रविवार, 18 अक्तूबर 2015

बच्चियां जो कभी बच्चियां और किशोरी नहीं होती -



हमारे शहरों में हमारी ही नाक के नीचे कितने ही बाल विवाह हो जाते है कितनी ही किशोरवय बच्चियां माँ भी बन जाती है और हमारा ध्यान इस ओर जाता ही नहीं - हमारे मोहल्ले की धोबन कमला की बेटी  मौलीनि  जैसी कई बार अभागी 18 वर्ष में तीन बच्चो की  विधवा माँ  भी हो जाती हैं -कभी हमने इनके घरों में झाँकने की भी कोशिश नहीं करते -इनकी बच्चियां माँ के साथ साथ घरों में काम करते करते बड़ी हो जाती हैं और आठ साल की आयु में घरों में काम करने लगती है 99 प्रतिशत यौन उत्पीडन का शिकार होती है -(वक्त से पहले जवान हो जाती है -शारीरिक नहीं मानसिक रूप से )बड़ो की तरह व्यवहार करने लगती हैं -13-14  साल की लड़की खुद अपने लिए वर मांग लेती है नहीं तो किसी के भी संग भाग जाने की धमकी भी देती हैं -ये वो बच्चिय है जो बचपन से सीधे जवानी और अधेड़ अवस्था में प्रवेश करती हैं -किशोरवय जैसी कोई उहापोह की स्थिती तो आती ही नहीं .
मुझे यह अनुभव कभी न होता गर मुझे भी किसी फुल टाइम घरेलु सहायिका की ज़रूरत नहीं पड़ती. मेरे घर में नन्ही  मेहमान मेरी दोहती का आगमन हुआ -उसकी परवरिश और घरेलु काम बढे जो मेरे काबू में नहीं आ रहे थे तो मैंने अपनी घरेलु नौकरानी जो पिछले 10 वर्षों से मेरे घर में साफ़ सफाई का काम करती है उसे कहा की कोई लड़की मुझे भी ढून्ढ कर देना जो घर का काम कर सके .वही एक दिन एक लड़की को लायी जो अभी अभी गावं से आई थी,वह पतली सी  सूट दुप्पटा पहने  बड़ी बड़ी आँखों वाली लड़की थी और खूबसूरत रंग रूप नयन नक्श वाली लड़की कहीं से भी कमजोर वर्ग की नहीं लग रही थी - मैंने उसकी उम्र पूछी तो उसने फट से जवाब दिया 16 साल .मुझे उसकी उम्र कम लगी मैंने कहा की इसकी उम्र कम लग रही है उसकी माँ ने जवाब दिया मैडम गरीब घर के बच्चे आप के बच्चों जैसे थोड़े ही होते है इन्हें इतना अच्छा खाना पीना थोडा न ही मिलता है जो आपके बच्चों  उम्र  वाले बच्चो  जैसे दिखें . मुझे उसके तर्क में जान लगी .मैंने उसे रख लिया  पर मन में मेरे खटका रहा की इसकी उम्र कम लगती है .मैंने उस से कई बार पुछा व् यही जवाब देती 16 साल -मेरी शंका गहरी ही रही जो भी मेरे घर आये मई उसे पूछती देखना इसकी उम्र कम लग रही है न -दो तीन डाक्टर भी है परिवार में उनसे पुछा -की भाई किसी की उम्र का पता कैसे लगाते हो ?सभी मेरी बात अनसुनी कर देते या मुस्कुरा देते दीदी क्यूँ टेंशन ले रहे हो जो कही है वही समझ लों -मुझे बार बार विचार  सालता की मैं कोई बाल मजदूरी का अपराध कर रही हूँ मेरे इस दृष्टिकोण से मेरा सारा परिवार सहमत था तो हमने उसकी छुट्टी कर दी और कहा की तुम अभी पढो स्कूल जाओ .हम किसी स्कूल में दाखिला करवा देते हैं और फीस किताबें दे देतें है .एक महीने जो मेहनताना तय था वो और कपडे इतियादी .मेरे घर से छुट्टी होते ही उसकी माँ बाप पर तो पहाड़ टूट पड़ा उसकी बहुत पिटाई हुई की उसने कोई गलत काम किया होगा तभी हमने उसे निकाल दिया .और वो पिटती रही -उसकी माँ आई उसने पुछा की हमने क्यूँ निकल दिया -हमने कहा की वो बहुत छोटी है -उसकी माँ ने और मेरी कामवाली ने कहा मैडम अजीब बात करते हो आजकल  आठ व् नौ साल की लड़कियों की बहुत मांग है  और आप  निकाल रहे हो -मैंने पुछा वो क्यूँ  तो जवाब मिला की एक तो छोटी बच्ची खाती  कम है व् प्रतिरोध नहीं करती जो भी काम करवा लों -और ऊँच नीच भी कोई हो जाये तो  बच्ची ही तो  है भूल जाती है और आप ही बताओ हम सब सुबह  अपने अपने काम पर चले जाते है लड़की जात किस के भरोसे छोड़ कर जाएँ -आपको नहीं पता मैडम हमारी लड़कियां पैदा होते ही जवान होती है सभी के लिए -इसकी पहरेदारी करें या रोटी कमायें हमारे लिए तो ये मुसीबत हैं किसी  अच्छी कोठी में रखवा देंगे तो कोठी वाले की जिम्मेदारी हो जाती है और चार पैसे बन जाते है .हम इन्हें अपने घरों में झुग्गिओं में इन्हें नहीं छोड़ सकते .जब छोटी होती है तब साथ ले जाते हैं और थोड़ी बड़ी हुई तो काम पर ही लगाना ठीक होता है .अबर आप बाबु लोग भी इन्हें न रखो तो हम कहाँ जाएँ ,गाँव हो या शहर इन्हें तो कोई एक जीन्स पैंट और मोबाइल दे कर कोई भी  बरगला लेता है और ये भाग जाती है फिर कौन ढूंढें –रोज कुछ न कुछ  बुरा बुरा गन्दा हो रहा है कहाँ ले जाएँ .हम तो 13-14  साल में तो इनकी शादी कर देना ही ठीक रहता है .अब तो कोठी वाले भी  पैसा ले कर भी घूम रहें है ब्याह के लिए कहाँ जाएँ क्या करें .
सभी को कोई अच्छी कोठी मिले ज़रूरी तो नहीं हम कितने इज्ज़त वाले बड़ी बड़ी कोठियों वालो से अपना हाथ छुड़ायें है कितनी बात दबोच में आयें है कोई कुछ कह तो नहीं सकते न कुछ कर सकते अकेले रोते मुहं धोते  दो दिन छुट्टी करते है काम पर नहीं जाते फिर चल देतें हैं ,कोठी वाली मैडम पांव पकड लेती हैं किसी को बताना नहीं हमारी तो यही तो जिन्दगी है.यही इनकी भी होगी आदमी दारु पी कर आएगा ये गाली बकेगी  वह पीटेगा यही तो सीख रही हैं यह . आपके घरों में कुछ तो अच्छा सीखेगी ही .सब तकरीरें सुनने के बाद भी मैं उस बच्ची को नहीं रख पायी और उसे पढाने पर बल दिया,पर ऐसा होना नहीं था उसे किसी दूसरी कोठी में लगा दिया गया ,
पर यह तो समझ आया की जिस झोपडी  में पीने हाथ धोने का पानी न हो उनसे हम नहा कर आने साफ़ सुथरे कपडे पहन कर आने की उम्मीद क्यूँ लगते हैं .जो बच्चे माँ बाप के साथ एक ही झुग्गी में सो जाते हों और माँ बाप भी वाही उन्ती सी जगह में चार पांच संतान और बाधा लेते हों ओं बच्चो से हम क्या उम्मीद करते है की समय से पहले बड़े नहीं होंगे ,

