गुरुवार, 9 जून 2016

राजनैतिक औरतें




"कुछ अलग ही
 मिटटी से बनी 
सामाजिक अछूत सी 
 होती हैं
ये  राजनीतिक  औरतें


कंगन बन्धन सा कुछ 
जोडती  तोडती  
आज़ाद  सी 
 होती हैं यह राजनितिक औरतें 

ताकत के हर तख़्त की 
बदरंग बुनियाद सी 
होती हैं ये राजनितिक औरतें

पर तुष्टियां लादे हुए 
थकी हुई उस पार लाचार 
होती  हैं ये राजनितिक  औरतें 

कुचली हुई मसली हुई 
षड्यंत्रों का शिकार 
होती हैं ये राजनितिक औरतें 

कदम कदम 
आरोपित भी और रोपित भी 
हर बार होती हैं ये राजनितिक औरतें 

सांस सांस तक ठगी हुई 
 मौन चीत्कार सी 
होती हैं ये राजनितिक औरतें 

कान बंद और आँख खुली 
बस चमत्कार होती है 
ये राजनितिक औरतें 

संहारों  से गर सीख गयी 
तब  नागिन की  फुफकार सी 
होती हैं ये औरतें 

पीछे गाली मुह पर गाली 
लाखों तकती आँख्नें गाली 
से हर दिन दो चार होती हैं 
ये राजनितिक औरतें   

दलदलो से जूझती 
तन की औरत को जिन्दा  रख 
भीतर औरत को मारती हैं ये 
राजनितिक औरतें  

कुछ अपवादी सी
 जो शिखर चढें
तब दुष्टों को संहारती हैं ये
राजनितिक औरतें 

 बाकी सब कभी  देवदासी 
 कभी दुर्गा का अवतार
 होती हैं ये राजनितिक औरतें 

हर हालत में जिन्दा है 
सियासत में बड़ा कारोबार होती हैं 
राजनितिक औरतें 

घर समाज से अलग थलग 
धकियाई सी बेजार सी होती हैं 
ये राजनितिक औरतें  

कत्ल होती है तंदूरों में भी 
गहरे तालाबों में भी 
जीत में भी हार होती हैं 
ये राजनैतिक औरतें 




सुनीता धारीवाल जांगिड 

 अधूरी है अभी  काविता 

औरत कभी परिभाषित नहीं जी सकती से
लिखना अभी बाकी है पुनः लौटती हूँ

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