सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

सोने के ओलिंपिक पदक की ओर भागते कदम - पिंकी जांगड़ा युवा बॉक्सर की उड़ान


                        
                                         
विश्व में बॉक्सिंग खेल मुख्यत: पुरषों के वर्चस्व का खेल रहा है.सहज जिज्ञासावश  कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहाँ महिलाओं ने अपने हाथ आजमाना नहीं चाहा .दशकों से अनेक देशों में महिलाओं के बॉक्सिंग करने पर प्रतिबन्ध था .पुरषों द्वारा खेले जाने वाले इस खेल को  बल प्रदर्शन के  खेल के रूप में जाना जाता रहा है . इस खेल को महिलायों  ने भी अठारहवी शताब्दी में ही खेलना शुरू कर दिया था,1876 में अमेरिका में महिला बॉक्सिंग का मुकाबला  में दर्ज हुआ .  महिला बॉक्सिंग को ओलिंपिक खेल बनने में सौ वर्ष  से  भी अधिक समय लगा,सन 1904 के ओलिंपिक खेलो में महिला बॉक्सिंग का पहला  प्रदर्शनी मुकाबला हुआ था और अब जाकर वर्ष 2012 के ओलिंपिक खेलो में इसे शामिल किया  गया . महिला बॉक्सिंग को ओलिंपिक खेलों में जगह पाने को सौ वर्ष से अधिक लग गए. निश्चित रूप से महिलाओं के लिए यह स्वर्णिम अवसर था जहाँ वे पदक तालिका में अपनी हिस्सेदारी कर सकती थी .भारतीय बॉक्सर ऍम सी मेरिकोम ने स्वर्ण पदक से इतिहास रचा .भारत की उत्साही बॉक्सर युवतियों में उत्साह का संचार हो गया .भारत की महिला बॉक्सिंग की हर वेट केटेगरी में युवतियां अब तैयार है और अन्तराष्ट्रीय मंचो पर पदक ला रही हैं .हरियाणा के हिसार जिले से सम्बन्ध रखने  वाली युवा बॉक्सर देश की नयी उम्मीद है और सोने का पीछा करने के लिए औरंगाबाद में राष्ट्रीय बॉक्सिंग कैंप के रिंग में  अभ्यास में  निरंतर मुक्के जड़ रही है .2014 के गल्स्गो  कामन वेल्थ खेलों में पिंकी बॉक्सिंग में भारत के लिए ताम्बे का पदक ला पाई थी अब उसके हर पदक का रजत व्  ताम्बई रंग सुनहरे में परिवर्तित  हो जाये इसी धुन में पिंकी आजकल दमखम लगा रही है .पिंकी के खेल की  तरह उसकी खुद की अब तक की यात्रा भी कम रोमांचक नहीं है. अपने भाई अमित को बॉक्सिंग करते देख कर ही पिंकी को बॉक्सिंग  रिंग तक पहुंचने  की लगन हुई और भाई ने सहयोग दिया और सफलता का सपना भी दिखाया जिसका पीछा पिंकी को ही करना था .एक बार रिंग में उतरी तो वही जीवन बन गया .पिंकी ने कहा कि मेरे कोच बलदेव सिंह जी ने मुझे पर भरोसा किया और मैंने मेहनत की .खेल के हर स्तर पर उसे अनुभवी कोच मिले जिनसे उसने सीखा .
  आरंभिक दिनों में लड़खड़ाई भी पर खुद पर विश्वास कायम रखा और प्रतियोगिताओं में जीत का सिलसिला शुरू हो गया , 2012 में तेहरवीं सीनियर वीमेन नेशनल बॉक्सिंग मुकाबले में स्वर्ण पदक, 2014,व् 2015  में आल इंडिया अन्तर रेलवे बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक , रायपुर में हुई पहली मोनेट एलिट वीमेन नेशनल बॉक्सिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक उन कई दर्जनों मुकाबलों में मिले पदको की सूची में से कुछ हैं जिन्हें पिंकी ने जीत कर अपनी पहचान बनाई .
