सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

सोने के ओलिंपिक पदक की ओर भागते कदम - पिंकी जांगड़ा युवा बॉक्सर की उड़ान


                        
                                         
विश्व में बॉक्सिंग खेल मुख्यत: पुरषों के वर्चस्व का खेल रहा है.सहज जिज्ञासावश  कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहाँ महिलाओं ने अपने हाथ आजमाना नहीं चाहा .दशकों से अनेक देशों में महिलाओं के बॉक्सिंग करने पर प्रतिबन्ध था .पुरषों द्वारा खेले जाने वाले इस खेल को  बल प्रदर्शन के  खेल के रूप में जाना जाता रहा है . इस खेल को महिलायों  ने भी अठारहवी शताब्दी में ही खेलना शुरू कर दिया था,1876 में अमेरिका में महिला बॉक्सिंग का मुकाबला  में दर्ज हुआ .  महिला बॉक्सिंग को ओलिंपिक खेल बनने में सौ वर्ष  से  भी अधिक समय लगा,सन 1904 के ओलिंपिक खेलो में महिला बॉक्सिंग का पहला  प्रदर्शनी मुकाबला हुआ था और अब जाकर वर्ष 2012 के ओलिंपिक खेलो में इसे शामिल किया  गया . महिला बॉक्सिंग को ओलिंपिक खेलों में जगह पाने को सौ वर्ष से अधिक लग गए. निश्चित रूप से महिलाओं के लिए यह स्वर्णिम अवसर था जहाँ वे पदक तालिका में अपनी हिस्सेदारी कर सकती थी .भारतीय बॉक्सर ऍम सी मेरिकोम ने स्वर्ण पदक से इतिहास रचा .भारत की उत्साही बॉक्सर युवतियों में उत्साह का संचार हो गया .भारत की महिला बॉक्सिंग की हर वेट केटेगरी में युवतियां अब तैयार है और अन्तराष्ट्रीय मंचो पर पदक ला रही हैं .हरियाणा के हिसार जिले से सम्बन्ध रखने  वाली युवा बॉक्सर देश की नयी उम्मीद है और सोने का पीछा करने के लिए औरंगाबाद में राष्ट्रीय बॉक्सिंग कैंप के रिंग में  अभ्यास में  निरंतर मुक्के जड़ रही है .2014 के गल्स्गो  कामन वेल्थ खेलों में पिंकी बॉक्सिंग में भारत के लिए ताम्बे का पदक ला पाई थी अब उसके हर पदक का रजत व्  ताम्बई रंग सुनहरे में परिवर्तित  हो जाये इसी धुन में पिंकी आजकल दमखम लगा रही है .पिंकी के खेल की  तरह उसकी खुद की अब तक की यात्रा भी कम रोमांचक नहीं है. अपने भाई अमित को बॉक्सिंग करते देख कर ही पिंकी को बॉक्सिंग  रिंग तक पहुंचने  की लगन हुई और भाई ने सहयोग दिया और सफलता का सपना भी दिखाया जिसका पीछा पिंकी को ही करना था .एक बार रिंग में उतरी तो वही जीवन बन गया .पिंकी ने कहा कि मेरे कोच बलदेव सिंह जी ने मुझे पर भरोसा किया और मैंने मेहनत की .खेल के हर स्तर पर उसे अनुभवी कोच मिले जिनसे उसने सीखा .
  आरंभिक दिनों में लड़खड़ाई भी पर खुद पर विश्वास कायम रखा और प्रतियोगिताओं में जीत का सिलसिला शुरू हो गया , 2012 में तेहरवीं सीनियर वीमेन नेशनल बॉक्सिंग मुकाबले में स्वर्ण पदक, 2014,व् 2015  में आल इंडिया अन्तर रेलवे बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक , रायपुर में हुई पहली मोनेट एलिट वीमेन नेशनल बॉक्सिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक उन कई दर्जनों मुकाबलों में मिले पदको की सूची में से कुछ हैं जिन्हें पिंकी ने जीत कर अपनी पहचान बनाई .
अंतरष्ट्रीय मुकाबलों में इंडोनेशिया में बाईसवें प्रेसिडेंट कप ओपन इंटरनेशनल टूर्नामेंट में स्वर्णपदक , 2014 में दक्षिण कोरिया में हुई आठवीं महिला अमेच्योर वर्ल्ड बॉक्सिंग एसोसिएशन द्वारा आयोजित वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में क्वार्टर फाइनल तक पहुंची ,2012 में मंगोलिया में हुई एशियन वीमेन चैंपियनशिप में रजत पदक . 2012 आराफोरा गेम्स आस्ट्रलिया में वे बेस्ट बॉक्सर चुनी गई .उस से पहले भारत श्रीलंका ड्यूल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करना पिंकी के  लगातार उत्तम होते प्रदर्शन की झलक मात्र है
पिंकी हरियाणा में अपवाद है जहाँ  हरियाणा के समाज  में ये धारणा लगभग विकसित हो चुकी थी हरियाणा में केवल कृषक जाती विशेष के युवा ही खेलों में अपना मुकाम बना पाते है जिनके परिवार में  कृषि भूमि व् बहुलता में दूध घी अच्छे खान पान की बहुलता है .दलित ,कमजोर व् पिछड़े वर्ग के युवा खेलों  में नहीं जा पाते क्यूंकि खिलाडी के पोषण का सामर्थ्य इन में नहीं होता. इस मामले में सौभग्यशाली रही  हरियाणा की अति पिछड़ी जाती के  मध्यमवर्गीय परिवार से संबध रखने वाली  पिंकी ने साबित किया की इच्छाशक्ति और परिश्रम से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है , वह कहती है कि हमें समाज में स्थापित  किसी भी तरह की कोई भी धारणा को बस यूँ ही  नहीं मान लेना चाहिए और न ही  पीछे हटना चाहिए .खेल जाती धर्म के ऊपर सिर्फ मानवता को ही स्थापित करते है –खेलों का एक ही भोजन है परिश्रम और एक ही धर्म है  राष्ट्र के लिए श्रेष्ठ प्रदर्शन.  
हरियाणा व् भारत के विभिन्न  रिंगों में चुपचाप अभ्यास में लगी रही शांत और सरल व्यक्तित्व की धनी ,एकाग्र पिंकी की ने वर्ष ---में हुए  घरेलु मुकाबले में  ओलिंपिक विजेता मेरिकोम को हरा दिया  तब मीडिया व् देश का ध्यान पिंकी की ओर आकर्षित हुआ .देश में रास्ट्रीय मुकाबलों में पिंकी ने तीन बार ऍम सी मेरिकोम को हरा कर देश दुनिया को बताया की भारत की महिला बॉक्सिंग की  अगली पंक्ति भी अन्तराष्ट्रीय  मुकाबले के लिए तैयार है . पिंकी ने मेरिकोम की जगह ली और कॉमन वेल्थ गेम्स में भारत का प्रतिनिधितव किया . हालाँकि उसे कॉमन वेल्थ खेलों में कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा .पिंकी को बॉक्सिंग में जायंट किल्लर निक नाम से भी जाना जाता है.
