गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

हर महिला में दबंगई के गुण होने ही चाहिए पूनम शर्मा ,महापौर चंडीगढ़- साक्षात्कार -पूनम शर्मा महापौर चंडीगढ़






चंडीगढ़  नगर निगम की महापौर  पूनम शर्मा जिसे दबंग महापौर के नाम से जाना  जाता है अपनी दबंगई के किस्सों पर मुस्कुरा कर कहती है उनकी दबंगई जनता के सरोकारों के लिए है वह प्रशासन व् सामाजिक जिम्मेदारी लेने वाले व्यक्तियों द्वारा  काम में  की गई  किसी भी प्रकार की लापरवाही और आम जन की  अनदेखी पसंद नहीं करती चूँकि वह खुद दिन रात जनता के हित में काम करती रहती है इसलिए वे हमेशा चाहती है उनकी बात पर फौरन अमल भी किया जाये .पूनम शर्मा का मानना है कि उनकी दबंगई गरीब, लाचार, असह्य व् समाज की पंक्ति में खड़े  अंतिम व्यक्ति के लिए है इसलिए उसे अपनी दबंगई की छवि से कोई परहेज है ही कोई गुरेज और वह कहती है की हर महिला को अपनी भीतरी आत्म विश्वास से दबंग ही होना चाहिए .अपने विशेष साक्षात्कार में पूनम शर्मा ने वरिष्ठ सामजिक प्रोत्साहक (social motivator )सुनीता धारीवाल के अनेक प्रश्नों का जवाब खुल कर और बेबाकी से दिया :- 
प्र०-आपका बचपन कहाँ और कैसे बीता और किस परिवेश में आपका पालन पोषण हुआ ?
उतर –मैं संयुक्त पंजाब की राजधानी शिमला में पैदा हुई वहां के सेंट थॉमस स्कूल में दूसरी कक्षा तक पढ़ी फिर पिता जी का तबादला चंडीगढ़ में हो गया तो  चंडीगढ़ के सेक्टर बीस के स्कूल से हाई स्कूल और बाद में कुछ वर्ष मेहर चाँद महाजन डी ऐ वी कॉलेज  व् फिर  खालसा कॉलेज से स्नातक  हुई .मेरी खेलों में बहुत रुचि थी पर उस समय लड़कियों को खेल चुनने या करियर चुनने की इतनी स्वतंत्रता नहीं थी जितनी आज है .पर मैं उस दौर में भी खेलों में और  विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक मंचो पर आगे रही.मैंने कभी पढाई के लिए कोई फीस नहीं दी क्यूंकि मेरा दाखिला हमेशा खेल कोटे से हुआ जिसमे पढ़ाई की फीस माफ़ होती थी .मैंने लगभग हर खेल में भाग लिया क्यूंकि उस वक्त लडकियों  की भागीदारी  खेलो में न के बराबर थी और जितनी भी लडकियां  थी उनके पास ढेरों अवसर उपलब्ध थे .मेरी माँ हम पांच बहनों के लिए बहुत बड़ा संबल थी उनकी चाहत थी की वे अपनी बेटियों को ज़रुर शिक्षित करेंगी .उनके मन में यह  जज्बा बहुत पहले से  से था जब  आठवी  कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई छुड़वा दी गई थी और तभी  उन्होंने भी ठान लिया था अगर उनकी बेटियाँ होंगी तो वे उन्हें ज़रूर उच्च शिक्षित करेंगी और उन्होंने ऐसा किया भी .हम सभी बहने खूब पढ़ी और अपने अपने क्षेत्र में सफलता से स्थापित भी हुई .
प्र०-  आपकी युवावस्था की कुछ यादे हमारे पाठको के लिए बताएं  व्  युवा मन के  सपने क्या थे  ?
