शनिवार, 4 जून 2016

जाति जा सकती है -दिमाग से जाए तो जिन्दगी से जाएगी और व्यवहार से भी













"जाति है कि जाती नहीं" जिस तरह तेरी जाति मेरी जाति उपलब्धि प्रचार हो रहा है वैसे तो जाति जाएगी नहीं-कोई ललकार रहा है कोई आक्षेप कर रहा है-कोई ख़ुशी मनाता है-नीचे धरती पर क्या कम है जाति जाति प्रतियोगिता -इस इन्टरनेट सोशल मीडिया को तो छोड़ दो .जाति एक षड्यंत्र है व्यक्ति की क्षमताओं को अपने स्वार्थहित में जकड़े रखने का -अब तो छोड़ दो हम ये हैं हम वो हैं- हम ये थे हम वो थे -आज बहुत आगे निकल आये हैं हम सब #दुनिया बदल गयी
"जाति के प्रकार#जाति भीतर वर्ग#जाति बाहर वर्ग#जाति विहीन जाति# उपजाति#अपजाति#complex in diversities and divers in complexities =INDIA
भेदभाव के व्यवहार को नकार नहीं रहीं हूँ पर भूल जाने को कह रहीं हूँ # अगली पीढ़ी को पूछना बंद कर दे -#ओह यह तेरा दोस्त हैं-अच्छा ------जाति से है यह तो ये करेगा ही तुम्हारे साथ -खून में है इसके # इस टाइप के फलाना धिमकाना
"सब दिन होत न एक समान कभी उपर कभी नीचे परिवर्तन ही सुन्दर है"
(मैंने भी जातिय संगठन की बागडोर संभाली है कुछ समय-जाती एक समूह है जो समान व्यवसाय से आजीविका वहन करता है-उसे तरक्की की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए जागरूकता की ज़रूरत होती है -कडवाहट व् हिंसा की नहीं -जन्म लेते ही एक मानव दुसरे मानव पर नियंत्रण कैसे चल सकता है -अपनी जाति के अच्छे कर्मो का योग्यताओ का गुणगान अच्छा है पर दूसरों को नीचा दिखा कर खुद को ऊँचा न रखा जा सकता था न ऊँचा बनाये रख सकते हैं- सभी को जागरूक करके शिक्षा से उन्हें सम्मान हासिल कर लेने का सबक देना होता है-यकीन दिलवाना होता है कि अगर दयनीय हालत को इश्वर की मर्जी स्वीकार कर्म नहीं कर रहे तो उन्हें जगाना होता है-)
किसी को ललकारना नहीं होता -लोकतंत्र में अपनी बात कहने का हक सभी को है पर ललकारने से घमंड की बू आती है
शांति से काम लें -उकसाए कभी न भाये
जब मुश्किल वक्त आये तो एक बार जाति को दिमाग से डिलीट कीजिये और गले लगाईये
सुनीता धारीवाल जांगिड

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