पिंकी ने बताया की जब उसने बॉक्सिंग में करियर बनाने का मन बना लिया तो पहले  उनकी माँ थोड़ी असुरक्षित हुई .माँ समझती थी  की समाज ये मानता  है कि खेलों में आगे बढ़ने व् खेलो को व्यवसाय चुनने वाले खिलाडी औसत बुद्धि के होते हैं अर्थात पढने में नालायक लोग ही खेलों में जाते हैं और पिंकी तो पढाई में भी बहुत होशियार है हमेशा कक्षा में शिखर पर रहती है तो लोग क्या सोचेंगे .दुसरा कि खलों में भाग लेने वाली लड़कियों की शादी में बहुत कठिनाई होती वर खोजने में .बॉक्सिंग खेल में चोट लगने और चेहरा रूप बिगड़ने की भी सम्भावना होती है जिसके कारण भी आगे जीवन में गृहस्थी बसाने में मुश्किल पेश आ सकती है .पर धीरे धीरे बॉक्सिंग में उपलब्धियां हासिल करते रहने से माँ की सभी शंकाएं मिट गई .पिता ने व् माँ दोनों ने ही  हौसला बढ़ाया और साथ दिया .पिंकी का मानना है परिवार का सहयोग मिलना किसी भी खिलाड़ी  लड़की के लिए प्लस पॉइंट होता है.परिवार का साथ होना उसके आत्मविश्वास में वृद्धि ही करता है , खेल में हमेशा  उतार चढ़ाव आते है और अनेक मोवैज्ञानिक दबावों का भी सामना करना होता है .परिवार के साथ होने से हमें मनोवैज्ञानिक बल मिलता है.  
प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म मेरिकोम में दिखाया जाता है कि भारतीय बॉक्सिंग के  चयनकर्ता जानबूझ कर मैरीकोम को हटाने के लिए एक नई युवति का चयन करते है जो पिंकी ही है और उसे फिल्म में अलग नाम से दिखाया जाता है .पिंकी इस दृश्य के फिल्मांकन पर प्रतिक्रिया स्वरुप सिर्फ मुस्कुरा कर कहती है यह तो फिल्म है हम सब जानते हैं फिल्मे शुद्ध  मनोरंजन के लिए बनाई जाती है फिल्म में दर्शकों को भावुक करना यानि इमोशन जोड़ने के लिए फिल्म वालों को कुछ तो फ़िल्मी करना ही होता है इसलिए फिल्म में ऐसे दृश्य डाले गए .उसने बताया की चयनकर्ताओं ने कभी मेरी नियमों से बाहर जा कर अनुशंषा नहीं की कभी कोई पक्षपात नहीं किया  न ही कभी उसे यूँ ही बेवजह  चुना गया ,खेल में उसकी उपलब्धियों का लम्बा रिकॉर्ड है और मेरा निरंतर अभ्यास ही मेरे  काम आया .पिंकी ने बताया की वह अब तक तीन बार घरेलु मुकाबलों में एम् सी मैरिकोम को हरा चुकी हैं और हर बार  न चयनकर्ता समान होते हैं न प्रतियोगी जो भी खिलाडी अभ्यास से तैयार होता है वही भिड़ता है.ऐसे अकस्मात किसी का भी चयन नहीं हो जाता . मैरिकोम फिल्म आने के बाद भी उन्होंने मैरिकोम को पछाड़ कर कामनवेल्थ गेम्स में अपनी जगह पक्की की थी,वहाँ मुझे कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा .मैं मानती हूँ  की मैरिकोम की खेलने की तकनीक शानदार है और मैं उनकी बड़ी फैन  हूँ और वो मेरे लिए प्रेरणा रही है परन्तु उनके अभ्यास में न रहने का लाभ मुझे मिला .और यूँ भी जीवन में कोई न कोई कभी न कभी  किसी का स्थान तो लेगा ही परिवर्तन तो नियम है .खेलों में सिर्फ अभ्यास की निरंतरता, सब्र और सहनशीलता और श्रेष्ठ प्रदर्शन ही काम आता है .
पिंकी ने मैरिकोम के उस आरोप को भी ठुकराया की  खेलों उत्तर पूर्व के खिलाड़ी होने के कारण कोई भेद भाव किया जाता हैं , उनका कहना है मैरिकोम को मुझे  या किसी और खिलाडी को अवसर इसलिए मिलते हैं की उस वक्त हम खेल में अपना  सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन कर रहे होतें है. अन्तराष्ट्रीय मुकाबलों में किसी की कोई पृष्ठभूमि नहीं बल्कि खेल ही काम आता है. पिंकी चयनकर्ताओं पर पूरा भरोसा दिखाती हैं और उनका मानना है हमारे चयनकर्ता अनुभवी है और उन पर कोई सवाल उठाना बेमानी है .
पिंकी ने माना की हरियाणा प्रदेश का माहौल खेलों  और खिलाडियों के लिए बहुत अच्छा है .सरकार की खिलाडियों को सम्मानित करने की व् खेल विकास की  नीतियां  युवाओं में हरियाणा के लिए खेलने के लिए प्रोत्साहित करती हैं . खेल पदकों के मामले में हरियाणा देश में अग्रणी है यह हमारे लिए भी ख़ुशी की बात होती है और गर्व भी होता है अपने खिलाडियों पर.   
अपने अनुभव सांझा करते हुए पिंकी ने बताया की जब खिलाड़ी अपना अपेक्षित प्रदर्शन नहीं दे पाता तो उसके आसपास उसके कोच का अधिकारीयों का उसके खेल के चाहने वालो का ध्यान उस खिलाडी से हटने लगता है और यह स्थिती मानसिक रूप से उसे  बहुत तोड़ देती है शुरुआत में मेरे  साथ भी एक बार ऐसा हुआ खेल छोड़ने का भी मन हुआ तभी मैंने खुद को संभाला और तय कर लिया मुझे तो बस हर स्थिती में भिड़ना ही हैं  ,मैंने उदासीनता को  अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया  न ही मैं टूटी मैंने बस ठान लिया अब तो मैं बस शीर्ष का पीछा करुँगी और सबको दिखा दूंगी और अगली ही चैंपियनशिप में  नतीजे बदलने लगे तब से आज तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा .पिंकी को भारतीय रेल ने अपने यहाँ नौकरी दी जिस से उसे आर्थिक ताकत मिली उसने भारतीय रेल के लिए पदक हासिल किये .
पिंकी कहती हैं की सभी लड़कियां तो इतनी भाग्यशाली नहीं होती जिनको अपने सपने देखने और उन्हें पूरा करने के अवसर मिलते है और यथायोग्य  नौकरी की सुरक्षा मिले या पदकों की उपलब्धियां मिले पर जो भी महिलाएं युवतियां किसी भी क्षेत्र में  प्रयास कर रही हैं उनका प्रयास करना ही अपने आप में सम्मान है .मैं यह समझती हूँ की अभी महिलाओं के हक़ में  सामजिक माहौल को बहुत बदलने की ज़रूरत है महिलाओं के प्रति सोच अभी भी उतनी नहीं बदली है जितनी बदलनी चाहिए थी .महिलाओं को सामजिक व् आर्थिक सुरक्षा के लिए प्रयास करते रहना चाहिए .
बॉक्सिंग से पिंकी और उनकी अन्य सहयोगी महिला बॉक्सरों को एक फायदा तो जरुर हुआ है कि जो उनके बारे में जानता है की वह बॉक्सर युवतियां है तो कोई भी मनचला लड़का उनकी और आँख उठा कर भी नहीं देखता .वे चैंपियनशिप के लिए यात्राओं में कई बार मिल कर छेड़छाड़ करने वाले लड़कों को पीट भी चुकी है रिंग के बाहर ये लाइव पंचिंग उन्होंने कई लड़कियों को इन मनचलों से  बचाते हुई भी की है .उसका कहना कि खेल ने उन्हें दो दो हाथ करने की ताकत दी है जिससे उनका आत्म रक्षा का गुर है और वे अपनी सुरक्षा व् आत्मरक्षा के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी हैं खेलों से  उनकी  सोच का विस्तार ही हुआ है .

