरेंद्र के मूल गांव में ले जाने थे ।नरेंद्र का भाई बिजेंद्र एक कैंटर ले कर आया ।हमे भी शवो के साथ ही बालियाणा जाना था
।सहसा मुझे याद आया मेरी मम्मी कहती थी कुड़िया दी की जात चिता ते वी पेकेया दा चीरा पा के विदा होणा ।सारी उम्र जिस से हंडाई उड़ घर चों ता कफ़न वी न मिलदा आखिर वेले वी पेकेया दा ही पाणा ।यह शब्द मेरी माँ ने तब कहे थे जब मेरी दादा जी की एक लौती बहन दुर्गी का देहावसान हुआ था तो मेरी मम्मी गुलाबी रंग का एक रेशमी सूट दुर्गी बुआ के बदन का अंदाज कर सिल रही थी ।तब तो मैं किशोरी ही थी ।पर बात याद रही मुझे।मम्मी से पूछा तो बताया कि सब हार सिंगार और सूट लेना है और हमारा ही लगेगा।मैं साहस कर के सेक्टर 22 के बड़े शोरूम गुलाटी संस में गई और लाल सुहे का रंग का सूट दिखाने को कहा वह बड़ा उत्साहित हो कर दिखाने लगा ।सेल्समेन पूछता मैडम जी आप पर यह रंग खूब खिलेगा महारानी लगोगे पहन कर ।मैंने उसको कहा भाई मेरे लिए अपनी ननद के लिये लेना है।वो फिर पूछे मैडम जी उन मैडम का रंग कैसा है जिसका सूट लेना है ।मैंने कहा मुझ से भी गोरा ।कहते ही बोला जी ये देखो एक दम नई वरायटी है आपकी ननद खुश हो जाएगी भाभी ने सूट दिया ।उस दिन लगा कि ये सेल्समेन बोलते बहुत है ।मैंने उसे कहा भाई चुप रह कर कुछ बेच सकते हो।वो बोला मैडम ऐसी भी क्या बात है चुप रह लेता हूँ पर मैडम ये पीस तो आप छोड़ना मत उनके लिए भी और अपने लिए भी ले लेना। मैं चुप रही और उसको कहा कि इस दुकान में आज के दिन लाल रंग का जो सिल्क का सबसे महंगा सूट है वो ले आए ।उसने दिखाया मैंने ले लिया मैं भूली से बात करने लगी ले छोरी तेरा सूट तो हो गया ।फिर मेहंदी बिंदी ,चूड़ी ,
रिबन , सब लिया सेल्समन मैडम ये भी ले लो वो भी ले लो
बोलता ही रहा मैं चुप रही ।फिर मुझे याद आया कि ननद रानी को दोसड़ा भी तो ओढना है तो एक रेशमी दुप्पटा और लिया ।सेल्स मैन फिर आ गया मैडम वाह वाह क्या सेलेक्ट किया है क्या टेस्ट है लोग तो देने लेने के नाम पर शॉपिंग की खानापूर्ति करते हैं आप तो चुपचाप इतना सब इतने मन से ले रहे हो।वो चेप किस्म का सेल्समेन बोलने से न हटे । जिद करने लगा एक और ले लो मैडम जी तो मेरे सब्र का बांध टूट गया मैं जोर से लगभग चीखने के अंदाज में मन भर कर  बोली भाई कफ़न ले रही हूं तुम बताओ और कितने ले लूं।सारी दुकान का ध्यान मेरी ओर हो गया और खचाखच दुकान में सन्नाटा पसर गया बची थी तो मेरी सिसकिया । मेरे बिल दे कर दुकान से बाहर निकलने तक दुकान में सब स्टेचू थे और मैं बाहर निकल गई ।
दोनो शवो को कैंटर में रख दिया गया था सफेद कपड़े में गाँठे बांधी हुई थी ।हम निर्मल के बेटे केशव को साथ अपने कार में बैठा ले गए ।बार बार मैं उसकी आँखों को पढती कभी नजर चुराती ।केशव एक दम स्तब्ध था वह मौन था । उस बालक की समझ से परे था सब ।उसको कैसे रोया जाए  नही पता चल रहा था।उसका दिमाग सुन्न था ।हम उसे ले आये ताकि वह अपने माता पिता के अंतिम दर्शन कर ले ।वे इस सच का सामना कर ले।वे होनी को अपनी आँखो से देख ले ।इस जग की कड़वी सच्चाई को देख ले
जीवन की अंतिम यात्रा का अनुभव उसे हो जाये ताकि वह समय से पहले अपनी बहन का पिता बन सके ।
थे ।शेफाली की टांग टूट गई थी  मम्मी पापा के बिना वह एक पल भी न रहने वाली बच्ची अभी हस्पताल में थी ।और अक्सर मम्मी पापा को पूछती थी। इस बात से अनजान कि वह अब कभी उन से मिल नही पाएगी ।उस से हम ने इस भयानक सच को छुपा लिया था।

