मतवाले मौसम ने
भीतर भरा उन्माद
जाने कहाँ ले जायेगा
चाहे मन
दंगाई बन जाऊं
लूट लूँ
मिटटी की सारी सौंधी खुशबू
समेत लूँ
हर रंग फूलों पत्तो का
चुरा ही लूँ
गर्मी से राहत पाए
अनगिनत मुस्काते होठो की तरंग
झपट लूँ
बुझती प्यास के एहसास
पकड लूँ
फैलती पुतलियों की चमक
रोक लूँ
नीड़ से झांकती चिड़ियों की चहक
और शांत हो जाऊं
किसी झील के किनारे
और पकड ले जाए कोई
प्रेम सलाखों के पीछे
सुनीता धारीवाल
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