पिंकी कहती है कि हर लड़की को एक बार खेलों में ज़रूर भाग लेना चाहिए. शारीरिक व् मानसिक रूप से भी उन्हें ताकतवर होना चाहिए .पिंकी 51 किलो ग्राम वजन में खेलती है और कहती है यह खेल सिर्फ शारीरिक ताकत का ही नहीं बल्कि दिमाग का खेल भी है आप को कुछ ही क्षणों में विरोधी के वार का अंदाज़ा लगाना होता है इस खेल में तकनीक है तत्परता है और रोमांच है और लड़कियां रोमांच के अनुभव से क्यूँ दूर रहें.

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

बच्चियां जो कभी बच्चियां और किशोरी नहीं होती -



हमारे शहरों में हमारी ही नाक के नीचे कितने ही बाल विवाह हो जाते है कितनी ही किशोरवय बच्चियां माँ भी बन जाती है और हमारा ध्यान इस ओर जाता ही नहीं - हमारे मोहल्ले की धोबन कमला की बेटी  मौलीनि  जैसी कई बार अभागी 18 वर्ष में तीन बच्चो की  विधवा माँ  भी हो जाती हैं -कभी हमने इनके घरों में झाँकने की भी कोशिश नहीं करते -इनकी बच्चियां माँ के साथ साथ घरों में काम करते करते बड़ी हो जाती हैं और आठ साल की आयु में घरों में काम करने लगती है 99 प्रतिशत यौन उत्पीडन का शिकार होती है -(वक्त से पहले जवान हो जाती है -शारीरिक नहीं मानसिक रूप से )बड़ो की तरह व्यवहार करने लगती हैं -13-14  साल की लड़की खुद अपने लिए वर मांग लेती है नहीं तो किसी के भी संग भाग जाने की धमकी भी देती हैं -ये वो बच्चिय है जो बचपन से सीधे जवानी और अधेड़ अवस्था में प्रवेश करती हैं -किशोरवय जैसी कोई उहापोह की स्थिती तो आती ही नहीं .
मुझे यह अनुभव कभी न होता गर मुझे भी किसी फुल टाइम घरेलु सहायिका की ज़रूरत नहीं पड़ती. मेरे घर में नन्ही  मेहमान मेरी दोहती का आगमन हुआ -उसकी परवरिश और घरेलु काम बढे जो मेरे काबू में नहीं आ रहे थे तो मैंने अपनी घरेलु नौकरानी जो पिछले 10 वर्षों से मेरे घर में साफ़ सफाई का काम करती है उसे कहा की कोई लड़की मुझे भी ढून्ढ कर देना जो घर का काम कर सके .वही एक दिन एक लड़की को लायी जो अभी अभी गावं से आई थी,वह पतली सी  सूट दुप्पटा पहने  बड़ी बड़ी आँखों वाली लड़की थी और खूबसूरत रंग रूप नयन नक्श वाली लड़की कहीं से भी कमजोर वर्ग की नहीं लग रही थी - मैंने उसकी उम्र पूछी तो उसने फट से जवाब दिया 16 साल .मुझे उसकी उम्र कम लगी मैंने कहा की इसकी उम्र कम लग रही है उसकी माँ ने जवाब दिया मैडम गरीब घर के बच्चे आप के बच्चों जैसे थोड़े ही होते है इन्हें इतना अच्छा खाना पीना थोडा न ही मिलता है जो आपके बच्चों  उम्र  वाले बच्चो  जैसे दिखें . मुझे उसके तर्क में जान लगी .मैंने उसे रख लिया  पर मन में मेरे खटका रहा की इसकी उम्र कम लगती है .मैंने उस से कई बार पुछा व् यही जवाब देती 16 साल -मेरी शंका गहरी ही रही जो भी मेरे घर आये मई उसे पूछती देखना इसकी उम्र कम लग रही है न -दो तीन डाक्टर भी है परिवार में उनसे पुछा -की भाई किसी की उम्र का पता कैसे लगाते हो ?सभी मेरी बात अनसुनी कर देते या मुस्कुरा देते दीदी क्यूँ टेंशन ले रहे हो जो कही है वही समझ लों -मुझे बार बार विचार  सालता की मैं कोई बाल मजदूरी का अपराध कर रही हूँ मेरे इस दृष्टिकोण से मेरा सारा परिवार सहमत था तो हमने उसकी छुट्टी कर दी और कहा की तुम अभी पढो स्कूल जाओ .हम किसी स्कूल में दाखिला करवा देते हैं और फीस किताबें दे देतें है .एक महीने जो मेहनताना तय था वो और कपडे इतियादी .मेरे घर से छुट्टी होते ही उसकी माँ बाप पर तो पहाड़ टूट पड़ा उसकी बहुत पिटाई हुई की उसने कोई गलत काम किया होगा तभी हमने उसे निकाल दिया .और वो पिटती रही -उसकी माँ आई उसने पुछा की हमने क्यूँ निकल दिया -हमने कहा की वो बहुत छोटी है -उसकी माँ ने और मेरी कामवाली ने कहा मैडम अजीब बात करते हो आजकल  आठ व् नौ साल की लड़कियों की बहुत मांग है  और आप  निकाल रहे हो -मैंने पुछा वो क्यूँ  तो जवाब मिला की एक तो छोटी बच्ची खाती  कम है व् प्रतिरोध नहीं करती जो भी काम करवा लों -और ऊँच नीच भी कोई हो जाये तो  बच्ची ही तो  है भूल जाती है और आप ही बताओ हम सब सुबह  अपने अपने काम पर चले जाते है लड़की जात किस के भरोसे छोड़ कर जाएँ -आपको नहीं पता मैडम हमारी लड़कियां पैदा होते ही जवान होती है सभी के लिए -इसकी पहरेदारी करें या रोटी कमायें हमारे लिए तो ये मुसीबत हैं किसी  अच्छी कोठी में रखवा देंगे तो कोठी वाले की जिम्मेदारी हो जाती है और चार पैसे बन जाते है .हम इन्हें अपने घरों में झुग्गिओं में इन्हें नहीं छोड़ सकते .जब छोटी होती है तब साथ ले जाते हैं और थोड़ी बड़ी हुई तो काम पर ही लगाना ठीक होता है .अबर आप बाबु लोग भी इन्हें न रखो तो हम कहाँ जाएँ ,गाँव हो या शहर इन्हें तो कोई एक जीन्स पैंट और मोबाइल दे कर कोई भी  बरगला लेता है और ये भाग जाती है फिर कौन ढूंढें –रोज कुछ न कुछ  बुरा बुरा गन्दा हो रहा है कहाँ ले जाएँ .हम तो 13-14  साल में तो इनकी शादी कर देना ही ठीक रहता है .अब तो कोठी वाले भी  पैसा ले कर भी घूम रहें है ब्याह के लिए कहाँ जाएँ क्या करें .
सभी को कोई अच्छी कोठी मिले ज़रूरी तो नहीं हम कितने इज्ज़त वाले बड़ी बड़ी कोठियों वालो से अपना हाथ छुड़ायें है कितनी बात दबोच में आयें है कोई कुछ कह तो नहीं सकते न कुछ कर सकते अकेले रोते मुहं धोते  दो दिन छुट्टी करते है काम पर नहीं जाते फिर चल देतें हैं ,कोठी वाली मैडम पांव पकड लेती हैं किसी को बताना नहीं हमारी तो यही तो जिन्दगी है.यही इनकी भी होगी आदमी दारु पी कर आएगा ये गाली बकेगी  वह पीटेगा यही तो सीख रही हैं यह . आपके घरों में कुछ तो अच्छा सीखेगी ही .सब तकरीरें सुनने के बाद भी मैं उस बच्ची को नहीं रख पायी और उसे पढाने पर बल दिया,पर ऐसा होना नहीं था उसे किसी दूसरी कोठी में लगा दिया गया ,
पर यह तो समझ आया की जिस झोपडी  में पीने हाथ धोने का पानी न हो उनसे हम नहा कर आने साफ़ सुथरे कपडे पहन कर आने की उम्मीद क्यूँ लगते हैं .जो बच्चे माँ बाप के साथ एक ही झुग्गी में सो जाते हों और माँ बाप भी वाही उन्ती सी जगह में चार पांच संतान और बाधा लेते हों ओं बच्चो से हम क्या उम्मीद करते है की समय से पहले बड़े नहीं होंगे ,

उत्तर प्रदेश बिहार से आने वाले लोग सबसे पहले ,मजदूरी ,सब्जी की रेहड़ी और इनकी औरतें घरों में काम ढूंढती है मजदूरी करती हैं और धोबी का अड्डा जमाना तो इनमे स्टेटस का प्रतीक है की शहर में ठिकाना हो गया . अधिकतर का उसी अड्डे पर इनके परिवार का रहना खाना सोना नहाना भी हो जाता है किसी खली प्लाट पर किसी दुकान या मार्किट के बरामदे या पिछवाडे इनकीदिन छिपते ही इनकी दुनिया हो जाते है .यही पर बिलकुल हमारे घर के बाई ओर एक और धोबी अपनी ग्रहस्थी जमाये हुए है और बाल बच्चे औरत वहीं नहाना धोना कर लेते हैं बच्चे तो वहीं मल मूत्र त्याग करते है परन्तु धोबी  धोबिन का सेक्टर 4 की मार्किट में शौच जाते हैं –जितनी बार भी जाना हो उन्हें मार्किट में चल कर ही जाना होता है जिसके लिए वो हर माह सार्वजानिक सौचालय प्रबंधन कर्मचारी से महीने का ठेका कर लेते हैं ,और यदि वह धोबिन बीमार हो जाये तो वह अपनी दरी शौचलय के पास ही बिछा लेती है क्यूंकि वह बार बार चलने में असमर्थ होती हैं ,इस किशोरी बच्चिओं के लिए भी शोच जाना उतना ही दुष्कर है  

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

मासिक धर्म आखिर चुप्पी कब तक ?


