सोमवार, 19 सितंबर 2016

घाट घाट का पानी



                         कविता -घाट घाट का पानी

ठीक ही तो कहते हो
सही पहचाना
घाट घाट का पानी
 पिया है मैंने
यही रहा मेरा
आजीवन पर्यटन
कितने मंदिरो  मस्जिदो  गुरुद्वारों के घाट
पहुंची  भी और पानी चखा भी
कितने तालाबो का कीचड़ सना पानी
जो नहाने भर का था वो पिया भी
कभी संतान के लिए
कभी तुम्हारे लिए
 कभी रियाया के लिए
जिन घाटो पर तर्पण होता है
वह भी चखे मैंने
जहाँ नव विधवाएं चूड़ियाँ तोड़
वैधव्य स्नान करने जाती है
उन घाटो का जल भी
अंजुली भर चखा मैंने
जिन जोहड़ो पर अल सुबह लोग
पाणी कानी के हाथ धोने
जा  पहुँचते है
उसका भी स्वाद कहाँ अछूता मुझ से
उन  नमक डले लोटों का जल
 भी चखा है मैंने
जिन्हें  पंच्यात बीच बैठ भरा जाता है
और नमक डाल शपथ ली जाती है कि
बिरादरी बीच का मामला है
कोई ठाणे नहीं जाएगा
गरीब की बेटी  लुटी आबरू
 और क़त्ल का मामला
यहीं लोटे के सामने सुलझाया जायेगा
याद आया मैंने तो
उस तालाब का जल भी मुहँ लगाया है
जहाँ सर पर मैला ढोने वाली औरत ने
टोकरा एक ओर रख अपना सर धुलवाया है
गावं देहात की गली गली में  खुले
उन छोटे छोटे पूछाघरों की अँधेरी
गुफाओ में जहाँ भूत प्रेत
बदन उघाड़ कर डराए जाते हैं
और जल में कुछ मन्त्र फूक
प्रेत भगाए जाते है
उन बंद बोतलों का पानी भी मैंने
पी कर दिखाया है
बड़े बड़े यज्ञो में आचमन का जल
मैंने पिया है
कलश यात्राओ के कलशों में भरा
कभी 21 कभी 31 घाटो का पानी
भी मैंने पिया है
 वाल्मिक   का चमार का ,
खाती का लुहार का
सिकलीगर का  सिहमार का
बैरागी का सुनार का
जाट का सैनी का
धोबी का कुम्हार का
पंडित का रेफूजी का
धानक का सरदार का
अड़तीस जात के घर भीतर
नलको का पानी
उन्ही के बर्तनों में पिया
और जिया  है मैंने

रंडी की दुकान का
 कोठे की मचान का
मंडी के सुलतान का
 बाबे की कोठी आलिशान का
पानी भी कहाँ रहा अछूता
मेरी जिह्वा की तंत्रिकाओं से
राज दरबार के घाट का
राजाओ के ठाठ का
मंत्रिओं की बाँट का
सत्ता की आंट का
पानी पिया है मैंने
कुत्तो के पात्र का
गरीब किसी छात्र के
अभावग्रस्त गिलास का
पानी पिया है मैंने
हरी के द्वार का
पीर की मजार का
पानी पिया है मैंने
देसी का अंग्रेजी का
कच्ची दारू की भट्टी का
डूम का मिरासी का
ये दुनिया लाख चौरासी का
पानी पिया है मैंने
ये घाट घाट का पानी
जब चखा तो यकीन मानो
पानी सर चढ़ गया
फिर तो एक घाट भी नहीं छोड़ा
और पीने से मुख न मोड़ा
जितने भी घाट मैंने गिनवाये है
तुम्हारी कसम मैंने नहीं बनवाये है
ये सब तुमने ही बनाये थे मेरे लिए
कि मैं जल से बाहर ही न निकलूं
इसे आँखों में भी रखूं
इसे देह में भी रखूं
और तुम्हारे दैहिक जलप्रपात तले
अपना वजूद तलाशूँ
यकीन मानो जितना भी पानी
अपनी देह की गुफाओं से
निगला  है
सब का सब आँखों से झरा है
मन की  उलझी कंदराओं से
जबरन खींचा था जो पानी
माँ कसम खारा ही नहीं
तेजाबी हो कर मेरी
आँखों के कोरो में जा बैठा है
कितने कड़वे घूँट
पी कर मुसुकुरायी हूँ मैं
अब तो  पकी  उम्र के  रोयें
पानीयों के बांध बनाना सीख गए हैं
समेट लेते है सारा पानी
और मैं अब भी विचरती  हूँ
नए नए घाट
ताकि
घाट घाट जा कर
एक दिन खुद को पा लूँ
और उस दिन तुम कहो
घाट घाट का पानी पिए
बेगैरत  औरत
और हाँ
 घाट घाट का  पानी पीते पीते
मैं घाट घाट की बोली भी
सीख गयी हूँ
मुझे अब शर्म नहीं आती
गरियाने में
मैं जानती हूँ कहाँ शिष्ट होना है
कहाँ शिष्टाचार खोना है
बस  मेरी इसी समझ से
थोडा डर सा गया है
जमाना मुझ से
और आजकल मेरे मुहँ कम ही लगता है

