एक थी मैं
हिसाब किताब में बहुत कच्ची
रिश्ते हो या जज़्बात
कभी गुणा भाग जोड़ घटा
कुछ नहीं आता था
बस सिफर पहचानती थी
हर बार हर हिसाब में
सिफर हो जाती थी
कभी कोई सूची बनाई ही न थी
कब कब मैंने क्या किया
कब कब मैंने क्या दिया
तुमने कब कितना दिया
मैंने कब कितना लिया
फेरहिस्त तुम्हारी थी
कलम तुम्हारी थी
बही तुम्हारी थी
रिश्तों की आढ़त भी तो तुम्हारी थी
मेरा तो बस खाता था
उस बही में
जिसमे मेरी तरफ
देनदारियां बहुत निकली थी
हर बार अंगूठा कहाँ लगाती थी मैं
चक्रवर्धि तिमाही छमाही
कुछ भी नहीं जानती थी मैं
भला साँझ में हिसाब कौन करता है
वो भी रिश्तों का
इस हिसाब के बाद
मैंने बोना और सींचना
सब छोड़ दिया है
गिरवी रख के बाकी सांस
जीना ही छोड़ दिया है
जानती हूँ उसी बही में
तुमने एक पन्ना
और जोड़ लिया है
साँझ से रात तक के
बचे हिसाब का
सुबह दोबारा किसी की
कभी होती नहीं
नया खाता कोई
सिफर से फिर शुरू होगा
कोई नया जन्म होगा
सुना है हिसाब किताब
जन्मों चला करते है
कैर्री फॉरवर्ड की मानिंद
सुनीता धारीवाल
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