इस धरा पर  सभी जीवो की मादाएं अपनी  प्रजनन क्षमता के कारण अपने अपने समाज उच्च स्थान पाती है .कुछ बहुलिंगी प्रजतियों  को छोड़ कर सभी मादाएं अपने अपने निश्चित गर्भ धारण  काल में गर्भ धारण करती है व् सृष्टी में निर्माण में अपना योगदान देती हैं.प्रजनन प्रक्रिया सदैव कोतुहल व् जिज्ञासा का विषय रही है जिसे अलग अलग समाजो ने अपने अपने ढंग से छुपाया व् परिभाषित किया है –अधिकतर समाजों में इस विषय पर चुप्पी के ही नियम अपनाऐ हैं . हर किशोरवय मादा में प्रजनन क्षमता का विकास होने लगता है व् इसी दौरान तेजी से  शारीरिक व् मानसिक बदलाव व् विकास होने लगता है . मानव मस्तिष्क के एक ओर स्थित एक मटर के दाने के आकार की पिटयुटरी ग्रंथि विभिन्न हार्मोन का स्त्राव करती है जो किशोर से वयस्क बनने के लिए उतादायी होते हैं . मादाओं में वयस्कता का मुख्य आधार होता है प्रजनन की क्षमता ग्रहण करना .मादाओं में जब यह क्षमता विकसित होती है तो योनी मार्ग से प्रति माह रक्त का  स्त्राव होने लगता है जिसे मासिक धर्म कहा जाता है ,ज्ञात रहे इस धरती की सभी मादाएं मासिक धर्म की इस प्रक्रिया से गुजरती है हमारे समप्रजातीय बन्दर, औरन्ग्युटैन,चिम्पांजी मादाओं में  भी स्त्रियों की तरह प्रति माह  योनी से  रक्त विसर्जित होता है जबकि अन्य मादाओं में यह  रक्त किसी भी मार्ग से बाहर नहीं आता और उनका शरीर इस रक्त को भीतर ही समाहित कर लेता है . वास्तव में प्रकृतिवश संभावित शिशु को सुरक्षा देने के लिए गर्भाशय में रक्त कणों व् –कोशिका की एक चारदीवारी बनने लगती है प्रतिदिन इस में रक्त की एक परत बनती जाती है यदि इस दौरान महिला के अंडे से  शुक्राणु का मिलन हो जाये तो गर्भ धारण हो जाता है और यह रक्त  परत प्रति दिन बढती जाती है और भ्रूण के गिर्द सुरक्षा थैली का निर्माण होता रहता है .यह तरल कवच गर्भस्थ शिशु  को हर प्रकार से गर्भ में ही सुरक्षा प्रदान करता है .शिशु जन्म के समय यह रक्त भी बाहर आ जाता है व् मादा शरीर फिर से इसी मासिक प्रक्रिया से गुजरने लगता है .और यदि गर्भ धारण न हो तो यह रक्त अपने निश्चित चक्र काल में योनी मार्ग से बाहर निकल जाता है ,उसी प्रकार जैसे हमारा  शरीर हर अनुपयोगी वस्तु को बाहर निकाल देता है इस  अनुपयोगी रक्त को भी शारीर से बाहर कर देता है और नवीन प्रकिया में लग जाता है .
किन्तु इस वैज्ञानिक जैविक  जानकारी के आभाव में इस प्रक्रिया  को सदियों से इतना छुपाया गया की इसके प्रति बहुत सी भ्रन्तिओं व्  वर्जनाओं का निर्माण हो गया ,जिनका समाजो में कड़ाई से पालन होने लगा .
.  स्त्रिओं ने भी इसे  प्रकृति द्वारा दिया गया अतिरिक्त बोझ ही समझा .इस प्रक्रिया के दौरान स्त्री को गंभीर पेट दर्द व् अन्य कई प्रकार के असहज शारीरक  प्रभाव का अनुभव करना पड़ता है .चूँकि यह प्रक्रिया केवल मादाएं ही झेल रही थी और पुरुष नहीं तो इसे प्रकृति द्वारा स्त्रिओं को दिया जाने वाला दण्ड समझा गया .और यह प्रक्रिया महिला लिंग को हीन समझने व् हीन घोषित  करने का आधार भी बना .इस प्रक्रिया ने पाषाण काल में महिलाओं को शिकार करने में बाधा दी , यही प्रकिया व् गर्भ धारण की प्रक्रिया स्त्रिओं के भ्रमण में प्राकृतिक बाधा बनी जिसके कारण उन्हें गुफाओं तक सिमटना पड़ा और असह्य स्त्री को भोजन के लिए भी पुरुष अधीनता स्वीकार करनी पड़ी –इन दोनों प्रक्रियाओं ने महिला को लाचार व् पुरषों के समकक्ष ताकत में हीन घोषित किया .इसी जैविक अंतर ने लिंग भेद श्रेष्ठ व् हीन धारणा को जन्म दिया .जो आज तक स्थापित है – स्त्रिओं का अन्य कई प्रकार से सक्षम होना भी उसे लिंग समानता का दर्जा नहीं दिलवा पाया .
 भारत की तरह अनेक देशो में आज भी मासिक धर्म प्रक्रिया को गुप्त विषय ही रखा  जाता है इस बारे में बात नहीं की जाती. आज के आधुनिक वैज्ञानिक दौर में भी विश्व भर में स्त्रियाँ खुद भी मासिक धर्म के बारे में नहीं बताती बल्कि ऐसा बताने के लिए सांकेतिक शब्दावली को ही उपयोग में लाया जाता है . उतर भारत में पीरियड्स आना ,कपडे आना ,महिना आना ,सिग्नल डाउन ,रेड सिग्नल , नेचर पनिशमेंट,और आजकल की छोटी बच्चियों में केक कट गया जैसी शब्दावली उपयोग में लायी जा रही है –हर भारतीय भाषा व् बोलियों में इसके वैकल्पिक  नाम उपलब्ध है जो प्रयोग में लाये जाते है ,.विकसित देशो की महिलाएं  भी मासिक धर्म को  वैकल्पिक नाम से इसे संबोधन करती है चीन में- मेरी  छोटी बहिन आई हुई है , दक्षिण अफ्रीका में –मेरी नानी  ट्रैफिक में फंस गई है  ,लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में –जेनी हेस अ रेड ड्रेस ऑन,ऑस्ट्रेलिया में –आई हैव गोट द फ्लैग्स आउट ,डेनमार्क में –देयर आर कोम्मुनिट्स इन द फन हाउस –ब्रिटेन में- आई ऍम फ्लाइंग द जैपनीस फ्लैग ,फ्रांस में - मेरे अंग्रेज आ गए हैं और जापान में-मेरी  लिटल मिस स्ट्राबेरी आई है जैसे भाव वाक्य बोले जाते है.यहाँ तक कि महिला योनी के भी विश्व भर में अनेक वैकल्पिक नाम बोलचाल में व्यवहार में लाये जाते है  जितने भी नाम विश्व में प्रयोग में लाये जाते है वे सब महिला लिंग हीनता को स्थापित करते और पुरुष आमोद को अभिव्यक्त करते ही  सुनाई देते है
भारत में आज भी महिलाएं मासिक धर्म को लेकर अनेक भ्रान्तियो का शिकार है बहुत सी वर्जनाये निभा रही है जिनका आज के युग में कोई औचित्य नहीं रह गया है –आधुनिक शहरो की महिलाये भी घरो में आचार को अन्य खाद्य पदर्थो को हाथ नहीं लगाना ,पुरुष की थाली को हाथ नहीं लगाना ,खाना नहीं बनाना ,जल स्त्रोतों को ,जल भंडारण को हाथ नहीं लगाना ,पौधों, पत्तो ,नवजात शिशुओं को हाथ नहीं लगाना न ही नहाना और सर धोना  व् अलग बिस्तर का इस्तेमाल करना ,धरती पर सोना इत्यादि साथ ही इन दिनों में किसी पूजा स्थल पर नहीं जाना ,जलाशयों की ओर नहीं जाना जैसे नियमो का पालन करती है –तर्क ये है की रजस्वला महिला के संपर्क में  आने से यह सब  दूषित हो जायेंगे .
पुरातन समाज में जब स्त्रियों के पास  मासिक धर्म के प्रबंध के लिए आज जैसे अंत वस्त्रो व् सुविधजनक पैड की सुविधा नहीं थी न ज्ञान था  तब वे यूँ ही पत्ते ,मिटटी राख घास फूंस से अपने रक्त स्त्राव का प्रबंध करती होंगी जो बहुत ही अस्वच्छ तरीका होगा .जल भी आसानी से उपलब्ध नहीं होता था और यदि उपलब्ध था तो जल के सभी स्त्रोत सार्वजनिक थे जहाँ से सभी प्रकार के उपयोग का जल लिया जाता था –उस समय में मंदिर , रसोई घर व् जल स्त्रोतों की स्वच्छता को अक्षुण रखने के लिए रजस्वला स्त्री के लिए यह नियम बनाये गए –ताकी रक्त से रंजित स्त्री को कुछ दिनों के लिए इन स्त्रोतों दे दूर रखा जाये ,चूँकि पहले स्त्रियाँ कृषि में कड़ा श्रम करती थी इसलिए इन दिनों  उसके भ्रमण पर प्रतिबन्ध लगाये गए ताकि  उसे कड़े श्रम से विश्राम मिल सके .हमारा रक्त शर्करा का बड़ा स्त्रोत है और शर्करा जीवाणुओं का घर है –इसलिए स्त्रावित रक्त में जीवाणु रहते है जो खाने पीने व् जल साधनों को दूषित कर सकते थे इसलिए ये प्रतिबन्ध लगाये गए .आज के युग में जहाँ जल घर के भीतर फव्वारों में उपलब्ध है और हर प्रकार के स्वच्छता के साधन उपलब्ध है वहां भी इन वर्जनाओं का पालन किसी अज्ञात भय के कारण होता है ,अधिकतर महिलाएं मानती है कि ऐसा करने के बाँझपन का श्राप लगता है जिसका कोई प्रमाण नहीं .हालाँकि  पिछले दिनों सोशल मीडिया में यह बात बहुत प्रचारित हुई की किसी खोजी अधयन्न ने घोषणा की है मासिक धर्म के दुसरे दिन सर धोने से बाँझ होने का खतरा है ,ऐसी किसी खोज की चिकित्सा  संगठनों ने न कोई पुष्टि की है न ही कोई निर्देश आये है ,संभवत यह नया क्षेत्र है जिस के हर व्यवहार पर  सघन खोज नहीं की गई है .तमाम देशो में अलग अलग प्रकार की गैर व्यावहारिक वर्जनाये है केन्या में  रजस्वला स्त्री को दुधारू गाय के पास जाने की मनाही है और स्त्रियाँ मानती रही  है उनके  गाय के पास जाने से गाय की मौत हो जाएगी . इस आवश्यक व् अपरिहार्य  प्राकृतिक प्रक्रिया को इतना हीन माना जाने लगा कि रजस्वला स्त्री को अछूत की तरह रखा जाने लगा .नेपाल में मासिक धर्म के  दिनों में स्त्री को घर से बाहर एक झोपडी में रखा जाता है जहाँ उसे इन पांच दिनों में अछूत की तरह रखा जाता है –उसे खाना भी वहीँ पहुंचाया जाता है ,