सुनीता धारीवाल जांगिड

रविवार, 18 सितंबर 2016

आखर इश्क़ कविता पाठ प्रदर्शन हुआ सफल

 दिनांक 17 सितम्बर 2016 women tv india वेब पोर्टल की सदस्यों द्वारा  चंडीगढ़ के म्यूजियम एवं आर्ट गैलरी सभागार में आखर इश्क –शब्द शब्द बहे मन –कविता पाठ कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया .कार्यक्रम का शुभारम्भ हरियाणा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री राजबीर देशवाल आईपीएस ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर के किया .इस अवसर पर चंडीगढ़ ट्राईसिटी की 23 महिलाओं ने अपनी स्वरचित  कवितायेँ पढ़ी ,आज की महफ़िल में  शारदा  मित्तल,डॉ मुक्ता ,डॉ दीपांजलि,  नीलम त्रिखा, अर्चना घई, धीरजा शर्मा ,नीरज़ा शर्मा , अदिति श्योराण ,शलिनी, कविता शर्मा, शहला जावेद, कंचन, राजवंती मान,उषा आर शर्मा, गुरदीप गुल, मनजीत इन्दिरा, अन्नपूर्णा, सुनीता धारीवाल, शेली विज , राजेश शिखा श्याम राणा , रश्मि शर्मा,सुरम्या शर्मा ने अपनी कवितायेँ पढ़ी और प्रसंशा बटोरी . राजवंती मान ने अपनी ग़ज़ल में कहा शहर की हवाओं से बच कर निकलेंगे -जख्म ताज़ा मिले हैं तो ढक कर निकलेंगे -और कुछ देर ठहरने की जहमत ले लो निकलेगा गर जनाज़ा तो सन कर निकलेंगे 
धीरजा शर्मा ने युवतियों पर  तेजाब फैंकने के  अपराध पर चिंतन करते हुए कहा -तुम क्या जानो ,तेज़ाब से झुलस जाना क्या होता है !!!!क्या होती है एक साथ सौ बिच्छुओं के डसने जैसी पीड़ा !!!क्या होता है समाज का तिरस्कार झेलना और जीते जी पृथ्वी पर नरक भोगना !!!
शारदा मित्तल ने अपनी कविता में पुरुषप्रधान समाज को संबोधित करते हुए कहा -सदियों से आहत मेरे मन को स्वेच्छा से समान अधिकार दे दो तुम 
सुरम्या शर्मा ने अपनी  कविता में माँ को सबोधित करते हुए कहा -ममता की मूरत है मेरी अम्मा एक मुहूर्त है 
बस पाँव छुए मेरे काम हुए  .नीरजा शर्मा ने औरत की महिमा का बखान करते हुए कविता पढ़ी -भगवान की अद्भुत कृति
पता नहीं -कितना समय लगाया होगा -रचना की होगी जब इसकी। -जन्म से मृत्यु तक-जीवन बन जाता है ग्रन्थ जिसका-हर पन्ना करता है मंथन उसका।नीलम त्रिखा ने अपनी कविता में कहा -मैं सब कुछ छोड़ कर तेरी पनाह में आ गयी प्यारे मुझे अबला समझने कभी तुम भूल मत करना .उषा आर शर्मा ने कविता में कहा आज की नारी लड़ रही है न खत्म होने वाली लड़ाई  निरन्तर अपने अन्दर भी और बाहर भी 
शेहला जावेद ने ममता कविता पढ़ते हुए कहा -मन उपवन मै खिला  एक  पौधा-ममता,आशा,स्नेह सै उसको सींचा
रश्मि शर्मा ने कुछ यूँ कहा -चलते चलते यूं ही इक् दिन ज़िन्दगी रुक जाएगी-चल पड़ेगा कुछ पलों का काफिला पीछे मेरेखून से सींचा उसे इक्क बीज को पौधा किया-पेड़ बनकर गैर की छत पर झुका पीछे मेरे
कंचन ने प्रेमिका विरह वर्णन करते हुए कहा -देखो तुम्हारी यादो का मौसम हर दिन मेरी जिंदगी में किस तरह गुजरता है .डॉ शालिनी की कविता में इश्वर की इबादत के स्वर सुनाई दिए तेरे सजदे में रब मेरे  हमें सर को झुकाना है .शिखा ने बाल शोषण पर चिंतन करते हुए मैले कुचैले थैले वाले बच्चे का हाल बयां किया .शैली विज ने कुछ यूँ सुनाया कि क्या करूँ कि कुछ लोग खर्च हो गए .सुनीता धारीवाल ने घाट घाट का पानी कविता कहते हुए सामजिक तंज कसा और समाज का चित्र प्रस्तुत किया .अर्चना घई ने अपनी कविता में कहा मैं नहीं चाहती कि सुहागन मरुँ वो कैसे रहेगा अकेला मैं तो रह लूंगी बच्चो की रसोई में भी वहीँ अदिति श्योराण ने कविता में चुनौतियों को ललकारते हुए कहा कि अब मुझे लज्जा नहीं आती .कविता शर्मा ने कविता गा कर सुनाई -ए कैसा रंग है माए-जो मैनू चढ़ गया है.
वरिष्ठ  कवियत्री राजेंदर कौर ने नए चंडीगढ़ शहर का खूबसूरत वर्णन करते हुए कहा -मेरा शहर चंडीगढ़ सोहना अते प्यारा -साफ़ साफ़ टे पक्का पक्का ए सारे द सारा -और लोकप्रिय वरिष्ठ कवियत्री सुश्री मंजीत  इंदिरा  ने खूबसूरत गज़ल गा कर पता हुंदा सादे नाल होनियाँ निरालियाँ कच्चियाँ कचूरा नाल पौंदे न प्यालियाँ समां बाँध दिया .  इस  यादगार शाम में कवियत्रियों ने खूब प्रसंशा बटोरी 