उतर -ऐसा भी नहीं की अपने अपनी युवा अवस्था में आंखे न चार की हों मैंने वह भी किया मेरे पति सरदार सुरिंदर जीत सिंह मुझे भा गए और मित्रता के पश्चात  उनसे मैंने शादी की और सफलता से निभाई और सुखी  गृहस्थी  बसाई .यह अंतरजातीय,अंतर्धर्मीय   विवाह था मैं ब्राह्मण परिवार से और वो सिख राजपूत थे.मुझे यह शादी निभाने में कोई मुश्किल नहीं आई क्यूंकि जो लडकियां  खेलों में या अन्य सामजिक, सांस्कृतिक गतिविधिओं में अग्रणी रहती है उनमें  हर प्रकार की भिन्नता को अपनाने और उसकी सराहना करने का गुण आ जाता है और वे हर परिस्थिति से सामंजस्य बैठा ही लेती है . मैंने भी यही किया मैं ब्राह्मण होते हुए शुद्ध शाकाहारी हूँ पर यदि परिवार को माँसाहार बना कर देना हो तो वो भी मैं कर लेती हूँ ,मैं अपने घर परिवार व् अपनी रसोई को भी पूरा समय  खुशी खुशी  देती हूँ .
प्र० -एक  महिला महापौर का सडको पर स्वय वाहन चलाना भी लोगो को आकर्षित करता है ?आपको कैसा लगता है ?
उतर -मुझे किशोरवस्था से ही वाहन चलने का शौक था मैंने बुलेट मोटरसाइकिल से कार ,जीप ,स्कूटर, ट्रेक्टर सब कुछ चलाया है –मैं जहाज  उड़ाने का सपना देखती  थी और पायलट बनना चाहती थी.पर यह संभव नहीं हुआ पर रफ़्तार और उड़ान तो मुझे आज भी रोमांचित करती है .मैंने महपौर होते हुए भी सभी वाहन चंडीगढ़ की सड़कों पर दौड़ाये है अभी  हाल ही में औरतों से भरी ट्रैक्टर  ट्राली ले कर मैंने चंडीगढ़ में मलोया स्थित  एक मैदान की जुताई कर दी पार्क बनाने के लिए और अब वह पार्क विकसित  कर जनता को सुपुर्द कर दिया जायेगा . जहाँ तक लोगो की बात है यह सब उन्हें आकर्षित तो करता ही है कि  उनकी महिला महापौर  निडरता से सभी वाहन चलाती है और मेरा वाहन चलाना जनता में मेरे प्रति विश्वास भी बढाता है कि उनकी महापौर कहीं भी किसी भी समय आने जाने के लिए पराश्रित नहीं है- स्त्री भ्रमण की स्वतंत्रता भी एक प्रकार का सशक्तिकरण है जिसे हर महिला को अनुभव करना ही  चाहिए .
प्र० – अधिवक्ता से  महापौर बनने  तक का सफ़र कैसा रहा ?
उतर-मैं पेशे से वकील रही इस दौरान बहुत से लोगो को न्याय व् राहत दिलाने में लगी रही -  व्यवसाय से ज्यादा यह काम मेरे लिए समाज सेवा जैसा ही था .किसी को राहत पहुंचा कर मुझे खुशी मिलती थी -और भी सामजिक काम -असह्य लड़कियों की शादी करवाना -किसी गरीब असहाय लावरिस लाशों का भी अंतिम संस्कार करवाना  जैसे काम भी  मैं  निरंतर करती रहती थी .लोगो के सुख दुःख में शामिल होना मेरी स्वाभाविक आदत बन चुके थे और मैं किसी के भी  बुलावे पर पहुच जाती थी -लोगो को यह विश्वास हो गया था की पूनम को यदि याद किया  है  तो वह आएगी ज़रूर चाहे कोई भी साधन कर के आये साइकल पर आये या  पैदल आये या ट्रेक्टर पर पर आएगी ज़रूर -मैं उनकी छोटी छोटी खुशियों और विपतियों विपतियों व् बाधाओं   में भी साथ देती रहती थी .जिससे मेरी मौलिक लोकप्रियता तो बन ही गई  थी .