शुक्रवार, 24 मार्च 2017

कहाँ पता था

कहाँ पता था
यूँ सजा लुंगी तुम्हे
माथे पे अपने
बिंदी की तरह

कहाँ पता था
यूँ  सजा लुंगी तुम्हे
आँखों में अपनी
काजल की तरह

मुझे कहाँ पता था
महकोगे तुम ही
मेरी हर सांस में
मदमाते इत्र से

मुझे कहाँ पता था
तेरे ख्याल से ही
दहकेगा  बदन मेरा
दावानल की तरह

मुझे कहाँ पता था
तुझे  मिलने से
चहक उठेगा मन मेरा
कलरव की तरह

मुझे कहाँ पता था
यूँ प्यार भी होगा
इकतरफा भी होगा
दीवानो की तरह

मुझे कहाँ पता था
तुम पास भी होंगे
तुम साथ भी होंगे
पर बेगानो की तरह

मुझे कहाँ पता था
बिरहन सी रहूंगी
बहारो में भी
पतझड़ की तरह

सच में नहीं पता था
मुझे तुम यूँ मिलोगे
रेगिस्तान में जैसे
झूठे जल की तरह

जितना निकट जाउंगी
उतना दूर मिलोगे
किसी छल की तरह

बुधवार, 22 मार्च 2017

तुम एक बार
देखो तो सही
मुझे गौर से
मैं तुम ही हूँ
तुम बरगद पर 
बेल सी लिपटी
महकती हूँ

तुम एक बार
सोचो ती सही
मैं तुम ही हूँ मैं
तुम सागर में
गहरे हूँ डूबी
किसी सीप में
मोती सी
चमकती हूँ

बोलो तो सही
तुम ही हूँ मैं
किसी बचपन की
जिद सी हूँ
देख तुम्हे मचलती हूँ
और चिल्लाती हूँ
तुम भी कुछ भी कभी
कहो तो सही

सुनो तो सही
तुम ही हूँ मैं
तेरी धड़कन में मैं
धड़कती हूँ
तेरी रक्त शिराओं में
बहती हूँ
जीवन की तरह
तुम सुनो तो सही
मीठा शोर हूँ मैं
तेरे भीतर का

महसूस तो करो
तुम ही हूँ मैं
तेरी सांसो की
रफ़्तार में मैं
रहती हूँ
तूफ़ान की तरह
मनमानी हूँ मैं
तेरे तन मन  की
दीवानी हूँ मैं

तुम जानो तो सही
मैं तुम ही हूँ
तेरे हर  साज की
आवाज में मैं
सुंदर सा स्वर हूँ
तेरे स्पर्श  से
गुनगुनाती हूँ मैं
तेरा ही गीत बन
फ़ैल जाती हूँ
सृष्टि में

तुम मानो तो सही
मैं तुम ही हूँ
तेरे सब  सवालो में
जवाब सी हूँ
तेरे हर बवालों में
लाजवाब सी हूँ मैं
तेरी हर नेकी का
हिसाब सी हूँ मैं
तेरे ही मन अक्षर की
नई किताब हूँ मैं
तेरी रचना में  स्याही सी
आबाद हूँ मैं

सोमवार, 20 मार्च 2017

नहीं जानती मैं
लागी का हुनर
बस तेरी हो जाऊं
इतना ही आता है
तुझ में मैं खो जाऊं
इतना ही  आता है
हर साँस में जीवन से तुम
आते हो जाते हो
दिल की हर धड़कन में
कम्पन सा भाते हो
आँखों की पुतली में
फैलाव तुम्हारा है
मेरी मुस्कान की रंगत तुम
तुम हंसने की वजह भी हो
रूह से भी कहीं हल्के
जज्बात ये मेरे है
ख्वाबो ने ख्यालो ने
तेरे अक्स उकेरे है
मैं न रही मैं कब से
बस तुम हो जाती हूँ
तेरे याद की परिधि में
जब खुद को पाती हूँ
विश्वास तुम्हारा हूँ
आभास तुम्हारा हूँ
तुम देखो नजर भर के
संबल मैं तुम्हारा हूँ
एक बार कहो तुम भी
मैं  तेरा  सहारा हूँ
मुझको भी सुनना है
कि मैं प्यार तुम्हारा हूँ
ये पागलपन है मेरा
कि तुमको पाना है
साँसों के आने जाने को
जीना कब कहते है
साँसों का टकराना ही
जीवन  होता है
आँखों के मूंदने को
हम नींद नहीं कहते
आँखों में आँखों का  खुला रहना 
ही सोना होता है
मुझ दीवानी की बातें
तो खत्म नहीं होती
रात और दिन तुमसे ही
बतियाना होता है
हूँ बावळी तुम्हारी
तुम पे मर जाना होता है
तुम आओ तो झूमूं मैं
न आओ तो बिरहा में
मुझको मिट जाना होता है
क्यों प्रेम हुआ तुमसे
ये प्रश्न सुलझाना है
जब याद करूँ तुमको
तब आना होता है
शेष फिर ....