. women tv india पोर्टल की संरक्षक व मूल संस्था अंकित धारीवाल मेमोरियल ट्रस्ट की संस्थापक  श्रीमती सुनीता धारीवाल ने बताया इस परियोजना का उदेश्य महिलाओं की प्रतिभा को मंच देना और देश भर की महिलाओं के बीच सार्थक संवाद स्थापित करना है और मीडिया कर्म में महिलाओं की सक्रीय भागीदारी को बढ़ाना है . इस परियोजना की सचिव शालिनी शर्मा ने बताया कि wtv के साथ देश भर की महिलाएं जुडी है और अपने अनुभव व् ज्ञान सांझा करने के लिए wtv एक सार्थक मंच है –हम ऑनलाइन विडियो के माध्यम से देश और विदेश की महिलाओं तक पहुँच रहे हैं और अपने आउटरीच इवेंट्स के माध्यम से महिलाओं से  सीधे संपर्क में हैं आज का कार्यक्रम इसी दिशा में एक प्रयास है .भविष्य में भी हम इस प्रकार के आयोजन करते रहेंगे और महिलाओं को अपनी मन की बात कहने और अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर अवसर मिलेंगे . wtv द्वारा बनाये गए नारी कलम साहित्यिक मंच से चंडीगढ़ और देश के विभिन्न राज्यों से 50 महिलाएं जुड़ गयी हैं और मात्र एक  महीने के परिश्रम से  ही हम आपके सामने मंच पर हैं .