मैंने दिसम्बर 2011 में कारपोरेशन का चुनाव लड़ा और मैं यह चुनाव हार गई पर इस से मुझे अनुभव हुआ. फिर 2012 में बी जे पी की एक महिला पार्षद की अचानक मौत होने से पार्षद की सीट रिक्त हो गई और निगम के  उप चुनाव की घोषणा हो गई .सभी पार्टियों का ध्यान एक ही सीट पर आ गया और यह सीट निकलना सभी पार्टियों के लिए चुनौती बन गया .कांग्रेस पार्टी के नेतृतव  ने व् सभी स्थानिय कार्यकर्ताओं ने मुझ पर अपना विश्वास दिखाया और मुझे टिकट दी  गई –कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चंडीगढ़  के पूर्व सांसद श्री सतपाल बंसल जी ने व् चंडीगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष श्री बी बी बहल ने भी अपनी सरंक्षक की भूमिका निभाई और मुझे प्रोत्साहन व् पूरा सहयोग दिया .कड़े मुकाबले में मैं चुनाव जीत गई .और महापौर का चुनाव तो और भी रोमांचक रहा  कांग्रेस के अल्पमत में होते हुए भी मैं महापौर का चुनाव जीत गई .
मुझे स्वतंत्र व् मनोनीत पार्षदों के साथ मेरे व्यक्तिगत सौहार्दपूर्ण संबधों  व्  मेरे द्वारा उनके लिए  किये गए जन कार्यो  पर भरोसा था साथ ही बहुजन समाज पार्टी के सांसदों ने भी मेरा सहयोग दिया -श्री पवन बंसल जी की भी बड़ी भूमिका रही और मैं कांगेस के अल्पमत में होते हुए भी महापौर बन गई .अब काम करके दिखाना था चुनौतियों को स्वीकार करने का वक्त था –पर मैं यह स्वीकारती हूँ कि अगर मैंने समाज सेवा नहीं की होती तो आज मैं कहीं भी नहीं होती न कहीं पहुँचती वकालत तो बहुत लोग करते हैं पर इस  व्यवसाय  में सेवा नहीं करते .अपने व्यवसाय में असहाय लोगो को दी गई सहायता व् समाज सेवा  ही  मुझे काम आई .

 प्र०-बिजली पानी सड़क से अलग  आप चंडीगढ़ में अलग क्या कर पाई  हैं अभी तक ?
 उ०- यह सही कि निगम में कार्यौं में  बिजली, पानी, सड़क, सफाई जैसी मूलभूत  सुविधाओं  को उपलब्ध  करवाना  प्राथमिकता  होती  है  और  हर  महापौर  व्  नगर निगम   को यह  सब करना  ही  होता  है  -हर  बार  जो भी  महापौर  आएगा और जो भी समिति  बनेगी  वह यह सब  करेगी  ही  .यह एक तरह  से  कारपोरेशन  का रोजमर्रा का  काम  है  .परन्तु  मैंने  अपने  कार्य काल में सामजिक  विकास  को भी प्राथमिकता  में  रखा  है -संवेदनशीलता  से  जनता  के सुख  दुःख  को महसूस  कर उन्हें   यथा  संभव  सहायता  पहुँचाना नगर निगम के हर प्रयासों व् कार्यो  से उन्हें  सीधा  जोड़ना  और  उन्हें चंडीगढ़ के  विकास  में उनकी  भी  भागीदारी  का  एहसास  करवाना भी  मेरी  प्राथमिकता  में शामिल  रहा  .लोकतंत्र  में इस नगर निगम को   को जब जनता  ने ही चुना  है  तो पदभार ग्रहण के बाद  भी यह नगर निगम  जनता  को अपना सा  ही लगना   चाहिए इसके लिए मैं  निरंतर  व्  सीधी लोगों  से  जुडी  रही -मैंने जनता  व् खुद के बीच  कभी कोई  पद बाधाएं नहीं खडी  की .
प्रo आपकी अन्य क्या उपलब्धियां है ?