चलिए इस विषय की पृष्ठ भूमि से अलग आज की बात करते हैं वर्तमान में एक लड़की की मासिक धर्म प्रारंभ औसत  आयु 12 वर्ष से  घट कर 9 वर्ष हो गई है इंडियन कौंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट अनुसार भारत में 70 %लड़कियों को प्रथम रज: दर्शन से पहले पता नहीं होता कि यह क्या प्रक्रिया है और सभी ने इसे गन्दा,और प्रदूषित बताया और इसे शर्म का विषय व् छुपाने को उचित ठहराया .देश में 88% लडकिया आज भी गंदे व् पुराने कपड़ो व् राख का उपयोग उपयोग करती हैं आधुनिक महंगे नैपकिन्स बाकी महिलाओं की पहुँच से आज भी बाहर है .गंदे पुराने वस्त्रों से मासिक धर्म का प्रबंध करने के कारण भारत की 70% महिलाये प्रजनन प्रजनन प्रणाली संक्रमण पीड़ित हैं .13 करोड़ घरों में आज भी शौचालय नहीं हैं जहाँ महिलाएं अकेले में अपना प्रबध कर सकें .53% सरकारी विद्यालयों में शौचालय नहीं है जहाँ लडकिया स्कूल में भी अपना प्रबंध कर सकें –ऐसे में लडकियां अधिकतर या तो स्कूल ही नहीं आती या फिर घर चली जाती है –लड़कियों की हाजिरी कम हो जाती है वो पढाई में भी पिछड़ने लगती है –अंतत पढाई छूट जाती है 
 हमने  चंडीगढ़ क्षेत्र में अपने स्तर पर की गई जांच में पाया  स्कूलों में मासिक धर्म प्रबंध हेतु कोई व्यवस्था आवश्यक नहीं बनाई गई है ऐसा प्रिंसिपल के विवेक पर निर्भर करता है की वह क्या व्यवस्था अपनाता है ,लडकियां आपात में  स्कूल का डस्टर इस्तेमाल कर रही है और यहाँ तक की दूसरी लड़की का इस्तेमाल किया हुआ कपडा भी बाँट लेती है ,बच्चियों को पता नहीं वे अपनी सेहत के साथ कितना खिलवाड़ कर रही है –अधिकतर बच्चियां स्कूल से घर चली जाती है .कुछ संस्थाएं स्कूलों में अपने स्तर पर कार्यक्रम चलाती है व् स्कूल में सेनेटरी पैड्स इतियादी भी दे कर आती हैं –नाम न छापने की शर्त पर बच्चो ने बताया की कुछ अध्यापिकाएं खुद ही वह पैड्स ले जाती है स्वय के इस्तेमाल के लिए . स्कूल की अद्यापिकाओं का कहना कि अकेले पैड्स उपलब्ध करवाने से बात नहीं बन रही –यहाँ सरकारी स्कूलों में पढने वाली बच्चियों को अंत: वस्त्र पहनने का अभ्यास नहीं है अंत:वस्त्र की अनुपलब्धता के चलते सेनेटरी पैड भी उपयोग में नहीं आ सकते व् लडकियां घर जाने की जिद करती है जिसे उन्हें मानना पड़ता है .
आज इस विषय पर विश्व व्यापी चर्चा चल रही है और स्थिति सुधरने के प्रयास हो रहे है -संयुक्त राष्ट्र वीमेन –वर्ल्ड बैंक जैसी अनेक अंतरष्ट्रीय प्रभाव पैदा करने वाले संगठनों ने इस विषय को मुख्य धारा के कार्यक्रमों में शामिल कर लिया है व् वैश्विक जागरूकता  की रूपरेखा व् कार्यक्रम बन गए है –सभी देशो की सरकारों ने अपने किशोर स्वास्थ्य कार्यकमो में मासिक धर्म प्रबंध व् स्वच्छता को जोड़ दिया है .भारत सरकार के राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम में इसे शामिल किया गया है व् कई प्रदेशों में सफलतापूर्वक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं .आपको सज्ञान होगा कि जम्मू कश्मीर में बाढ़ में फंसी महिलाओं को केरल की  कुटूम्बश्री संस्था ने  दस हजार सेनेटरी नैपकिन बांटे उसकी विश्व भर में प्रसंशा हुई और आपदा राहत कार्यक्रमों में महिलाओ के पैड्स की राहत देना सदा के लिए जुड़ गया ,दरअसल महिलाओं की इस ज़रूरत पर किसी का ध्यान नहीं गया था और इस ज़रूरत की गंभीरता को कभी किसी ने नहीं समझा परन्तु आज वैश्विक पटल पर अब यह ज़रूरत हाशिये पर नहीं है. जर्मनी स्थित वाश यूनाइटेड  संगठन के सतत  प्रयासों से विश्व भर में मुहीम चलायी जा रही है जिसमे चुप्पी तोड़ने व् युवतीओं का जनन स्वास्थ्य को  सरंक्षण देने का आह्वान विश्व भर में किया जा रहा है .प्रतिवर्ष 28 मई को अन्तराष्ट्रीय मासिक धर्म दिवस मनाने की पहल की गई जिसमे 140 देशों में कार्यक्रम आयोजित किये गए .
जिस विषय पर सदियों चुप्पी साधी गई हो उस पर खुल कर चर्चा करना एक चुनौती है चंडीगढ़ क्षेत्र में रेड ब्लिस इंडिया नामक  मासिक धर्म स्वच्छता कार्यक्रम का संचालन कर रही अधिवक्ता विभाति पढिय़ारी का मानना है जबकि यह विषय हमारे देश की भावी माताओं से जुडा है और हमारी बच्चियों के स्वास्थ्य से जुड़ा है हमे इसकी गंभीरता को समझना चाहिए .शहर के लोग भी इसे संवेदनशीलता से नहीं लेते और  कसबे और गावं में बात करना और भी कठिन है .जब हम स्कूल में जाते है तो कुछ प्रिंसिपल तो बहुत समझदारी से इसकी  गंभीरता समझते है और कुछ पुरष अद्यापको के लिए यह समय की बर्बादी है .ज्यादतर पुरषों का प्रथम प्रक्रिया यही होती है क्यूँ ढका उधाड़ रहे हो –औरतों की बात औरतों तक रहने दो. क्यूँ महिलाएं यह व्यक्तिगत  विषय शुरू कर अपना सरे आम मजाक बनाना चाहती हैं ,पर धीरे धीरे जब वे इस विषय को अपनी माँ बहिन या बेटी के सन्दर्भ में देखना सुनना शुरू करते है तो वह इस विषय को बड़े स्तर पर उठाने की वकालत करने लगते है .अभी शुरुआत है समय लगेगा की चुप्पी सच में टूटे और मासिक धर्म के बारे में शर्मिंदगी के भाव फक्र में बदल जाये .हम सब प्रकृति की इस व्यवस्था की  सरे आम प्रसंशा कर पाए .
गाँव में भी हम काम कर रहें है वहां पर भी किसी पुरुष कार्यकर्ता का हमरे दल में स्वीकर्य नहीं होता हम लड़कियों  से अलग से बात करते हैं .गाँव कस्बो के अग्रणी पुरुष  हमें देख रहें है व् हमारे  उद्देश्य का निरीक्षण कर रहें है पर खुल कर कुछ नहीं कह रहें हैं बात करने की कोशिश भी करो तो बात बदल देते हैं या किनारा कर लेते हैं ,पुरषों के लिए भी यह नया अनुभव हो रहा है कि कोई बात कर रहा है वर्ना आज तक पुरषों ने तो मासिक धर्म को लेकर लड़किओं का  या तो उपहास किया है या लड़कियों का सरे आम मजाक उड़ाया है और अब उन्हें  इसे गंभीर विषय मानने में हिचकिचाहट हो रही है .
 लड़कियों  व् उनकी माताओं को जागरूक  करना उन्हें उचित प्रबंधन का ज्ञान देने के साथ ही पुरुष वर्ग में इस विषय को ले जाना भी हमारे कार्यकर्म का हिस्सा है –क्यूंकि उतर भारत में पुरुष ही मुख्यतः घर का मुखिया है व् पोषक है –अगर उसे इस विषय की गंभीरता का ज्ञान नहीं होगा तब तक वह महिलाओं व् बेटियों को स्वच्छ प्रबंधन के लिए सेनेटरी पैड या दवाई का पैसा नहीं देगा .और न ही बेटियां संकोचवश मांग पाएंगी .पुरुष का प्रभाव घरो के फैसले में आज भी अधिकतर सर्वोपरि ही है इसलिए उसका जागरूक होना भी जरुरी है –चुप्पी और संकोच टूटेगा तभी कुछ बात बढ़ेगी .विभाति का कहना है की पुरुष चाहे कोई अधिकारी हो चाहे पत्रकार या चाहे कोई और विषय को सुनते ही कन्नी काटने लगता है जैसे वह सुन कर कोई अपराध कर रहा हो ,शुरू शुरू में हम कभी प्रेस नोट भी ले जाते तो कुछ पत्रकार महोदय पढ़ कर कहते इसका क्या करें हम इस में छापने जैसा क्या है –कोई नहीं छापेगा क्यूंकि संपादक भी पुरुष बैठा है वो मेरा मजाक उडाएगा. ये भी कोई खबर बनती है .पर धीरे धीरे मीडिया और  प्रसाशन को भी हमारी बात समझ आने लगी और हमे सहयोग मिलने लगा अब तक हम पांच हजार लड़कियों तक पहुँच गए है जिन्हें हम ज्ञान दे रहें है ताकि वे स्वस्थ युवति व्  भविष्य में स्वस्थ माँ बन सकें .
आप देखेगे की धीरे धीरे पुरे देश में यह मिशन की तरह फ़ैल जायेगा तब कोई टैबू नहीं रहेगा .आज चुनौती तो यह है कि जिन  गरीब लड़कियों की पहुच स्वच्छ महंगे नैपकिन या समकक्ष प्रबंधन तक नहीं है उन्हें कैसे सस्ती दरों पर नैपकिन उपलब्ध करवाए जाएँ .जिनके पास पीने का पानी नहाने का पानी उन्हें कैसे स्वच्छता के पाठ पढाये जाये और अनुभव करवाए जाएँ. बिना राज्य सरकारों व् समाज के सहयोग बिना दशा नहीं सुधर पायेगी .
विभाति के साथ उनके दल में पर्यावरणविद अमनप्रीत ने बताया कि हर मादा हर महीने दस से पैंतीस मिली लीटर   खून का स्त्राव करती है जिसे इसी भूमि पर ही निबटाना होता है –करोडो टन रक्त रंजित कचरा धरती में ही निबटाना होता है ,आज कल के आधुनिक पैड प्लास्टिक जेल्ल से बने है जिन्हें धरती में दबाया जाये तो इन्हें नष्ट होने में डेढ़ सौ साल लगेंगे भारत की आधी जनसँख्या यदि इस प्रकार का करोड़ो टन अगलनीय कचरा का हर महीने धरती में दफ़न करने लगेगी तो पर्यावरण का क्या होगा इसलिए हम पर्यावरण मित्र पैड बनाने के लिए कृत संकल्प हैं और सस्ते दाम में महिलाओं द्वारा ही तैयार करवाने पर काम कर रहें है .
 
