मंगलवार, 28 जून 2016

सिफर और बही













 एक थी मैं  
हिसाब किताब में बहुत कच्ची 
 रिश्ते हो या जज़्बात  
कभी गुणा भाग जोड़ घटा 
 कुछ नहीं आता था
 बस सिफर पहचानती थी
  हर बार हर हिसाब में 
 सिफर हो जाती थी 
 कभी कोई सूची बनाई ही न थी  
कब कब मैंने क्या किया  
कब कब मैंने क्या दिया  
तुमने कब कितना दिया 
 मैंने कब कितना लिया
  फेरहिस्त तुम्हारी थी 
 कलम तुम्हारी थी  
 बही तुम्हारी थी 
 रिश्तों की आढ़त भी तो तुम्हारी थी
  मेरा तो बस खाता था  
उस बही में  
जिसमे मेरी तरफ 
 देनदारियां बहुत निकली थी 
 हर बार अंगूठा कहाँ लगाती थी मैं
  चक्रवर्धि तिमाही छमाही 
 कुछ भी नहीं जानती  थी मैं 
भला  साँझ में हिसाब कौन करता है
  वो भी रिश्तों का
  इस  हिसाब के बाद  
मैंने बोना और सींचना  
सब छोड़ दिया है  
गिरवी रख के बाकी सांस
  जीना ही छोड़ दिया है
  जानती हूँ उसी बही में 
तुमने  एक पन्ना 
और जोड़ लिया है  
साँझ से रात तक के
बचे  हिसाब का  
सुबह दोबारा किसी की 
कभी होती  नहीं 
नया खाता कोई 
 सिफर से फिर शुरू होगा 
 कोई नया जन्म होगा
  सुना है हिसाब किताब
  जन्मों चला करते है   
कैर्री फॉरवर्ड की मानिंद 
सुनीता धारीवाल

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