चंडीगढ़ नगर निगम  भारत में पहली निगम  है जिसके द्वारा बेटी के जन्म पर हर माता को एक विशेष  किट दी जाती है  जिसमे महिला  व् नवजात शिशु उपयोगी  प्रसाधन दिए जाते है ताकि महिला  बेटी के होने को उपहार  माने और प्रसन्नता  से  कन्या  जन्म को स्वीकारे .मैं व्यगितागत  रूप से महिलाओं को यह किट देने  जाती  हूँ और उनसे संवाद  करती हूँ .
मैंने जी तोड़ प्रयास कर  चंडीगढ़  में  मलोया में महिला  मार्किट को  प्रस्तावित किया है और यह काम प्रक्रिया  में है.मैं बहुत समय से  चाहती थी  की चंडीगढ़  में  महिला मार्किट का अति  शीघ्र प्रावधान   हो  जहाँ महिलाएं ही उस  बूथ की मालिक हों और अपना  रोजगार  कर  सकें -अवसर मिलते ही हमने  महिलाओं के स्वमितत्व वाली मार्किट की रचना  की है जो शीघ्र ही हकीकत में सामने  आ जाएगी -महिला  सशक्तिकरण  की  ओर ये चंडीगढ़ में पहला  अभिनव प्रयोग होगा .इस  परियोजना  की कार्यवाही अभी चल रही है  और मेरे मेयर रहते मैं इसे पूरा  होते  देखना  चाहती  हूँ  .हालाँकि  मेयर की अवधि  एक वर्ष ही होती है जो बहुत कम होती हैं  और सरकारी  प्रक्रिया  में  कभी कभार  औपचारिकतायें  पूरा  करने  में  समय  लग जाता  है  पर उम्मीद करती हूँ की यह कार्य मेरे रहते अवश्य हो जाये .
पिछले जून में चंडीगढ़ से सेक्टर 17 में चार मंजिला बिल्डिंग में आग लगी और बिल्डिंग  मलबे में बदल गयी .इस हादसे में  दो अग्निशमन कर्मचारियो की कार्य के दौरान आग से निबटते हुए मलबे में दब कर मौत हो गई -यह दुखद  हादसा  था -मेरे प्रयासों से  उन कर्मचारियों के परिवारों को बीस बीस लाख रुपये सहायता  राशि दी गई -यह भी  चंडीगढ़ में पहली बार ही संभव हो पाया  जिसमे कर्मचारियों को इस प्रकार संवेदनशीलता से  राहत  राशि मिल पायी .हालाँकि हम उन परिवारों  के आजीविका कमाने वाले सदस्यों की जान की  जो क्षति हुई   हुई उसकी  भरपाई  तो कभी नहीं कर पाएंगे पर कुछ  राहत तो दे ही पायें है .
चंडीगढ़ में हमने  स्किल ट्रेनिंग का कार्यक्रम सफलता पूर्ण चलाया और इसमें लड़कियों ने भी ऐ सी -रेफ्रिजरेशन  मकैनिक का  काम सीखा  और उन्हें भी टूल्स की किट दी गयी -यह बहुत बड़ी सफलता रही जिसके लिए कारपोरेशन को दिल्ली में अवार्ड भी मिला
प्र०-आपके ऊपर आरोप लगते है की आप दबंगई दिखा कर कानून को अपने हाथ में ले लेती है ?आपको डंडा उठाने की नौबत क्यूँ आन पड़ी ?

