रविवार, 25 जून 2017

अच्छा लगता है

लेखिका ना मालूम

*जिस औरत ने भी इसे लिखा है कमाल लिखा है*
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*मुझे अच्छा लगता है मर्द से मुकाबला ना करना और उस से एक दर्जा कमज़ोर रहना -*

*मुझे अच्छा लगता है जब कहीं बाहर जाते हुए वह मुझ से कहता है "रुको! मैं तुम्हे ले जाता हूँ या मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ "*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझ से एक कदम आगे चलता है - गैर महफूज़ और खतरनाक रास्ते पर उसके पीछे पीछे उसके छोड़े हुए क़दमों के निशान पर चलते हुए एहसास होता है उसे मेरा ख्याल खुद से ज्यादा है*

*मुझे अच्छा लगता है जब गहराई से ऊपर चढ़ते और ऊंचाई से ढलान की तरफ जाते हुए वह मुड़ मुड़ कर मुझे चढ़ने और उतरने में मदद देने के लिए बार बार अपना हाथ बढ़ाता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब किसी सफर पर जाते और वापस आते हुए सामान का सारा बोझ वह अपने दोनों कंधों और सर पर बिना हिचक  किये खुद ही बढ़ कर उठा लेता है - और अक्सर वज़नी चीजों को दूसरी जगह रखते  वक़्त उसका यह कहना कि "तुम छोड़ दो यह मेरा काम है "-*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मेरी वजह से सर्द मौसम में सवारी गाड़ी का इंतज़ार करने के लिए खुद स्टेशन पे इंतजार  करता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे ज़रूरत की हर चीज़ घर पर ही मुहैय्या कर देता है ताकि मुझे घर की जिम्मेदारियों के साथ साथ बाहर जाने की दिक़्क़त ना उठानी पड़े और लोगों के नामुनासिब रावैय्यों का सामना ना करना पड़े-*

*मुझे बहोत अच्छा लगता है जब रात की खनकी में मेरे साथ आसमान पर तारे गिनते हुए वह मुझे ठंड लग जाने के डर से अपना कोट उतार कर मेरे कन्धों पर डाल देता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे मेरे सारे गम आंसुओं में बहाने के लिए अपना मज़बूत कंधा पेश करता है और हर कदम पर अपने साथ होने का यकीन दिलाता है -*

*मुझे अच्छा लगता है जब वह खराब  हालात में मुझे अपनी जिम्मेदारी  मान कर सहारा  देने केलिए मेरे आगे ढाल की तरह खड़ा हो जाता है और कहता है " डरो मत मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा"* -

*मुझे अच्छा लगता है जब वह मुझे गैर नज़रों से महफूज़ रहने के लिए समझाया  करता है और अपना हक जताते हुए कहता है कि "तुम सिर्फ मेरी हो "* -

*लेकिन अफसोस हम में से अक्सर लड़कियां इन तमाम खुशगवार अहसास को महज मर्द से बराबरी का मुकाबला करने की वजह से खो देती हैं फिर* ۔۔۔۔۔۔۔۔

good morning....sir ji

बुधवार, 14 जून 2017

कहाँ छुपे हो

कहाँ छुपे हो सीने में
तो सांसे भारी रहती है

आंखों में रहते हो तो
पलके भारी रहती है

ख्वाबो में तुम रहते हो तो
नींदे भारी रहती है

दिल मे तुम रहते हो तो
हर धड़कन बेचारी रहती है

तुम रहते हो जहन में धंसे हुए
मेरी मति मारी रहती  है

बस पा लूँ तुम्हे पाने की तरह
मेरी यहीं  गरारी रहती है

सुनीता धारीवाल

मंगलवार, 13 जून 2017

प्यास

मन की सूखी धरती पर
मैंने प्यास बिछा दी है

तुम बरसो तो तब जानूं
मैंने तो जान लगा दी है

बादल तुम और धरती मैं
जलधर को मैंने  सदा दी है

मैं सूखी माटी फट बैठी हूँ
मैं आस तेरी में डट बैठी हूँ

सब  जल थल हो जाना चाहूँ मैं
कर  सृजन नया इतराऊं मैं

तुम दूर गगन में उड़ते हो
बस हवा से बाते करते हो

मेरा मौन चीख कर  बुलाता है
तुम्हे सृष्टि रचना में लगाता है

चहुँ ओर प्यास ही बिछा दी है
तेरे रिसने को जगह बना दी है

ओ बरसो मेरे तन मन पर
मैंने सावन को पुकार लगा दी है

सुनीता धारीवाल