नहीं जानती मैं
लागी का हुनर
बस तेरी हो जाऊं
इतना ही आता है
तुझ में मैं खो जाऊं
इतना ही आता है
हर साँस में जीवन से तुम
आते हो जाते हो
दिल की हर धड़कन में
कम्पन सा भाते हो
आँखों की पुतली में
फैलाव तुम्हारा है
मेरी मुस्कान की रंगत तुम
तुम हंसने की वजह भी हो
रूह से भी कहीं हल्के
जज्बात ये मेरे है
ख्वाबो ने ख्यालो ने
तेरे अक्स उकेरे है
मैं न रही मैं कब से
बस तुम हो जाती हूँ
तेरे याद की परिधि में
जब खुद को पाती हूँ
विश्वास तुम्हारा हूँ
आभास तुम्हारा हूँ
तुम देखो नजर भर के
संबल मैं तुम्हारा हूँ
एक बार कहो तुम भी
मैं तेरा सहारा हूँ
मुझको भी सुनना है
कि मैं प्यार तुम्हारा हूँ
ये पागलपन है मेरा
कि तुमको पाना है
साँसों के आने जाने को
जीना कब कहते है
साँसों का टकराना ही
जीवन होता है
आँखों के मूंदने को
हम नींद नहीं कहते
आँखों में आँखों का खुला रहना
ही सोना होता है
मुझ दीवानी की बातें
तो खत्म नहीं होती
रात और दिन तुमसे ही
बतियाना होता है
हूँ बावळी तुम्हारी
तुम पे मर जाना होता है
तुम आओ तो झूमूं मैं
न आओ तो बिरहा में
मुझको मिट जाना होता है
क्यों प्रेम हुआ तुमसे
ये प्रश्न सुलझाना है
जब याद करूँ तुमको
तब आना होता है
शेष फिर ....
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
सोमवार, 20 मार्च 2017
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