अंतरष्ट्रीय मुकाबलों में इंडोनेशिया में बाईसवें प्रेसिडेंट कप ओपन इंटरनेशनल टूर्नामेंट में स्वर्णपदक , 2014 में दक्षिण कोरिया में हुई आठवीं महिला अमेच्योर वर्ल्ड बॉक्सिंग एसोसिएशन द्वारा आयोजित वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में क्वार्टर फाइनल तक पहुंची ,2012 में मंगोलिया में हुई एशियन वीमेन चैंपियनशिप में रजत पदक . 2012 आराफोरा गेम्स आस्ट्रलिया में वे बेस्ट बॉक्सर चुनी गई .उस से पहले भारत श्रीलंका ड्यूल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करना पिंकी के  लगातार उत्तम होते प्रदर्शन की झलक मात्र है
पिंकी हरियाणा में अपवाद है जहाँ  हरियाणा के समाज  में ये धारणा लगभग विकसित हो चुकी थी हरियाणा में केवल कृषक जाती विशेष के युवा ही खेलों में अपना मुकाम बना पाते है जिनके परिवार में  कृषि भूमि व् बहुलता में दूध घी अच्छे खान पान की बहुलता है .दलित ,कमजोर व् पिछड़े वर्ग के युवा खेलों  में नहीं जा पाते क्यूंकि खिलाडी के पोषण का सामर्थ्य इन में नहीं होता. इस मामले में सौभग्यशाली रही  हरियाणा की अति पिछड़ी जाती के  मध्यमवर्गीय परिवार से संबध रखने वाली  पिंकी ने साबित किया की इच्छाशक्ति और परिश्रम से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है , वह कहती है कि हमें समाज में स्थापित  किसी भी तरह की कोई भी धारणा को बस यूँ ही  नहीं मान लेना चाहिए और न ही  पीछे हटना चाहिए .खेल जाती धर्म के ऊपर सिर्फ मानवता को ही स्थापित करते है –खेलों का एक ही भोजन है परिश्रम और एक ही धर्म है  राष्ट्र के लिए श्रेष्ठ प्रदर्शन.  
हरियाणा व् भारत के विभिन्न  रिंगों में चुपचाप अभ्यास में लगी रही शांत और सरल व्यक्तित्व की धनी ,एकाग्र पिंकी की ने वर्ष ---में हुए  घरेलु मुकाबले में  ओलिंपिक विजेता मेरिकोम को हरा दिया  तब मीडिया व् देश का ध्यान पिंकी की ओर आकर्षित हुआ .देश में रास्ट्रीय मुकाबलों में पिंकी ने तीन बार ऍम सी मेरिकोम को हरा कर देश दुनिया को बताया की भारत की महिला बॉक्सिंग की  अगली पंक्ति भी अन्तराष्ट्रीय  मुकाबले के लिए तैयार है . पिंकी ने मेरिकोम की जगह ली और कॉमन वेल्थ गेम्स में भारत का प्रतिनिधितव किया . हालाँकि उसे कॉमन वेल्थ खेलों में कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा .पिंकी को बॉक्सिंग में जायंट किल्लर निक नाम से भी जाना जाता है.
पिंकी ने बताया की जब उसने बॉक्सिंग में करियर बनाने का मन बना लिया तो पहले  उनकी माँ थोड़ी असुरक्षित हुई .माँ समझती थी  की समाज ये मानता  है कि खेलों में आगे बढ़ने व् खेलो को व्यवसाय चुनने वाले खिलाडी औसत बुद्धि के होते हैं अर्थात पढने में नालायक लोग ही खेलों में जाते हैं और पिंकी तो पढाई में भी बहुत होशियार है हमेशा कक्षा में शिखर पर रहती है तो लोग क्या सोचेंगे .दुसरा कि खलों में भाग लेने वाली लड़कियों की शादी में बहुत कठिनाई होती वर खोजने में .बॉक्सिंग खेल में चोट लगने और चेहरा रूप बिगड़ने की भी सम्भावना होती है जिसके कारण भी आगे जीवन में गृहस्थी बसाने में मुश्किल पेश आ सकती है .पर धीरे धीरे बॉक्सिंग में उपलब्धियां हासिल करते रहने से माँ की सभी शंकाएं मिट गई .पिता ने व् माँ दोनों ने ही  हौसला बढ़ाया और साथ दिया .पिंकी का मानना है परिवार का सहयोग मिलना किसी भी खिलाड़ी  लड़की के लिए प्लस पॉइंट होता है.परिवार का साथ होना उसके आत्मविश्वास में वृद्धि ही करता है , खेल में हमेशा  उतार चढ़ाव आते है और अनेक मोवैज्ञानिक दबावों का भी सामना करना होता है .परिवार के साथ होने से हमें मनोवैज्ञानिक बल मिलता है.  