उ०-हुआ  यूँ  कि चंडीगढ़ में कुत्तों  के काटने की घटनाओं में अचानक बहुत वृद्धि  हो गई जिसके कारण  आये दिन कभी बूढ़े  कभी बच्चे  कभी नागरिक कुत्तों  के काटने से परेशान हो गए ,बच्चो का पार्को में खेलना  लोगो का सैर करना गलियों में निकलना  दूभर  होने  लगा  आये दिन ऐसे  केस आने लगे -मैंने हस्पतालों में जा जा पीड़ितों  का हाल जाना  और कराहते हुए बच्चो व् लोगो को देखा मेरा मन पसीजा  ,कार्यालय में भी  आये दिन मेरा ऐसी ही शिकायतों  का सामना  होने लगा.और दुखद ये हुआ की अप्रैल में ही सादिया नाम की पांच वर्षीया बच्ची की कुत्ते  के काटने पर  रेबीज होने से मौत हो गई .और मैंने इस समस्या से निबटने के लिए पूरी कमर कस ली और मामला अपने हाथ में ले लिया .  अब हमने कुतों को धरपकड व् उनसे निबटने की ठान लीं  .पहले यह काम निजी संस्था को ही दिया गया था जो असंतोषजनक पाया गया -फिर यह काम कारपोरेशन ने अपने हाथ में लिया  तब कुछ पशु अधिकारों  की सरंक्षक  कुछ संस्थाएं हमारे काम में दखल देने लगी -मैंने उनको समझाया और  भगाया फिर  दिल्ली से एनिमल राइट्स की पैरोकार  सचिव महोदया आ गई और दखल देने लगी - जिसके लिए तो फिर   मैंने डंडा उठा लिया  और भगा दिया -मेरे मन मस्तिस्क में उस बच्ची सदिया  की चीखें थी जिसे कुत्ते  ने काट लिया था और उसकी मौत हो गई थी  -मैंने कहा की तुम्हे कुत्तों की पड़ी है  यहाँ लोग मर रहें है ,हालंकि  इस से मेरी कड़ी आलोचना हुई की मैंने क़ानून को अपने हाथ में लिया  पर मैंने तो कुत्तों  की समस्या से शहर को निजात  दिला  ही  दी .कुत्ते  के काटने से हुई बच्ची की मौत पर भी प्रशासन से मुआवजा दिलवाया .
इसी तरह से जुआ  खेलने वालो को भी मैंने मौके पर जा कर पकड़ा और नशा करने वालो और उतपात मचाने वालो को भी मुझ से थप्पड़  खाने पड़े .मैं नहीं चाहती की चंडीगढ़ शहर  भी नशेडी और जुआरी लोगो की गिरफ्त में आये इसलिए मैं नशे के खिलाफ भी सक्रिय रहती हूँ –मेरी दबंगई हर बुरा  काम के अंत के लिए ही है चाहे इसकी कितनी हो आलोचना  क्यूँ  न हो .
अभी एक काम और बचा है जो बहुत ज़रूरी है जिसे हम जल्द करने वाले हैं  हम चंडीगढ़ में रेहड़ी फड़ी लगाने वालो की पहचान कर उनके वैध  लाईसेंस जारी करने वाले हैं ताकि उन्हें अपने अपने रोजगार करने के लिए कोई परेशानी न हो न उनसे कोई रेहड़ी लगाने पर घूस मांगे न ही कोई उनका शोषण कर पाए -वह अपना छोटा छोटा रोजगार निडरता से कर सकें . यह बहुत बड़ी राहत होगी उनके लिए जो पिछले लम्बे अरसे से इस प्रकार आजीविका कमा रहें हैं .


प्र० - आपका भविष्य में क्या करना चाहती है आपका अगली मंजिल क्या है ?


उतर – मैंने अपने लिए कोई भविष्य या सपना नहीं बुना समय जिस ओर ले जाये चल दूंगी पर जीवन भर लोगों से जुडी रहूंगी इसी प्रकार उनके सुख दुःख में साथ रहूंगी ,परिवार व् समाज के प्रति उतरदायी रहूंगी भविष्य में  देश हित में कभी भी कोई जिम्मेदारी मिलेगी उसे मन से पूरा करुँगी .शांतिमय स्थिर  जीवन जीने की ओर बढती रहूंगी –भजन गाना भी मुझे भाता है और शक्ति माँ में ध्यान लगाना भी . अंतत: देश सेवा व् देशवासियों में खुश रहूंगी -



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