आज मेढ़को ने
कामयाबी पायी
मुझे कुएं में खींच लिया
अब मेरे लिए भी
वही नियम हैं
अँधेरे में रहना है
मुँडेर देखना मना है
और
बाहर कूदना
सजा ऐ भुखमरी है
बस अब मुझे
एक जगह बैठे बैठे
मेंढको को गाते टरटराते
सुनना है
ऊपर मत जाओ
ऊपर मत जाओ
मेंढको की जाति
खतरे में है
और यहीं रह कर
टर ट र करना है
मैं जानती हूँ
ऊपर रौशनी है
तुम्हारा इंतजार करती
जाओ जाओ जाओ
और ये भी जानती हूँ
असंख्य टरटररों के शोर में
मेरी आवाज दम तोड़ेगी
पर रौशनी कहती है
कोई सुनेगा ज़रूर
और गले लगाएगा
रोशनी को
पार कर मुंडेर को
सुनीता धारीवाल
(चित्र साभार -https://huttsatwork.wordpress.com/2013/03/05/frog-festivities/)
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