प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म मेरिकोम में दिखाया जाता है कि भारतीय बॉक्सिंग के  चयनकर्ता जानबूझ कर मैरीकोम को हटाने के लिए एक नई युवति का चयन करते है जो पिंकी ही है और उसे फिल्म में अलग नाम से दिखाया जाता है .पिंकी इस दृश्य के फिल्मांकन पर प्रतिक्रिया स्वरुप सिर्फ मुस्कुरा कर कहती है यह तो फिल्म है हम सब जानते हैं फिल्मे शुद्ध  मनोरंजन के लिए बनाई जाती है फिल्म में दर्शकों को भावुक करना यानि इमोशन जोड़ने के लिए फिल्म वालों को कुछ तो फ़िल्मी करना ही होता है इसलिए फिल्म में ऐसे दृश्य डाले गए .उसने बताया की चयनकर्ताओं ने कभी मेरी नियमों से बाहर जा कर अनुशंषा नहीं की कभी कोई पक्षपात नहीं किया  न ही कभी उसे यूँ ही बेवजह  चुना गया ,खेल में उसकी उपलब्धियों का लम्बा रिकॉर्ड है और मेरा निरंतर अभ्यास ही मेरे  काम आया .पिंकी ने बताया की वह अब तक तीन बार घरेलु मुकाबलों में एम् सी मैरिकोम को हरा चुकी हैं और हर बार  न चयनकर्ता समान होते हैं न प्रतियोगी जो भी खिलाडी अभ्यास से तैयार होता है वही भिड़ता है.ऐसे अकस्मात किसी का भी चयन नहीं हो जाता . मैरिकोम फिल्म आने के बाद भी उन्होंने मैरिकोम को पछाड़ कर कामनवेल्थ गेम्स में अपनी जगह पक्की की थी,वहाँ मुझे कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा .मैं मानती हूँ  की मैरिकोम की खेलने की तकनीक शानदार है और मैं उनकी बड़ी फैन  हूँ और वो मेरे लिए प्रेरणा रही है परन्तु उनके अभ्यास में न रहने का लाभ मुझे मिला .और यूँ भी जीवन में कोई न कोई कभी न कभी  किसी का स्थान तो लेगा ही परिवर्तन तो नियम है .खेलों में सिर्फ अभ्यास की निरंतरता, सब्र और सहनशीलता और श्रेष्ठ प्रदर्शन ही काम आता है .
पिंकी ने मैरिकोम के उस आरोप को भी ठुकराया की  खेलों उत्तर पूर्व के खिलाड़ी होने के कारण कोई भेद भाव किया जाता हैं , उनका कहना है मैरिकोम को मुझे  या किसी और खिलाडी को अवसर इसलिए मिलते हैं की उस वक्त हम खेल में अपना  सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन कर रहे होतें है. अन्तराष्ट्रीय मुकाबलों में किसी की कोई पृष्ठभूमि नहीं बल्कि खेल ही काम आता है. पिंकी चयनकर्ताओं पर पूरा भरोसा दिखाती हैं और उनका मानना है हमारे चयनकर्ता अनुभवी है और उन पर कोई सवाल उठाना बेमानी है .