निसंदेह बदलाव हो रहा है पंजाब विश्व विद्यालय की अनेक छात्राओं ,गुरलीन ,श्वेता ,अंकिता ,सोनम  ने माना की अब वे अपने पिता से भाई से या पुरुष मित्र से सेनेटरी पैड मंगवाने में भी नहीं हिचकती और इस विषय पर बात कर लेती हैं और वे इसे ईशवर का वरदान मानती है और वरदान छुपाये नहीं जाते .ऐसा सोच में बदलाव का कारण उनके शहर का खुला व् जागरूक वातावरण है जहाँ उन्हें स्कूल में ही मासिक धर्म के प्रति वैज्ञानिक सोच मिल गई थी जबकि अन्य छात्राएं आज भी आपत्ति करती है कि उनके साथी लड़के सह्पाठी इतना शिक्षित होते हुए भी पीरिड्स का मजाक बनाते रहते हैं 
संतोषजनक व् उत्साहित करने की बात यह है की चारों ओर  प्रयास शुरू हो गए हैं नेपाल की  सर्वोच्च अदालत ने इस व्यवस्था में दखल दे कर स्त्रिओं को  महीने के दिनों अलग झोपड़ीनुमा घरों में बंद रखने की  प्रथा से मुक्त करने के आदेश दिए हैं यह किसी भी सरकार का पहला दखल है जो शुभ संकेत है की महिलाओं की बात महिलाओं तक कह कर इस विषय को और दबाया जाना  अब  निकट समय में ही अतीत की बाते हो जाएँगी 




गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

हर महिला में दबंगई के गुण होने ही चाहिए पूनम शर्मा ,महापौर चंडीगढ़- साक्षात्कार -पूनम शर्मा महापौर चंडीगढ़






चंडीगढ़  नगर निगम की महापौर  पूनम शर्मा जिसे दबंग महापौर के नाम से जाना  जाता है अपनी दबंगई के किस्सों पर मुस्कुरा कर कहती है उनकी दबंगई जनता के सरोकारों के लिए है वह प्रशासन व् सामाजिक जिम्मेदारी लेने वाले व्यक्तियों द्वारा  काम में  की गई  किसी भी प्रकार की लापरवाही और आम जन की  अनदेखी पसंद नहीं करती चूँकि वह खुद दिन रात जनता के हित में काम करती रहती है इसलिए वे हमेशा चाहती है उनकी बात पर फौरन अमल भी किया जाये .पूनम शर्मा का मानना है कि उनकी दबंगई गरीब, लाचार, असह्य व् समाज की पंक्ति में खड़े  अंतिम व्यक्ति के लिए है इसलिए उसे अपनी दबंगई की छवि से कोई परहेज है ही कोई गुरेज और वह कहती है की हर महिला को अपनी भीतरी आत्म विश्वास से दबंग ही होना चाहिए .अपने विशेष साक्षात्कार में पूनम शर्मा ने वरिष्ठ सामजिक प्रोत्साहक (social motivator )सुनीता धारीवाल के अनेक प्रश्नों का जवाब खुल कर और बेबाकी से दिया :- 
प्र०-आपका बचपन कहाँ और कैसे बीता और किस परिवेश में आपका पालन पोषण हुआ ?
उतर –मैं संयुक्त पंजाब की राजधानी शिमला में पैदा हुई वहां के सेंट थॉमस स्कूल में दूसरी कक्षा तक पढ़ी फिर पिता जी का तबादला चंडीगढ़ में हो गया तो  चंडीगढ़ के सेक्टर बीस के स्कूल से हाई स्कूल और बाद में कुछ वर्ष मेहर चाँद महाजन डी ऐ वी कॉलेज  व् फिर  खालसा कॉलेज से स्नातक  हुई .मेरी खेलों में बहुत रुचि थी पर उस समय लड़कियों को खेल चुनने या करियर चुनने की इतनी स्वतंत्रता नहीं थी जितनी आज है .पर मैं उस दौर में भी खेलों में और  विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक मंचो पर आगे रही.मैंने कभी पढाई के लिए कोई फीस नहीं दी क्यूंकि मेरा दाखिला हमेशा खेल कोटे से हुआ जिसमे पढ़ाई की फीस माफ़ होती थी .मैंने लगभग हर खेल में भाग लिया क्यूंकि उस वक्त लडकियों  की भागीदारी  खेलो में न के बराबर थी और जितनी भी लडकियां  थी उनके पास ढेरों अवसर उपलब्ध थे .मेरी माँ हम पांच बहनों के लिए बहुत बड़ा संबल थी उनकी चाहत थी की वे अपनी बेटियों को ज़रुर शिक्षित करेंगी .उनके मन में यह  जज्बा बहुत पहले से  से था जब  आठवी  कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई छुड़वा दी गई थी और तभी  उन्होंने भी ठान लिया था अगर उनकी बेटियाँ होंगी तो वे उन्हें ज़रूर उच्च शिक्षित करेंगी और उन्होंने ऐसा किया भी .हम सभी बहने खूब पढ़ी और अपने अपने क्षेत्र में सफलता से स्थापित भी हुई .
प्र०-  आपकी युवावस्था की कुछ यादे हमारे पाठको के लिए बताएं  व्  युवा मन के  सपने क्या थे  ?
उतर -ऐसा भी नहीं की अपने अपनी युवा अवस्था में आंखे न चार की हों मैंने वह भी किया मेरे पति सरदार सुरिंदर जीत सिंह मुझे भा गए और मित्रता के पश्चात  उनसे मैंने शादी की और सफलता से निभाई और सुखी  गृहस्थी  बसाई .यह अंतरजातीय,अंतर्धर्मीय   विवाह था मैं ब्राह्मण परिवार से और वो सिख राजपूत थे.मुझे यह शादी निभाने में कोई मुश्किल नहीं आई क्यूंकि जो लडकियां  खेलों में या अन्य सामजिक, सांस्कृतिक गतिविधिओं में अग्रणी रहती है उनमें  हर प्रकार की भिन्नता को अपनाने और उसकी सराहना करने का गुण आ जाता है और वे हर परिस्थिति से सामंजस्य बैठा ही लेती है . मैंने भी यही किया मैं ब्राह्मण होते हुए शुद्ध शाकाहारी हूँ पर यदि परिवार को माँसाहार बना कर देना हो तो वो भी मैं कर लेती हूँ ,मैं अपने घर परिवार व् अपनी रसोई को भी पूरा समय  खुशी खुशी  देती हूँ .
प्र० -एक  महिला महापौर का सडको पर स्वय वाहन चलाना भी लोगो को आकर्षित करता है ?आपको कैसा लगता है ?
उतर -मुझे किशोरवस्था से ही वाहन चलने का शौक था मैंने बुलेट मोटरसाइकिल से कार ,जीप ,स्कूटर, ट्रेक्टर सब कुछ चलाया है –मैं जहाज  उड़ाने का सपना देखती  थी और पायलट बनना चाहती थी.पर यह संभव नहीं हुआ पर रफ़्तार और उड़ान तो मुझे आज भी रोमांचित करती है .मैंने महपौर होते हुए भी सभी वाहन चंडीगढ़ की सड़कों पर दौड़ाये है अभी  हाल ही में औरतों से भरी ट्रैक्टर  ट्राली ले कर मैंने चंडीगढ़ में मलोया स्थित  एक मैदान की जुताई कर दी पार्क बनाने के लिए और अब वह पार्क विकसित  कर जनता को सुपुर्द कर दिया जायेगा . जहाँ तक लोगो की बात है यह सब उन्हें आकर्षित तो करता ही है कि  उनकी महिला महापौर  निडरता से सभी वाहन चलाती है और मेरा वाहन चलाना जनता में मेरे प्रति विश्वास भी बढाता है कि उनकी महापौर कहीं भी किसी भी समय आने जाने के लिए पराश्रित नहीं है- स्त्री भ्रमण की स्वतंत्रता भी एक प्रकार का सशक्तिकरण है जिसे हर महिला को अनुभव करना ही  चाहिए .
प्र० – अधिवक्ता से  महापौर बनने  तक का सफ़र कैसा रहा ?
उतर-मैं पेशे से वकील रही इस दौरान बहुत से लोगो को न्याय व् राहत दिलाने में लगी रही -  व्यवसाय से ज्यादा यह काम मेरे लिए समाज सेवा जैसा ही था .किसी को राहत पहुंचा कर मुझे खुशी मिलती थी -और भी सामजिक काम -असह्य लड़कियों की शादी करवाना -किसी गरीब असहाय लावरिस लाशों का भी अंतिम संस्कार करवाना  जैसे काम भी  मैं  निरंतर करती रहती थी .लोगो के सुख दुःख में शामिल होना मेरी स्वाभाविक आदत बन चुके थे और मैं किसी के भी  बुलावे पर पहुच जाती थी -लोगो को यह विश्वास हो गया था की पूनम को यदि याद किया  है  तो वह आएगी ज़रूर चाहे कोई भी साधन कर के आये साइकल पर आये या  पैदल आये या ट्रेक्टर पर पर आएगी ज़रूर -मैं उनकी छोटी छोटी खुशियों और विपतियों विपतियों व् बाधाओं   में भी साथ देती रहती थी .जिससे मेरी मौलिक लोकप्रियता तो बन ही गई  थी .मैंने दिसम्बर 2011 में कारपोरेशन का चुनाव लड़ा और मैं यह चुनाव हार गई पर इस से मुझे अनुभव हुआ. फिर 2012 में बी जे पी की एक महिला पार्षद की अचानक मौत होने से पार्षद की सीट रिक्त हो गई और निगम के  उप चुनाव की घोषणा हो गई .सभी पार्टियों का ध्यान एक ही सीट पर आ गया और यह सीट निकलना सभी पार्टियों के लिए चुनौती बन गया .कांग्रेस पार्टी के नेतृतव  ने व् सभी स्थानिय कार्यकर्ताओं ने मुझ पर अपना विश्वास दिखाया और मुझे टिकट दी  गई –कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चंडीगढ़  के पूर्व सांसद श्री सतपाल बंसल जी ने व् चंडीगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष श्री बी बी बहल ने भी अपनी सरंक्षक की भूमिका निभाई और मुझे प्रोत्साहन व् पूरा सहयोग दिया .कड़े मुकाबले में मैं चुनाव जीत गई .और महापौर का चुनाव तो और भी रोमांचक रहा  कांग्रेस के अल्पमत में होते हुए भी मैं महापौर का चुनाव जीत गई .
मुझे स्वतंत्र व् मनोनीत पार्षदों के साथ मेरे व्यक्तिगत सौहार्दपूर्ण संबधों  व्  मेरे द्वारा उनके लिए  किये गए जन कार्यो  पर भरोसा था साथ ही बहुजन समाज पार्टी के सांसदों ने भी मेरा सहयोग दिया -श्री पवन बंसल जी की भी बड़ी भूमिका रही और मैं कांगेस के अल्पमत में होते हुए भी महापौर बन गई .अब काम करके दिखाना था चुनौतियों को स्वीकार करने का वक्त था –पर मैं यह स्वीकारती हूँ कि अगर मैंने समाज सेवा नहीं की होती तो आज मैं कहीं भी नहीं होती न कहीं पहुँचती वकालत तो बहुत लोग करते हैं पर इस  व्यवसाय  में सेवा नहीं करते .अपने व्यवसाय में असहाय लोगो को दी गई सहायता व् समाज सेवा  ही  मुझे काम आई .

