सोमवार, 28 नवंबर 2016

wow womania show का सफल हुआ ऑडिशन






आज panchkula के सेक्टर 4 में  सुनीता धारीवाल जी के निवास  पर wtv india की तरफ से आगामी होने वाले मयुजिक प्रोग्राम के लिए ऑडिशन किये गये जिस मे न केवल tricity की महिलाओ ने उत्साह से  भाग  लिया वरन् कुरूक्षेत्र और दिल्ली से भी महिलाएं भाग लेने आयीं और पुराने गानों के सुर लगा समां बांध दिया. कंचन जैन जी जो मनीमाजरा से प्रतिभागी थी ने अपनी सुरीली आवाज़ में, “ अफसानां लिख रही हूँ सुना कर कार्यक्रम का आगाज़ किया. नीतू जी ने “ मुझको हुई न खबर चोरी – चोरी छुप छुप कर , कब प्यार  की पहली नजर दिल ले गई ले गई “ सुनाया. चण्डीगढ से आई संजना भटनागर ने भी एक पुराना मगर बहुत यादगार गीत सुना महफिल मे चार चाँद लगा दिए,” सांझ ढले, गगन तले, हम कितने एकांकी”. एक युवा गायिका ने अपने पक्के सुरो से ये एहसास करवाया कि बच्चे किसी से कम नही और बहुत बुलंद आवाज में ये गाना गा कर सब की वाहवाही बटोरी,” मौह से नैना, कागां  सब तन खाईयो जी, मेरा चुन चुन खाईयो मांस, ये दो नैना मत खाईयो ,इन में साई मिलन की आस”. नीना भाटिया जी ने जहाँ, “ चुरा लिया है तुमनेजो दिल को नजर नही चुराना सनम गाया वहीं कुरूक्षेत्र से आई प्रतिभागी ज्योति ने और दिल्ली से  आई मोनिका जो कि पेशे से एक वकील है ने भी अपने आवाज से समां बांध दिया. मंजली ने अपनी सुरम्य  आवाज़ का जादू कुछ यूं बिखेरा, “ तेरे बिना जिया जाएं न, बिन तेरे, तेरे बिन सांसो में सांस  आये न. इस ट्र्स्ट की चेयरपर्न विभाती ने न केवल हिंदी पंजाबी गाने से इस शाम  को यादगार बनाया बल्की नेपाली गीत गा कर भी महिलाओं का उत्साहवर्धन किया. शारदा मितल ने भी अपने व्यस्त दिनच्रर्या से वक्त चुरा कर पुराने दौर का गीत बड़े उत्साह से सुनाया डॉ शालिनी शर्मा, सुनीता धारीवाल जी ने एक डूयिट सुनाया. कार्यक्रम को अंजाम तक पहुचाते हुये शैला जावेद ने “हम चीज है बड़े काम की सुनाया.” शिखा श्याम राणा ने पूरे कार्यक्रम की विडियोग्राफी कर सहयोग दिया. आने वाले संगीत कार्यक्रम के लिए किया गया ये ऑडिशन बहुत सफल रहा.