पिंकी ने माना की हरियाणा प्रदेश का माहौल खेलों  और खिलाडियों के लिए बहुत अच्छा है .सरकार की खिलाडियों को सम्मानित करने की व् खेल विकास की  नीतियां  युवाओं में हरियाणा के लिए खेलने के लिए प्रोत्साहित करती हैं . खेल पदकों के मामले में हरियाणा देश में अग्रणी है यह हमारे लिए भी ख़ुशी की बात होती है और गर्व भी होता है अपने खिलाडियों पर.   
अपने अनुभव सांझा करते हुए पिंकी ने बताया की जब खिलाड़ी अपना अपेक्षित प्रदर्शन नहीं दे पाता तो उसके आसपास उसके कोच का अधिकारीयों का उसके खेल के चाहने वालो का ध्यान उस खिलाडी से हटने लगता है और यह स्थिती मानसिक रूप से उसे  बहुत तोड़ देती है शुरुआत में मेरे  साथ भी एक बार ऐसा हुआ खेल छोड़ने का भी मन हुआ तभी मैंने खुद को संभाला और तय कर लिया मुझे तो बस हर स्थिती में भिड़ना ही हैं  ,मैंने उदासीनता को  अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया  न ही मैं टूटी मैंने बस ठान लिया अब तो मैं बस शीर्ष का पीछा करुँगी और सबको दिखा दूंगी और अगली ही चैंपियनशिप में  नतीजे बदलने लगे तब से आज तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा .पिंकी को भारतीय रेल ने अपने यहाँ नौकरी दी जिस से उसे आर्थिक ताकत मिली उसने भारतीय रेल के लिए पदक हासिल किये .
पिंकी कहती हैं की सभी लड़कियां तो इतनी भाग्यशाली नहीं होती जिनको अपने सपने देखने और उन्हें पूरा करने के अवसर मिलते है और यथायोग्य  नौकरी की सुरक्षा मिले या पदकों की उपलब्धियां मिले पर जो भी महिलाएं युवतियां किसी भी क्षेत्र में  प्रयास कर रही हैं उनका प्रयास करना ही अपने आप में सम्मान है .मैं यह समझती हूँ की अभी महिलाओं के हक़ में  सामजिक माहौल को बहुत बदलने की ज़रूरत है महिलाओं के प्रति सोच अभी भी उतनी नहीं बदली है जितनी बदलनी चाहिए थी .महिलाओं को सामजिक व् आर्थिक सुरक्षा के लिए प्रयास करते रहना चाहिए .
बॉक्सिंग से पिंकी और उनकी अन्य सहयोगी महिला बॉक्सरों को एक फायदा तो जरुर हुआ है कि जो उनके बारे में जानता है की वह बॉक्सर युवतियां है तो कोई भी मनचला लड़का उनकी और आँख उठा कर भी नहीं देखता .वे चैंपियनशिप के लिए यात्राओं में कई बार मिल कर छेड़छाड़ करने वाले लड़कों को पीट भी चुकी है रिंग के बाहर ये लाइव पंचिंग उन्होंने कई लड़कियों को इन मनचलों से  बचाते हुई भी की है .उसका कहना कि खेल ने उन्हें दो दो हाथ करने की ताकत दी है जिससे उनका आत्म रक्षा का गुर है और वे अपनी सुरक्षा व् आत्मरक्षा के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी हैं खेलों से  उनकी  सोच का विस्तार ही हुआ है .

पिंकी कहती है कि हर लड़की को एक बार खेलों में ज़रूर भाग लेना चाहिए. शारीरिक व् मानसिक रूप से भी उन्हें ताकतवर होना चाहिए .पिंकी 51 किलो ग्राम वजन में खेलती है और कहती है यह खेल सिर्फ शारीरिक ताकत का ही नहीं बल्कि दिमाग का खेल भी है आप को कुछ ही क्षणों में विरोधी के वार का अंदाज़ा लगाना होता है इस खेल में तकनीक है तत्परता है और रोमांच है और लड़कियां रोमांच के अनुभव से क्यूँ दूर रहें.

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