 प्र०-बिजली पानी सड़क से अलग  आप चंडीगढ़ में अलग क्या कर पाई  हैं अभी तक ?
 उ०- यह सही कि निगम में कार्यौं में  बिजली, पानी, सड़क, सफाई जैसी मूलभूत  सुविधाओं  को उपलब्ध  करवाना  प्राथमिकता  होती  है  और  हर  महापौर  व्  नगर निगम   को यह  सब करना  ही  होता  है  -हर  बार  जो भी  महापौर  आएगा और जो भी समिति  बनेगी  वह यह सब  करेगी  ही  .यह एक तरह  से  कारपोरेशन  का रोजमर्रा का  काम  है  .परन्तु  मैंने  अपने  कार्य काल में सामजिक  विकास  को भी प्राथमिकता  में  रखा  है -संवेदनशीलता  से  जनता  के सुख  दुःख  को महसूस  कर उन्हें   यथा  संभव  सहायता  पहुँचाना नगर निगम के हर प्रयासों व् कार्यो  से उन्हें  सीधा  जोड़ना  और  उन्हें चंडीगढ़ के  विकास  में उनकी  भी  भागीदारी  का  एहसास  करवाना भी  मेरी  प्राथमिकता  में शामिल  रहा  .लोकतंत्र  में इस नगर निगम को   को जब जनता  ने ही चुना  है  तो पदभार ग्रहण के बाद  भी यह नगर निगम  जनता  को अपना सा  ही लगना   चाहिए इसके लिए मैं  निरंतर  व्  सीधी लोगों  से  जुडी  रही -मैंने जनता  व् खुद के बीच  कभी कोई  पद बाधाएं नहीं खडी  की .
प्रo आपकी अन्य क्या उपलब्धियां है ?
चंडीगढ़ नगर निगम  भारत में पहली निगम  है जिसके द्वारा बेटी के जन्म पर हर माता को एक विशेष  किट दी जाती है  जिसमे महिला  व् नवजात शिशु उपयोगी  प्रसाधन दिए जाते है ताकि महिला  बेटी के होने को उपहार  माने और प्रसन्नता  से  कन्या  जन्म को स्वीकारे .मैं व्यगितागत  रूप से महिलाओं को यह किट देने  जाती  हूँ और उनसे संवाद  करती हूँ .
मैंने जी तोड़ प्रयास कर  चंडीगढ़  में  मलोया में महिला  मार्किट को  प्रस्तावित किया है और यह काम प्रक्रिया  में है.मैं बहुत समय से  चाहती थी  की चंडीगढ़  में  महिला मार्किट का अति  शीघ्र प्रावधान   हो  जहाँ महिलाएं ही उस  बूथ की मालिक हों और अपना  रोजगार  कर  सकें -अवसर मिलते ही हमने  महिलाओं के स्वमितत्व वाली मार्किट की रचना  की है जो शीघ्र ही हकीकत में सामने  आ जाएगी -महिला  सशक्तिकरण  की  ओर ये चंडीगढ़ में पहला  अभिनव प्रयोग होगा .इस  परियोजना  की कार्यवाही अभी चल रही है  और मेरे मेयर रहते मैं इसे पूरा  होते  देखना  चाहती  हूँ  .हालाँकि  मेयर की अवधि  एक वर्ष ही होती है जो बहुत कम होती हैं  और सरकारी  प्रक्रिया  में  कभी कभार  औपचारिकतायें  पूरा  करने  में  समय  लग जाता  है  पर उम्मीद करती हूँ की यह कार्य मेरे रहते अवश्य हो जाये .
पिछले जून में चंडीगढ़ से सेक्टर 17 में चार मंजिला बिल्डिंग में आग लगी और बिल्डिंग  मलबे में बदल गयी .इस हादसे में  दो अग्निशमन कर्मचारियो की कार्य के दौरान आग से निबटते हुए मलबे में दब कर मौत हो गई -यह दुखद  हादसा  था -मेरे प्रयासों से  उन कर्मचारियों के परिवारों को बीस बीस लाख रुपये सहायता  राशि दी गई -यह भी  चंडीगढ़ में पहली बार ही संभव हो पाया  जिसमे कर्मचारियों को इस प्रकार संवेदनशीलता से  राहत  राशि मिल पायी .हालाँकि हम उन परिवारों  के आजीविका कमाने वाले सदस्यों की जान की  जो क्षति हुई   हुई उसकी  भरपाई  तो कभी नहीं कर पाएंगे पर कुछ  राहत तो दे ही पायें है .
चंडीगढ़ में हमने  स्किल ट्रेनिंग का कार्यक्रम सफलता पूर्ण चलाया और इसमें लड़कियों ने भी ऐ सी -रेफ्रिजरेशन  मकैनिक का  काम सीखा  और उन्हें भी टूल्स की किट दी गयी -यह बहुत बड़ी सफलता रही जिसके लिए कारपोरेशन को दिल्ली में अवार्ड भी मिला
प्र०-आपके ऊपर आरोप लगते है की आप दबंगई दिखा कर कानून को अपने हाथ में ले लेती है ?आपको डंडा उठाने की नौबत क्यूँ आन पड़ी ?

उ०-हुआ  यूँ  कि चंडीगढ़ में कुत्तों  के काटने की घटनाओं में अचानक बहुत वृद्धि  हो गई जिसके कारण  आये दिन कभी बूढ़े  कभी बच्चे  कभी नागरिक कुत्तों  के काटने से परेशान हो गए ,बच्चो का पार्को में खेलना  लोगो का सैर करना गलियों में निकलना  दूभर  होने  लगा  आये दिन ऐसे  केस आने लगे -मैंने हस्पतालों में जा जा पीड़ितों  का हाल जाना  और कराहते हुए बच्चो व् लोगो को देखा मेरा मन पसीजा  ,कार्यालय में भी  आये दिन मेरा ऐसी ही शिकायतों  का सामना  होने लगा.और दुखद ये हुआ की अप्रैल में ही सादिया नाम की पांच वर्षीया बच्ची की कुत्ते  के काटने पर  रेबीज होने से मौत हो गई .और मैंने इस समस्या से निबटने के लिए पूरी कमर कस ली और मामला अपने हाथ में ले लिया .  अब हमने कुतों को धरपकड व् उनसे निबटने की ठान लीं  .पहले यह काम निजी संस्था को ही दिया गया था जो असंतोषजनक पाया गया -फिर यह काम कारपोरेशन ने अपने हाथ में लिया  तब कुछ पशु अधिकारों  की सरंक्षक  कुछ संस्थाएं हमारे काम में दखल देने लगी -मैंने उनको समझाया और  भगाया फिर  दिल्ली से एनिमल राइट्स की पैरोकार  सचिव महोदया आ गई और दखल देने लगी - जिसके लिए तो फिर   मैंने डंडा उठा लिया  और भगा दिया -मेरे मन मस्तिस्क में उस बच्ची सदिया  की चीखें थी जिसे कुत्ते  ने काट लिया था और उसकी मौत हो गई थी  -मैंने कहा की तुम्हे कुत्तों की पड़ी है  यहाँ लोग मर रहें है ,हालंकि  इस से मेरी कड़ी आलोचना हुई की मैंने क़ानून को अपने हाथ में लिया  पर मैंने तो कुत्तों  की समस्या से शहर को निजात  दिला  ही  दी .कुत्ते  के काटने से हुई बच्ची की मौत पर भी प्रशासन से मुआवजा दिलवाया .
इसी तरह से जुआ  खेलने वालो को भी मैंने मौके पर जा कर पकड़ा और नशा करने वालो और उतपात मचाने वालो को भी मुझ से थप्पड़  खाने पड़े .मैं नहीं चाहती की चंडीगढ़ शहर  भी नशेडी और जुआरी लोगो की गिरफ्त में आये इसलिए मैं नशे के खिलाफ भी सक्रिय रहती हूँ –मेरी दबंगई हर बुरा  काम के अंत के लिए ही है चाहे इसकी कितनी हो आलोचना  क्यूँ  न हो .
अभी एक काम और बचा है जो बहुत ज़रूरी है जिसे हम जल्द करने वाले हैं  हम चंडीगढ़ में रेहड़ी फड़ी लगाने वालो की पहचान कर उनके वैध  लाईसेंस जारी करने वाले हैं ताकि उन्हें अपने अपने रोजगार करने के लिए कोई परेशानी न हो न उनसे कोई रेहड़ी लगाने पर घूस मांगे न ही कोई उनका शोषण कर पाए -वह अपना छोटा छोटा रोजगार निडरता से कर सकें . यह बहुत बड़ी राहत होगी उनके लिए जो पिछले लम्बे अरसे से इस प्रकार आजीविका कमा रहें हैं .


प्र० - आपका भविष्य में क्या करना चाहती है आपका अगली मंजिल क्या है ?


उतर – मैंने अपने लिए कोई भविष्य या सपना नहीं बुना समय जिस ओर ले जाये चल दूंगी पर जीवन भर लोगों से जुडी रहूंगी इसी प्रकार उनके सुख दुःख में साथ रहूंगी ,परिवार व् समाज के प्रति उतरदायी रहूंगी भविष्य में  देश हित में कभी भी कोई जिम्मेदारी मिलेगी उसे मन से पूरा करुँगी .शांतिमय स्थिर  जीवन जीने की ओर बढती रहूंगी –भजन गाना भी मुझे भाता है और शक्ति माँ में ध्यान लगाना भी . अंतत: देश सेवा व् देशवासियों में खुश रहूंगी -