शिखा श्याम राणा

तस्वीरें कार्यक्रम ऑडिशन 

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

wtv टीम ने किया नारी कलम गोष्ठी का सफल आयोजन कुरुक्षेत्र में 10 दिसम्बर २०१६








आज दिनांक 10-11-16 को कुरुक्षेत्र में दूसरी वूमन टीवी की गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। गौरतलब है सुनीता धारीवाल जांगिड़ जी के निर्देशन में चल रहा वूमन टीवी चैनल महिलाओं का महिलाओं के लिए और महिलाओं द्वारा संचालित वो ऑनलाइन चैनल हैं जो पूर्णतः महिलाओं के सर्वांगीण हित के लिए कार्य कर रहा है।
​wtv के कुरुक्षेत्र जिले की  coordinator ​और हरियाणा की सचिव गायत्री कौशल ने बताया कि कार्यक्रम की अध्यक्षता सुमिता शर्मा जी 
​ने की  ​
। बहूमुखी प्रतिभा की धनी शालिनी शर्मा जी ने मंच संचालन का कार्य किया। भले ही अपनी डायरियों में अपने मन की भाव उकेरने वाली महिलायें हों या समाज में अपना लोहा मनवा चुकी महिलायें हों, सभी ने बढ़-चढ़ कर कार्यक्रम में अपना उत्साह दिखाया और कविता पाठ किया। इनमें गायित्री कौशल जी, अन्नपूर्णा शर्मा जी, अनीता शर्मा जी, सरोज रानी जी, मीरा गौतम जी, डॉ ममता जी, मोनिका भारद्वाज, कंचन रानी, ज्योति खन्ना जी , कविता कश्यप, ने प्रमुखत कविता पाठ किया। कविता पाठ की बेमिसाल कड़ियों का आगाज डॉ ममता जी ने अपनी कविता से किया जिसमें उन्होंने सभी नारी मन की बात कहते हुए सभी को भावविभोर कर दिया । अन्नपूर्णा शर्मा जी ने महिलाओं के दर्द उकेरते हुए उसे स्वयंसिद्धा के रूप में प्रस्तुत किया। कंचन ने जहाँ गीत की माद्यम से समकालिक आधुनिकता पर व्यंग्य किया वहीं कविता ने अपनी कविता से नारी के वर्तमान स्थिति से अवगत करवाया। मोनिका भारद्वाज ने माहौल को हल्का करते हुए प्रेम को प्रेत और बेताल की संज्ञा देते हुए एक अलग प्रत्यय की संकल्पना की. साथ ही साथ प्रेम के छोटे-छोटे मुक्तकों मसलन 'बनने दो गवाह हर हरे दरखत और हरी पत्तियों को, कैसे झरते हैं फूल इन आँखों से'', से माहौल को सराबोर कर दिया। इसी बीच सुनीता धारीवाल जी द्वारा उनकी कविता कैक्टस, जो महिलाओं के यौनांग के बिम्ब को लेकर प्रस्तुत की गयी, ने सबको झकझोर कर रख दिया। बीच बीच में शालिनी शर्मा जी ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत किये गए मुक्तक और शेरों ने सबका मन मोह लिया। सुमिता शर्मा जी की कविता, ''वक़्त रहते निखार गए हम, खा के ठोकर सुधर गए हम'' के माद्यम से लोगो की दोगली मानसिकता पर कटाक्ष किया गया। जहाँ गायित्री कौशल जी किशोरावस्था की संकल्पना पर कुछ यूँ कहती दिखी,"वो पलट के इक निगाह देखना उसका,पल भर में वो मेरा करार खो देना। डॉ मंजीत की राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत कविता और वहीं ज्योति खन्ना ने दहेज और भ्रूण हत्या के दर्द से झरते शब्दों से माहौल को विचारोतेजक बना दिया। महिलाओं को प्रेरित करती हुई ये गोष्ठी न केवल उनकी जिजीविषा को सलाम करती हुई नजर आई वहीं महिलाओं को एक मंच पर लाने का जरिया भी बनी।
इस लिंक को खोले अधिक तस्वीरें देखने के लिए -नारी कलम गोष्ठी द्वितीय कुरुक्षेत्र में आयोजित 

सोमवार, 7 नवंबर 2016

फरीदाबाद में नारी कलम गोष्ठी का आयोजन






women tv india प्रोजेक्ट के आउटरीच कार्यक्रम के तहत 2 नवम्बर २०१६ को  नारी कलम गोष्ठी  का आयोजन फरीदाबाद में किया जिसकी अध्यक्षता श्रीमती सीमा बंसल ने की -इस गोष्ठी का सफल सञ्चालन एवं मार्गदर्शन wtv की निदेशक श्रीमती शारदा मित्तल ने किया ,गोष्ठी में दर्जनों महिलाओं ने अपनी अपनी कविता पढ़ी ,श्रीमती शारदा मित्तल ने बताया की ऐसे आयोजनों का  महिलाओं के जीवन में अलग महत्व होता है जिनसे उनका आतम्विश्वास बढ़ता है और उनकी योग्यता व् नैसर्गिक  हुनर को पहचान मिलती है .