बुधवार, 8 मार्च 2017

पूछते रहिये मिजाज मेरा बस यही तो है इलाज़ मेरा

पूछते रहिये मिजाज मेरा
बस यही तो है इलाज़ मेरा

ताल्लुक


तालुक्क् है आजकल मेरा जिस यार से
कम ही देखता है मुझे प्यार से

रोके से मेरे भी रुकता नहीं
निकले है बाहर मेरे इख़्तियार से

डरता है बढ़ जाएँ न  मुश्किलें कही
एतबार नहीं करता किसी ऐतबार पे  

टूट कर चाहेगा जब एतबार कर लेगा
अभी तो शक है उसे मेरे करार पे

पाले है वो तूफान  हकीकतों के साथ
आये न उसका मन किसी खुशगवार पे

कितना आदी है वो जमीं पे चलने का
वो रखता नहीं नज़र किसी भी सवार पे

चन्द रोज बस चलना था संग मुझे
करता नहीं वो साँझ अस्थाई खुमार से

फूंक फूंक रखे है हर कदम अपना
अक्ल ज्यादा रखे है मुझ समझदार से

क्या जानू मैं उसके दिल की बात
रखे है दूर खुद को मेरे बुखार से

सुनीता धारीवाल

मंगलवार, 7 मार्च 2017

सुबह

बाहर भीगे हैं आँगन
भीतर मेरे मन का आँगन
भीगे है और भागे है
तुम्हारे पास जाने को
अल सुबह भी है दीवानी सी
भिगो रही है मेरी
आँखों के कोरो को
और बहे जाते हो तुम
मेरी आँखों से झर झर
खारे से कारे कारे से
दलदली सा है मन
धंसा हुआ है बेतरतीब सा
तेरी आँखों की हाँ में
तेरी जुबान की चुप्पी में
खोज नहीं पाता है
कमल बीज कोई
जो पनपे इस दलदल में
बहार ला दे मादक सी
वृक्ष पर लिपटी पुष्प लता सी
खिल जाऊं मैं हर्षाऊँ मैं
मेरी खुश्बू में महको तुम
बावरे से हो दहको तुम
बहार बने हम तुम दोनों
नवजीवन हो निर्जन में

बरसात सुबह

बाहर भीगे हैं आँगन
भीतर मेरे मन का आँगन
भीगे है और भागे है
तुम्हारे पास जाने को
अल सुबह भी है दीवानी सी
भिगो रही है मेरी
आँखों के कोरो को
और बहे जाते हो तुम
मेरी आँखों से झर झर
खारे से कारे कारे से
दलदली सा है मन
धंसा हुआ है बेतरतीब सा
तेरी आँखों की हाँ में
तेरी जुबान की चुप्पी में
खोज नहीं पाता है
कमल बीज कोई
जो पनपे इस दलदल में
बहार ला दे मादक सी
वृक्ष पर लिपटी पुष्प लता सी
खिल जाऊं मैं हर्षाऊँ मैं
मेरी खुश्बू में महको तुम
बावरे से हो दहको तुम
बहार बने हम तुम दोनों
नवजीवन हो निर्जन में

शनिवार, 4 मार्च 2017

हड्डियों से भी  जहाँ चूल्हे जलते है #गलियाँ तो वो भी जहाँ में

बहुत सी बदनाम गलियों से गुजर घर आएं हैं # गालियां अब असर नहीं करती

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

हाथ जोड़ा ए पखियाँ दा 
वे इक वार तक सोहनेया 
की जांदा ए अखियाँ दा

दो कारा बजार आइयाँ 
झिडक न देयीं सोहनया 
अखां करण दीदार आइया 

मुल्तान नू राह जांदा 
मौत दा नाम बनदा 
गम सजना दा खा जांदा 

कोई कतनी आं रू माहिया 
इक चंगा तू लगदा 
दूजा फेर वि तू माहिया 

मीट्टी चढ़ गई ए टैरा 
सजन मना लेना 
हाथ रख के पैराँ ते

कोई चिमटा आग जोगा 
न सानू आप राखिया ई 
न रखिया ही जग जोगा 


गुलाब दे फुल ले ले 
जे रब्ब तौफीक देवे 
बन्दा सजना नू मुल्ल ले ले

कोई सोने का किल माहिया 
जात न रलदी चन्ना 
रल जांदे ने दिल माहिया 


कोई सोने का किल माहिया 
लोका दिया रोण अखियाँ 
साडा रोंदा ए दिल महियाँ 

काली जूती गोरा पैर होवे 
सज्जी आख फडकदी ए 
साडे सजना दी खैर होवे 

छापड़ी च अम्ब तिरदा
एस जुदाई नालो 
रब्ब पैदा ही न करदा 

तकड़ी वि तुल गई ए 
सजना ने आवाज मारी 
जुत्ती पौनी वी भूल गयी ए 


कबूतर लाइ बाजी 
जिहदे पीछे मैं रुल गई 
ओह बोल के नहीं राजी 


कासनी दुप्पटे वालिये मुन्दा आशिक तेरे 







गुरुवार, 2 मार्च 2017

तेरी खुशबू का पता करती है
मुझ पर एहसान हवा करती ह
: ये जो
तुम हो
तुम ही बाक़ी हो मुझ मेँ..

वो जो
मैं थी
वो तो मर गई तुम पर.!