तालुक्क् है आजकल मेरा जिस यार से
कम ही देखता है मुझे प्यार से
रोके से मेरे भी रुकता नहीं
निकले है बाहर मेरे इख़्तियार से
डरता है बढ़ जाएँ न मुश्किलें कही
एतबार नहीं करता किसी ऐतबार पे
टूट कर चाहेगा जब एतबार कर लेगा
अभी तो शक है उसे मेरे करार पे
पाले है वो तूफान हकीकतों के साथ
आये न उसका मन किसी खुशगवार पे
कितना आदी है वो जमीं पे चलने का
वो रखता नहीं नज़र किसी भी सवार पे
चन्द रोज बस चलना था संग मुझे
करता नहीं वो साँझ अस्थाई खुमार से
फूंक फूंक रखे है हर कदम अपना
अक्ल ज्यादा रखे है मुझ समझदार से
क्या जानू मैं उसके दिल की बात
रखे है दूर खुद को मेरे बुखार से
सुनीता धारीवाल
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