गुरुवार, 16 जून 2016

मैं कौन हूँ और क्यूँ लिखती हूँ ?

मैं कौन हूँ और  क्यूँ  लिखती  हूँ ?


कभी कानो में धीरे धीरे बात करना
खुस्फुसाना और तुम्हे हँसाना
कभी कान में जोर से चिल्लाना तुम्हे डराना
इसी को कहते हैं कानाबाती करते जाना
न मैं उतनी स्वतंत्र जितना लिखती हूँ न उतनी परतंत्र, न उतनी स्वछन्द न उतनी उदण्ड. न उतनी शील न ही उतनी शल्य जितना अभिवयक्ति में होती हूँ
मैं बस मैं हूँ प्रकृति की प्रतिकृति पल पल समय के साथ चलती हूँ रंग ढंग बदलती  हूँ मिटटी हूँ पानी हूँ हवाओ की पेशानी हूँ लहरों की रवानी हूँ-मुझे परिभाषित नहीं किया जाता प्रकृति की तरह कितने ही पात्र निभाती हूँ तभी कहलाती हूँ धरती औरऔरत एक जात जिसकी थाह नहीं सच में मैं अथाह हूँ क्यूंकि मैं स्त्री हूँ मैं जटिलताओ में सरल और सरलताओं में जटिल होती हूँ देवी भी मैं अप्सरा भी मैं चंडालिका भी मैं रसतालिका भी मैं -मत कयास लगाओ की मैं कौन हूँ
गौर करो भाई मित्रो
ज़रूरी नहीं की लेखक जो भी लिखता है वह अपनी ही कहानी लिखता है उसके लेखन से  उसके परिवार को उसकी व्यग्तिगत परिस्थितियों को उसके पारिवारिक मान सम्मान को उसके वयाक्तितव को जज करना -उसका व्ययाक्तिगत आंकलन करना सही नहीं होता
ऐसा करने वाला  व्यक्ति अपरिपक्व पाठक  होता है
२- ज़रूरी नहीं जो भी हम लिखें  आपबीती ही है
३- हम लेखक तभी हैं जब हम भावुक मन के मालिक हैं यानि हम मंझे हुए कलाकार हैं और हम किसी भी पात्र को कभी भी अपने  भीतर उतरने की इज़ाज़त देते रहते है और पात्र में रम कर लिखते है
4-दूसरों के अनुभव हम बड़ी आसानी से अपने बना सकतेहैं
5-हमारी कल्पना में कई पात्र भी आपस में विमर्श कर रहे होते है
6-बहुत कुछ ऐसा लिखते हैं जो हमारे मन ने कहीं गहरे सुना होता है और वे सदा के लिए हमारी हार्डड्राइव में स्टोर हो जाते है और हम चूँकि कहना जानते हैंइसलिए कह देते हैं
7-महिला लेखकों के सन्दर्भ में ज़रूरी नहीं जो पीड़ा मैं बन कर अभिव्यक्त कीगयी है उसी की हो हाँ पर वो किसी औरत जात की ज़रूर होतीहै
8-बहुत बार दुसरे की बात मैं में लिखना आसान होता है क्यूंकि वह किसी व्यक्ति विशेष को इंगित नहीं करता -जिस से उसकी पहचान गुप्त रहती है
9-कोमल मन में कोमल विचार जगह बनाते है
10- जब कोई लेखक या कलाकार कोई भी रचना करताहै उस वक्त वह खुद तो होता ही नहीं एक  समाधी होती है जिसका सीधा तार दुनिया के रचनाकार से जुड़ जाता है और  तब मैं या कोई भी कलाकार  ऐसी रचना करने में सक्षम  हो जाता है जिसका उसे खुद भी भान नहीं होता -अनेक बार हमें अपने लिखे पर भी यकीन नहीं होता कि मैंने लिखा है ?पर उसे समाधि लिखवाती है चाह कर भी हम ऐसे ही कुछ भी लिख दो कर नहीं पाते
11-कलाकार होना रचनाकार होना कहीं पूर्व जन्म के संस्कार हैं जो चले आते है और बिना सिखाये सीखे भी इंसान समाधि पा जाता है और रच देता है
12-हम लोगो को सिर्फ सुनते नहीं महसूस करते है और उनकी जुबान बन जाते हैं
13-मुझे भीबहुत लोग कहते है -जे बात अरे बहन मैं भी बस यही कहना चाहती थी आपने शब्द दे दिए-और शब्द मैं कहाँ देती हूँ समाधि देती है
14-हम चर्चित रहने के लिए और धन के लिए भी नहीं लिखते  कृत्रिमता होती नहीं इसलिए सीधे दिल तक पहुँच जाते हैं
15- न ही हम तालियां बजवाने के लिए लिखते हैं-न आलोचना या प्रसंशा के लिए
बस खुद का मन विचारो की गठड़ी लिए बोझ मरने लगती हूँ तो उस भार को हल्का करने के लिए लिखती हूँ  
कृपया व्याकरण की अशुद्धियों की अवहेलना करें मैंने अंग्रेजी स्कूल में हिंदी पढ़ी  है 

नाम -सुनीता  धारीवाल 

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प्रकृति की प्रतिकृति
ब्रांड मेरा मैं खुद हूँ
पता है-निर्विघ्न अंतस समाधि

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