उत्तर प्रदेश बिहार से आने वाले लोग सबसे पहले ,मजदूरी ,सब्जी की रेहड़ी और इनकी औरतें घरों में काम ढूंढती है मजदूरी करती हैं और धोबी का अड्डा जमाना तो इनमे स्टेटस का प्रतीक है की शहर में ठिकाना हो गया . अधिकतर का उसी अड्डे पर इनके परिवार का रहना खाना सोना नहाना भी हो जाता है किसी खली प्लाट पर किसी दुकान या मार्किट के बरामदे या पिछवाडे इनकीदिन छिपते ही इनकी दुनिया हो जाते है .यही पर बिलकुल हमारे घर के बाई ओर एक और धोबी अपनी ग्रहस्थी जमाये हुए है और बाल बच्चे औरत वहीं नहाना धोना कर लेते हैं बच्चे तो वहीं मल मूत्र त्याग करते है परन्तु धोबी  धोबिन का सेक्टर 4 की मार्किट में शौच जाते हैं –जितनी बार भी जाना हो उन्हें मार्किट में चल कर ही जाना होता है जिसके लिए वो हर माह सार्वजानिक सौचालय प्रबंधन कर्मचारी से महीने का ठेका कर लेते हैं ,और यदि वह धोबिन बीमार हो जाये तो वह अपनी दरी शौचलय के पास ही बिछा लेती है क्यूंकि वह बार बार चलने में असमर्थ होती हैं ,इस किशोरी बच्चिओं के लिए भी शोच जाना उतना ही दुष्कर है  

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