शनिवार, 5 नवंबर 2016

मेरे पापा और मैं

ओ मेरे प्यारे पापा
तुम ही तो थे मेरे जीवन के
सबसे श्रेष्ठ पुरूष मित्र
मैं और तुम ,तुम और मैं
मेरी दुनिया सब तुम्हारे ईर्द गिर्द
कहां भूल पाई मैं
तुम्हारे स्कूटर पर
तुम्हारी टांगों के सहारे सटी
दोनो हाथ फैलाई मैं
तुम्हारी स्पीड के साथ
जूम्म्म जूम्म जूम्म की
आवाजें निकालती मैं
हर मोड़ पर पूरा झुक जाती मैं
हवाई जहाज बन जाती मैं
जैसे सारी दुनिया घूम जाती मैं
अब भी याद है मुझे
तुम्हारा मुझे हर रोज स्कूल छोड़ना
किसी भी लाल बत्ती पर रूकना
और बस मुझे ही देखते जाना
अपनी जेब से जादुई कन्घी निकालना
हवा में उलझे मेरे बाल संवारना
लाल बत्ती पर रूकी भीड़ से बेपरवाह
बस मुझसे ही बातें करना, मुझे ही निहारना
फिर मेरा बस्ता उठाना ,स्कूल छोड़ आना
आखों से ओझल होने तक
मेरी तुम्हारी टाटा बाय ,कहां भूल पाई मैं
कितने साल चला यह सिलसिला अनवरत
कहां सचिवाल्य कहां सैक्टर बत्तीस
कभी नही चूके तुम अपना लन्च छोड़ कर
जब भी लेने आते मुझको मेरी रगंत रंग जाती
मेरे मुलायम बालों ने अब आकार ले लिया था
मम्मी के हाथों से गुन्थी रिब्बन वाली चोटियों का
तुम तब भी मेरे खुले रिब्बन के छोटे बड़े फूल बनाते रहे
हर लाल बत्ती पर गून्थते रहे मेरी अकसर खुली चोटियां
गोल मोल अजब गजब होती थी घूमघुमाती चोटियां
ऱिब्बन के फूल तो जैसे थे मम्मी की पहेलियां
कैसे लपक कर गोद में उठाते थे मुझे
और टांग लेते थे अपने कन्धों पर मेरा बस्ता व वाटर बौटल
नही भूलता मुझे तुम्हारे संग नहाना
नाली में कपड़े ठूंस ठूस तेज पानी चलाना
पिछले आंगन पानी की निकासी रोक
होम मेड स्विमिंग पूल बनाना
मेरे सिर पर साबुन लगाना पर मेरी आंखे बचाना
अब भी याद है मुझे
चन्डीगढ में बारिश का आना
तुम्हारा मेरे लिये कागज की नाव बनाना
सड़क पर मेन होल की तरफ तेजी से बढते
बरसाती पानी मे मेरी नाव चलाना ,मुझे सिखाना
मेरे साथ भीगना मेरी नाव पकड़ कर लाना
आज भी याद है मुझे
तुम्हारे साथ सैक्टर सत्तारां में
गणतन्त्र दिवस की परेड देखने जाना
तुम्हारे कदमो से कदम मिलाने
को मैने बस दौड़ते जाना
तुम्हारे कन्धों पर बैठ परेड देखना
दशहरे का रावण जलते देखना
वो कामागाटामारू का मेला
वो इन्दिरा गान्धी के ईन्तजार की कतारें
वो सजंय गान्धी की कार पर पत्थर की बौछारे
तुम्हारे संग ही तो देखी थी इन नन्ही आंखों ने
शेष फिर -यह सहयात्रा मित्रता तो लम्बी चली थी
सभी को मय्यसर उस रात दीवाली कहाँ 
बुहारते हैं सुबह तो सौगात आती है
बिछुड़ के तारे बन आसमा में टिमटिमाते रहे है जो रोज 
हर दीवाली उन्हें दिया बना अपने आँगन में उतारा मैंने
कुछ दीयों की माटी हो गयी सरहद पर 
माटी में मेरी दिया आँखों का तेल से दिल में जला है मेरे 
यह दिवाली सरहद के दियो के नाम
बहलाऊँ मन को कैसे
शाम बिताऊं तो कैसे
गुम रहता है महफ़िल के बाहर
गीतों से बहलाऊँ कैसे
साँस लगे जैसे भार है कोई 
तन से बाहर भगाऊँ कैसे
सब कुछ तो है पाया मैंने
खुद से जी है चुराया मैंने
सन्नाटो में रहना चाहूँ
अंधेरों को प्रेम है मुझसे
अब और नहीं रहना इस जग में
कोई और वतन है बुलाये मुझको
बहुत कुछ गायब है मुझ में से
खुद को जब जब खोजा मैंने
उदासीनता अक्सर मुझ में घुसपैठ करती है और मैं दुनिया से बाहर चली जाती हूँ और हमेशा के लिए चल दूँ यही ख्याल जगमगाते है जब कहे तब चले आते है

कोई लिखे कविता मुझ पर भी



कोई लिखे कविता मुझ पर भी 
इतनी तो मैं हकदार नहीं 
अधिकार की बातें क्या रखूं 
मुझ पर मेरा अधिकार नहीं 
दिन रात गुजरते रहे उन्हें देखते 
वो कहते हैं मुझे प्यार नहीं
कम बोलने वाले हैं सुहाए उन्हें
बहुत बोलने वाले उन्हें दरकार नहीं
दिल कहीं रुके तो यह शब्द रुके
रुक जाने वाले तो हम सवार नहीं
शोरोगुल में चैन से सोतेे हैं हम
सन्नाटे में रहने को हम तैयार नहीं
कोशिश बहुत की तुम से हो पाये हम
बदल पाने के अब कोई आसार नहीं
खुद को खुद में ढूंढते भी तो कैसे
मेरे तन मन की मलकियत मुझे ही देने को वे तैयार नहीं
दाना पानी से छत तक मोहताजी हूँ उनकी
मेरा तो कोई व्यापार नहीं रोजगार नहीं
जो भी किया सरे बाजार किया
अपना तो कोई भी राजदार नहीं
सीढ़ी बना के फासले तय किये लोगो ने
मुस्कुराया बांस भी और कील भी मेरी
टूटी नहीं मैं सीढ़ी भी कितनी लचकदार रही
कहते हैं बुढ़ापा अकेला हैं
मेरे पास तो सखियों की भरमार रही
सुनीता धारीवाल

पन्ने




खुले पन्नों को कौन पढता है
 कौन सहेजता है जनाब 
कुछ हाथ पोंछ लेते है
 कुछ धूल झाड़ लेते है 
कुछ मुँह ढांप लेते है
 कुछ फेंक देते हैं 
मेरा जीवन रहा 
खुली किताब के बिखरे पन्ने
कोई जैसे चाहे
 शब्दों की मेरे व्याख्या कर ले
मंचासीन है वो 

जो नकल हमारी करते रहे
घर बैठे हुनरमंदों को 

दे आवाज कौन बुलाता है जनाब 

सुनीता धारीवाल