श्री राजबीर देसवाल ने अपने संबोधन में कहा कि हर आयु वर्ग की कवियत्रियों को सुनना एक शानदार अनुभव रहा उन्होंने कार्यक्रम की प्रसंशा की और अपनी नज़म भी पढ़ कर सुनाई -

इस अवसर पर शहर के सम्मानित नागरिक पहुंचे और कार्यक्रम का आनन्द उठाया 
कार्यक्रम के प्रबंधन में लाइट्स और प्रोजेक्टर प्रेजेंटेशन पर मंझली सहारण ने आवभगत में नीरजा शर्मा व धीरजा शर्मा ने विडियो एडिटिंग में रुबीना परवीन ,मंच सज्जा में कंचन व ममता सिंह ने वित्त व्यवस्था में शारदा मित्तल और सुनीता गर्ग ने  मौके पर  वरिष्ठ साहित्यकार अर्श राम अर्श ने women tv india को संभावनाओ का मंच बताया और कवियत्रियों की प्रसंशा की 
 भंडारी trust के अध्यक्ष अशोक भंडारी ने कहा कि ये कार्यक्रम सुखद अनुभूति है जहाँ महिलाओं ने अपनी कविताओं के माध्यम से अलग अलग भाव के खूब रंग बिखेरे .इस आयोजन में पंचकूला शहर  की साहित्यिक संस्थाएं किदार  अदबी ट्रस्ट और भंडारी अदबी ट्रस्ट ने भी  सहयोग किया 
अंकित धारीवाल मेमोरियल ट्रस्ट की अध्यक्षा अधिवक्ता  विभाति पढियारी  ने  विडियो के माध्यम से औपचारिक अभिनन्दन किया 
आयोजन के  चित्र संलग्न है कृपया देखें





आखर इश्क़ तस्वीरें एल्बम


शनिवार, 10 सितंबर 2016

सुन ससुराल -मुंबई निवासी संगीता जांगिड की लिखी कविता

देखिये सुनिए सोशल मीडिया पर सर्वाधिक चर्चित और वायरल कविता "सुन ससुराल" अपनी मूल रचयिता श्रीमती संगीता जांगिड के श्री मुख से -महिलाओं द्वारा असंख्य बार सोशल मीडिया और व्हाट्स एप्प पर शेयर की गयी कविता विशेष तौर से आप दर्शको के लिए 
कविता सुन ससुराल
अच्छा लगता हैं तेरा साथ
अब तक जो किया सफर
थामकर तेरा हाथ
पहला पाँव जब धरा था
तेरे नाम से ही मन डरा था
बिन आवाज़ थालियों को उठाया था
साड़ी में एक एक कदम डगमगाया था
रस्मों रिवाजों को तहेदिल से निभाया था 
खनकती चुड़ियों से कड़छी को चलाया था
डरते डरते पहली बार खाना बनाया था
बस ऐसे ही मैंने
सबको अपना बनाया था
सुन ससुराल
तुम साक्षी हो मेरे एक एक पल के
वो पिया मिलन
वो पहली बार जी मिचलाना
खट्टी चीज़ों पर मन ललचाना
वो पहली बार 
अपने अंदर जीवन महसूस करना
कपड़े सुखाने आँगन में डोलना
पापड़ का कच्चा कच्चा सा सेंकना
गोल रोटी के लिये जद्दोजहद करना
दाल का तड़का, दूध का उफनना
कटी हुई भिंडी को धोना
पहली बार हलवे का बनाना
पहली दिवाली पर दुल्हन सी सजना
करवा चौथ पर मनुहार करवाना
हाँ ससुराल 
तुम्हीं ने दिये ये अनमोल पल
वधु बन आयी थी
तुम्हीं थे जिसने सर आँखों बैठाया
बड़े स्नेह से अपनापन जताया
यही आकर मैंने सब सीखा और जाना
कभी किसे मनाया तो कभी किसे सताया
एक ही समय में
मैंने कितने किरदारों को निभाया
खुद को खो खोकर मैंने खुद को पाया
सुन ससुराल
मायके के आगे भले ही
हमेशा उपेक्षित रहे तुम
लेकिन 
फिर भी मेरे अपने रहे तुम
मायके में भी मेरा सम्मान रहे तुम
मेरे बच्चों की गुंजे जहाँ किलकारियाँ 
वो आँगन रहे तुम
मेरे हर सुख दुख के साक्षी रहे तुम
सुन ससुराल
पीहर की गलियाँ याद आती हैं
गीत बचपन के गुनगुनाती हैं
लेकिन 
मायके में भी तेरी बात सुहाती हैं
तेरा तो ना कोई सानी हैं
तू ही तो मेरे उतार चढ़ाव की कहानी हैं
कितने सबक़ तुने सीखाये
पाठशाला ये कितनी पुरानी हैं
सुन ससुराल 
अब तू ससुराल नहीं 
मेरा घर रुहानी हैं ।

