बुधवार, 1 जून 2016

औरतों को बसाती औरतें -हरियाणा में मोलकी और समाज


चित्र -केवल प्रतीत हेतु @sunitadhariwal#photography

सच  में  औरतो  के मामले में  हरियाणा  प्रदेश  आज के समय में  जितनी विविधता लिए हुए है ऐसा पहले कभी नहीं था हरियाणा के  हर घूंघट की  बोली बदल रही है जो महिलाएं मूल रूप से  हरियाणा की ही हैं वह परिवार में नई बहुओं को हरियाणवी बोली की, रहन सहन की, रीति रिवाजो की प्रशिक्षक बनी हुई है , चलिए हाँ कहीं तो एक दर्जा ऊपर दिखाई दे रहीं है औरते  कम से कम मोल चुकता कर लायी गयी नई नवेली वधुओं के समक्ष ही सही .आज लगभग हर भाषा हर प्रदेश की औरतें यहाँ पर बसाई जा चुकी हैं .और औरतों ने ही उन अन्य प्रदेशों की  औरतों को अपने समाज में बसाने की जिम्मेदारी भी बखूबी ले रखी है ,आखिर अपने कुनबे में अपने घरों  में आई अगली पीढ़ी की वंश बेल इन्ही नई बहुओं के कारण ही संभव हो पायेगी .

हरियाणा  प्रदेश के कैथल जिले के गावं मटौर गावं निवासी  बीरमती  ने बताया कि उनकी दो बहुए हैं जो असम से लायी गयी थी लगभग आठ वर्ष पूर्व -वे दोनों बहुत ही गरीब परिवार की थी इनके पिता ने एक धोती में इन्हें विदा कर दिया था ये सिर्फ मच्छी और चावल खाना पकाना ही जानती थी ,मैंने इन्हें अपनी बच्चियों की तरह रखा इन्हें घर का खेती बाड़ी का ,पशुओं का सब काम सिखाया और यहाँ तक की ओढना पहनना भी सिखाया और आज ये मुझे भी सुख दे रही हैं और खुद भी सुख से रह रहीं हैं दोनों के पास ही अपने बच्चे हैं और अलग अलग घर भी हैं .
बड़ी बहुत रीता का  कहना था की यहाँ आना हमारे लिए चौंकाने वाला था हमे पता नहीं था कहाँ जा रही हैं हमारी उम्र भी बहुत छोटी थी .छोटी बहु ममता जो थोड़ी चंचल है वह बोली आज नहीं आएगी कोई हमारे असम से आपके हरियाणा में -आज तो वहां भी तरक्की हो गयी है हमारी तरह गरीबी में थोड़े न है आज  वहाँ के लोग  मैं तो किसी को नहीं कहूँगी की यहाँ आ जाओ इतने काम में खपने के लिए और हंस दी और अपने काम में लग गयी

जींद जिले के साहपुर की धनपति के चार बेटे हैं किसी भी बेटे की शादी नहीं हो पा रही थी  सबकी  उम्र निकली जा रही थी धनपति ने बिहार से बहु मंगवाने की कोशिश की और कामयाब हुई -धनपति का कहना है कि मैं बूढी हो गयी हूँ न मुझ से खेत का न पशुओं का न ही घर का काम अब होता है -मुझे भी तो आराम की ज़रूरत है ,बहु आई तो मैंने इसे सारा काम सिखा दिया और भगवान् की कृपा से संतान भी हो गयी ,मेरे पति का और बुजुर्गों का नाम रह जायेगा धरती पर मैंने अपनी बेल बढ़ा ली है और मैं खुश हूँ ,वहीं  बहु का कहना था मुझे यहीं अच्छा लगता है यही मेरा घर है घर में खाने को दाने नहीं होते इतना खुला खाना पीना नहीं होता था ,हालांकि अपना देस अपना होता है पर मैं अब यहाँ हूँ तो यहीं खुश हूँ

 वहीँ हरियाणा पंजाब की सीमा के  साथ लगते गावं कारोदा के राम सिंह के घर नई बहु बंगाल की है जो अभी जच्चा है उसकी  गोद में  कुछ  ही दिन का बेटा है घर में ख़ुशी है पर वह अभी तक समझ  नहीं पा रही है क्या हो रहा है आते ही उसे गर्भ ठहर गया और अब बच्चा भी उसके पास है पर वह अभी तक न तो खाने के साथ अपना सामंजस्य  बैठा पाई है न ही वेश भूषा व् बोली के साथ और हैरान परेशान है उसे अभी न पता है समाज क्या है क्या देश दुनिया रोटी और कपडे के बाद उसने  शारीर और उसमे से पैदा हो गया बच्चा देखा है वह छोटी उम्र की हतप्रभ किशोरी सी जान पड़ती है पर पूछने पर अपनी उम्र छुपाती है

