बुधवार, 22 मार्च 2017

तुम एक बार
देखो तो सही
मुझे गौर से
मैं तुम ही हूँ
तुम बरगद पर 
बेल सी लिपटी
महकती हूँ

तुम एक बार
सोचो ती सही
मैं तुम ही हूँ मैं
तुम सागर में
गहरे हूँ डूबी
किसी सीप में
मोती सी
चमकती हूँ

बोलो तो सही
तुम ही हूँ मैं
किसी बचपन की
जिद सी हूँ
देख तुम्हे मचलती हूँ
और चिल्लाती हूँ
तुम भी कुछ भी कभी
कहो तो सही

सुनो तो सही
तुम ही हूँ मैं
तेरी धड़कन में मैं
धड़कती हूँ
तेरी रक्त शिराओं में
बहती हूँ
जीवन की तरह
तुम सुनो तो सही
मीठा शोर हूँ मैं
तेरे भीतर का

महसूस तो करो
तुम ही हूँ मैं
तेरी सांसो की
रफ़्तार में मैं
रहती हूँ
तूफ़ान की तरह
मनमानी हूँ मैं
तेरे तन मन  की
दीवानी हूँ मैं

तुम जानो तो सही
मैं तुम ही हूँ
तेरे हर  साज की
आवाज में मैं
सुंदर सा स्वर हूँ
तेरे स्पर्श  से
गुनगुनाती हूँ मैं
तेरा ही गीत बन
फ़ैल जाती हूँ
सृष्टि में

तुम मानो तो सही
मैं तुम ही हूँ
तेरे सब  सवालो में
जवाब सी हूँ
तेरे हर बवालों में
लाजवाब सी हूँ मैं
तेरी हर नेकी का
हिसाब सी हूँ मैं
तेरे ही मन अक्षर की
नई किताब हूँ मैं
तेरी रचना में  स्याही सी
आबाद हूँ मैं

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