सुनीता जांगिड मुंबई 
संपर्क -wtvindia@gmail.com
विडियो  देखने के लिए इस लिंक पर जाएँ 

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

नारी कलम गोष्ठी तृतिय














सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता धारीवाल की पहल से पंचकूला में नारी कलम का रंग दिखने लगा है। नारी कलम साहित्यिक मंच के बैनर तले पंचकूला के सैक्टर 4 में तीसरी काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। गोष्ठी की अध्यक्षता शालिनी शर्मा ने की।
बेटियों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं पर अपना दुख जताते हुए उन्हें आत्महत्या न करने का संदेश देते हुए कहा
मैं कितनी आहात हूँ और टूटी हूँ ,काश तुम्हे इसका गुमां होता
एक बार तेरे बिना मेरी हालत का गुमां होता
वहीं कंचन निरव की कलम डायरी पर कुछ इस तरह चली
डायरी से निकल कर शब्द
मेरे कमरे में घूमते हैं,
मुझसे बातें करते हैं
एक शब्द तकिये पर बैठ निहारता है मुझे
याद है एक दिन तुमने मुझे एक डायरी दी थी
इनके बाद निलम त्रिखा ने विधवा स्त्री के मन की व्यथा को बताती रचना कही, उन्होंनें लिखा
जिस दिन उनकी अस्थियों को गंगा में बहाया मैंने
उस दिन से दुनिया को कितनी बदली पाया मैंने
एक डुबकी ने कितना कुछ बदला था
अब नाम मेरा बेचारी अबला था
वहीं सुनीता धारीवाल ने देश के सेनानियों का मनोबल बढ़ाते हुए उन्हें संबोधित करते हुए कहा
ओ प्रहरी
मत समझना रण में अकेले हो तुम
मैं तुम्हे तुम्हारी पलकों पर जमी धूल में मिलूँगी
तुम्हारे बंकर की रेत की बोरी के रेशों में मिलूँगी
शालिनी शर्मा ने पिता को वट वृक्ष बताते हुए कहा
तेरी बेटी होने का गर्व मुझे
सुन आज पिता मेरे मन की बात
जब भी लेखनी चली मैंने लिखे तेरे लिए जज्बात
नीरजा शर्मा ने अपने मन की बात कुछ यूँ रखी –
आँखों मेँ पानी आ जाता है जब अखबार सामने आता है
पर  जीवन मेँ आगे बढ़ना होगा
कि फिर कोई रावण पैदा न होने पाये
फिर किसी सीता का हरण न होगा
नारी शक्ति जन–जन की शक्ति बन जाएगी
घर –घर  मेँ  खुशहाली छा जाएगी
ममता शर्मा ने रावण और राम के बीच अतुलित तुलना करते हुए रचना पढ़ी
राम का भी एक इरादा था
रावण की इक मर्यादा थी
संयम तो दोनों में था

गोष्ठी को सफल बताते हुए वीमेन टीवी इंडिया पोर्टल की फाउंडर और सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता धारीवाल ने बताया कि यह वोलंट्री ऑनलाइन चैनल महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए कार्यक्रम आयोजित करता है जिसका उदेशय महिलाओं के हुनर को मंच देना और उनका उत्साह वर्धन करना है। नारी कलम कार्यक्रम की यह तीसरी मासिक गोष्ठी है इस सफर में हर माह अनेक महिलाएं जुड़ रही हैं और यह मंच सार्थक सिद्ध हो रहा है। अंकित धारीवाल मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा शुरू किये गए वीमेन टीवी के साथ भी अनेक महिलाएं जुड़ रही हैं और अपनी प्रतिभा से इसे आगे बढ़ा रही हैं।

आख़र इश्क़

भाव विह्वल मन
खोज लेते हैं कुछ अक्षर
और अक्षर?
छटपटातें है
शब्द हुए जाने को
और शब्द ?
धुन की खोज में
बौराए घूमते हैं
और धुन?
है कि बस लग जाती है
और लागी?
है कि छूटती नहीं
अक्षरों से
"आख़र इश्क़"
बेवफा नहीं होता कभी
सुनीता धारीवाल जांगिड