दरअसल कोई भी समाज अपनी पहचान को जिन्दा रखने के लिए  एक तरफ तो बहुत कट्टर होता है दूसरी ओर समाज को ही जिन्दा रखने के लिए समझौते करता है और स्वीकार्य तर्क भी निकाल लेता है .लड़कियों की लगातार कम होती संख्या ने विवाह के लिए उपलब्ध होने वाली लड़कियों की संख्या में भारी कमी कर दी थी .पिछले पन्द्रह सालो में लड़कियों की संख्या में बहुत गिरावट दर्ज की गयी जिसका असर वर्तमान में दिखा कि एक नई सामजिक समस्या ने जन्म ले लिया विवाह के लिए लड़कियों की अनुपलब्धता का ,ऐसा भी नहीं है की हरियाणा में कभी भी लिंग अनुपात समान रहा हो यहाँ तक कि पूर्व में जब यह राज्य संयुक्त पंजाब का हिस्सा था तब के आंकड़ो में भी और पहली जनगणना के आंकड़ों में भी यहाँ लड़कियों की संख्या की कमी के ही दर्शन हुए हैं ,गौर तलब ये है कि हो  सकता हो कि यहाँ इस प्रदेश की भूमि पर लड़कियों की जन्मदर के कम होने के कोई अनुवांशिक कारण हो यह भी एक गहन रिसर्च का विषय है -



गावं  करोदा के ही 95 वर्षीय बुजुर्ग मन सिहं राम का और सरदारा  राम सिंह  मानना है कि यहाँ का खाना पीना दूध घी का है हो सकता है बेहतर खान पान के चलते पुरषों के  शुक्राणुओं  में  मादा  अणुओं की आमद न हो पाती हो -उनका यह तर्क  भी विचार करने लायक है और अनुसन्धान लायक कि गर्भ के लिए लिंग निर्धारण का क्या सेहत व् खानपान से भी कोई सम्बन्ध है या नहीं .
आज की तरह सौ साल  पहले न तो ऐसी कोई मशीन थी कि लिंग जांच हो पाती और न ही मजबूत कारण दिख पा रहा कि लड़कियों को मार देना ही उचित रहा होगा ,यह काम तो अभी बीस तीस साल से जब से दहेज़ चला तभी से लड़की बोझ  मानने लगे लोग , जब लड़कियों को मार दिया जाने लगा जिन्दा जला दिया जाने लगा .तो लोग लड़की पैदा करने से डरने लगे .इस मशीन की पहुँच पहले बड़े घरों तक थी धीरे धीरे गरीब के हाथ की पहुँच भी बन गयी और बेड़ा डूबने की ओर हो लिया .
पर समाज अपनी किसी समस्या पर कहाँ हार मानता है जहाँ कोई मुश्किल है उसका हल भी वहीँ है समस्या के साथ समाधान भी आता है -और विवाह के लिए लड़कियों की कमी का समाधान है मोलकी यानि मोल चुकता कर विवाह के लायी गयी लड़की .हम यह तो मानें  की हरियाणा संपन्न प्रदेश है भोजन व् छत की उपलब्धता तो है ही यहाँ के घरों में ,भोजन का उपलब्ध होना ही बहुत बड़ी मैरिट है किसी परिवार में अपनी कन्या बसाने के लिए - अन्य कुछ कमतर आर्धिक आधार वाले या गरीब  प्रदेशो के अति गरीब परिवार जो चाहे अनचाहे अपनी बेटियां भी बेचने को मजबूर हो रहे थे (या उनकी परंपरा ही ऐसी बन गयी होगी गरीबी के कारण या धन का लालच )उन्हें हरियाणा में लड़की को भेजना उचित ही लगा होगा ,कम से कम यहाँ लोग इस प्रकार  धन चुकता कर लायी गयी लड़कियों से न तो वेश्यावृति करवा रहें हैं न आगे बेच रहे है (यहाँ भी अपवाद स्वरुप कुछ केस मिल जायेंगे ऐसे भी भई गारंटी किसी भी नहीं )और घर में पत्नी का सारा हक दे रहें हैं -कैथल जिले के ही बलबेहडा गावं में  आई एक मोलकी  बहु रिंकी  ने बताया की पिता ने मुझे इस (मेरे आदमी )के साथ भेज दिया और शर्त रखी कि बिना बच्चे को जन्मे   वह अपने घर नहीं लौटेगी और न ही उस से कोई मिलने आएगा मैं चाहती हूँ मैं जल्द से जल्द बच्चे को जन्म देना चाहती हूँ ताकि मैं अपने घर जा सकूँ मुझे अपने भाई बहन से मिलना है -मेरा पति बीमार है मैं क्या करूँ -उसकी मासूम आँखों के किसी सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था .

आज स्तिथि यह है गावं मटौर की कही डूम जाति की सरोज अपने अपाहिज लड़के के बहु लाने के लिए पैसे जोड़ रही है ताकि एक दिन वह अपने उस अपाहिज बेटे का घर भी बसता देख ले  ,उसे चिंता है कि उसकी मौत के बाद कोई भी उस अपाहिज का ध्यान नहीं रखेगा सभी और बच्चे घर गृहस्थी में खो जायेंगे और वह अकेला तडपेगा यदि उसकी शादी हो गयी और उसके कोई औलाद हो गयी तो कौन ऐसे बच्चे होंगे जो अपने अपाहिज बाप को फैंक देंगे या भूखा मरने देंगे -मोल की बहु आ जाए एक बार तो वह अपने बड़े बेटे की पत्नियों आगे कभी नहीं झुकेगी और न हाथ फैलाएगी
सरोज को 30 हज़ार मोलकी के पिता को देने के लिए और 50 हजार कुनबे में दावत के लिए चाहिए इसलिए वह चिंता में सो नहीं पाती है
(लेख में उपयुक्त सभी नाम बदल कर दिए  गए  हैं )

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