बहुत मजबूत डोर से बंधा
भाई मेरा
भोगौलिक दूरी पर
आज मुझे ताकता है
और पा लेता है
आती जाती ध्वनियों में
तरंगो में
और हम बात भी करते है
बिना कुछ कहे सुने
अति सूक्षम कुछ अहसास
हम करते है
बिना कलाई को छुए
और बिना किसी धागे
और मनाते है साल दर साल
यूँ ही खूबसूरत सा
बिना औपचारिकता
रक्षा बंधन
जानती हूँ वो प्राण है
मैं देह।। निसंदेह
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
शनिवार, 17 अगस्त 2019
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