अब हम धीरे धीरे रोहतक की ओर जा रहे थे।
आगे कैंटर और पीछे पीछे हम जा रहे थे ।बीच मे बारिश आने लगी कैंटर रुका ।तिरपाल ढकने के लिए ।मेरा मन हुआ अभी इस कैंटर में बैठ जाऊं और शवो से लिपट जाऊं ।उसे जगा लूँ जो गर्मी की छुट्टी काटने मेरे घर आई है ।उसको कहूँ तू यूँ मेरे घर बिना कदम रखे जा नही सकती ।अभी तो तूने मेरे बहुत लाड करने है।
उसको कहूँ  कि आज मुझे काला टीका फिर से लगा दे
फिर से मेरा पोटिया बन जा ।फिर से मेरा हाथ चूम ले ।फिर से मुझ पर हंस कर दिखा आज फिर मुझे हरियाणवी समझ नही आई
तू समझा दे ।चल आ फिर साईकल चालाएं चल आ कंचे खेले हम
।चल आ तुझे दसूती टांका भरवा टांका सिखाऊं ।चल एक चादर और काढेंगे ।बस तू उठ जा किसी भी तरह शायद मेरे विलाप से वो उठ ही जाए ।
कैंटर पर तिरपाल ढकी और कैंटर चल निकला ।हम यूँ ही दर्द के पूले बाँधे पीछे पीछे चल रहे थे।मैंने कहा कि एक बार गांव में घुसने से पहले हमें दिखा दो रोक कर ।गांव में जाने के बाद हमें घूंघट करना होगा तो हम कुछ देख नही पाएगीं।इंडिया पाकिस्तान की तरह मर्द और औरत अलग अलग विलाप करेंगे।।औरतो को श्मशान में भी न जाने देंगे ।एक मिनट भी हमे उनको देखने नही देंगे । मेरे पति ने गांव के बाहर ही कैंटर रुकवा लिया ।हमे कैंटर में चढ़ाया गया ।मेरी सास को भी मुझे भी और बहुओ को भी हमने उनका मुझ देखा दोनो के तेजस्वी चेहरे ।बेहद सुंदर हमने कैंटर में हाहाकार मचा दिया मेरी सास का विलाप देख कलेजा मुह को आ गया ।वह औरत जिसकी बेटी और दामाद की सबसे सुंदर , खुश और प्यारी जोड़ी हमेशा के लिए चली गई थी।बड़ी मुश्किल से पुरषो ने हमे कैंटर से उतारा ।हम फिर अपनी अपनी गाड़ियों में सवार हो गई ।हमारे पंहुचने से पहले न केवल गांव में बल्कि आस पास के गांवों में खबर पंहुच गई थी।हम गांवो से गुजरे तो सड़क के दोनों तरफ मीलो दूर तक लोग ही लोग खड़े थे ।अफसोस कर रहे थे ।तीन गांव तक लोगो का तांता नही टूट रहा था । आखिर कार हम गांव में पंहुच गए ।हमे स्त्रियों को भीतर और शवों को बाहर बैठक की तरफ कहीं ले जाया गया ।अर्थियां और संस्कार की तैयारी पहले से ही हो चुकी थी।अब हमारा विलाप नरेंद की बहन और मां के विलाप में दब गया था ।फटाफट रस्मी औपचारिकता पश्चात भूली अपने नरेंद्र के लपटों का सफर पर जा निकली ।वह लपटे मेरे भीतर उतनी की आंच  आज भी पैदा करती है मेरे आसुंओ का पानी उस को ठंडा नही कर पाया है।वह अब भी यूँ ही धधकती है ।
हम खाली हाथ हारे हुए लौट आये आ कर  शेफाली की हस्पताल से छुट्टी कर घर ले आये और वह दिन भी आया कि हमने साहस कर शेफाली को बताया कि वो अब कभी नही आएंगे।अब तुम गुड़िया दीदी में ही निर्मल को ढूंढ लो
मेरी बेटी अचानक एकदम बड़ी हो गई वह मां बन गई ।उसने हाथ पकड़ लिया शेफाली का।विभाती में मैंने भूली को बहुत देखा।उसकी शक्ल बहुत सी आदतें उसके बाल सब भूली से मिलते हैं।अभी हाल में केशव की सगाई पर उसकी बुआ ने कहा भाभी देखो विभाती ज्यूँ की तयूं निर्मला है मेरी भीतर की उसी आंच की लट ने करवट बदली और मैं नही रोक पाई खुद को और आंखों के रास्ते भूली ही बहने लगी।।
कौन कहता है उसे भूली वह तो आज तक मुझे क्या किसी को भी नही भूली

संस्मरण
सुनीता धारीवाल