गुरुवार, 14 जुलाई 2016

अतिक्रमण




















जी हाँ मानती  हूँ मैं
मेरे घर में
भगवान की  कमी  है
मैंने नहीं बनायीं
उसकी कोई जगह
घर के किसी कोने में
नहीं  रखी मूर्ती
नहीं जड़वाई  कोई तस्वीर
उसके किसी भी रूप की
न कोई धूप न अगरबत्ती
नहीं जलाती हूँ  सुबह शाम
सच में नहीं झुकती
सुबह शाम कोई गर्दन
 सुनिश्चित से किसी कोने में
न ही कोई जाप न भजन 
कुछ भी तो नहीं है शामिल
हम सब के नित्य कर्म में
क्या  ही करूँ
मुझे तो माना
 उस के वजूद पर ही शंका है
और कुछ यहाँ
खुद ही भगवान हुए जाते है
बाकियों को भगवान
समझाए नहीं गए हैं
मेरा क्या  है
मैं तो बागी  ठहरी
तेरे आडम्बर को
  मानती  नहीं हूँ
पर तेरी सत्ता को
नकारती भी नहीं हूँ
स्वाभाव -वश मुझे तो
  विद्रोह करना ही था
तुमसे भी
क्यूँ तुम भी मेरे और तुम्हारे  बीच
कुछ  वकील रखते हो
उनके माध्यम से दलील सुनते हो
'जानते तुम भी हो
कि मैं अक्सर
  अपने के भीतर के मौन से
तुमसे बतियाती रहीं हूँ
और रूठी भी हूँ कई बार
तुम्हारे  ख़ामोश बने रहने पर
सवाल भी किये हैं
तुम्हारे होने न होने पर
बार बार चर्चा और
 शंका  भी ज़रूर की है
पर नकारा नहीं है तुम्हे
आह दुनिया तुम्हे मेरे घर में
ढूंढ रही है कुछ कृत्रिम से
बने छोटे छोटे मूर्ती मंदिर नुमा
उपायों में
और तुम उन्हें यहाँ घर में
कहीं मिल नहीं रहे हो
मैं एक बार फिर से
 कटघरे में हूँ तुम्हारे कारण
और  मुझे
भरी सड़क पर सरे आम
घसीटा जा रहा है कि
मैं नास्तिक हूँ और
मेरी इस अदा के  कारण
 तुम  नाराज बहुत   हो
और घर के एक एक जी को
पीड़ा और कष्ट दे कर
तुम मेरा बदला ले रहे हो
मेरे नास्तिक होने का
तुम ही बताओ
क्या मैंने कभी कहा
कि तुम नहीं  हो
ओ भरे जहाँ के मालिक
एक फुट जगह के लिए
विधिवत विध्वंस अभियान
निरंतर चलाये हुए हो
अतिक्रमण हटाने को
वो भी
मेरे छोटे से घर में
बस भी करो

सुनीता धारीवाल जांगिड 



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