गुरुवार, 21 जुलाई 2016

वेश्या नहीं कोई उपमा नई लाओ

हे दया शंकरो
तुम औरत को
वेश्या से ज्यादा
और कह भी क्या सकते हो
इससे इतर उपमाएं 
तुमने अभी सृजित नहीं की हैं
थोड़े और रचनात्मक हो जाओ
नया कोई शब्द लाओ
आजकल सभी जानते है
दलालो की नज़र
औरत को वेश्या बनाने
और
वेश्या को पहचान करने में
रत होती है
तुम्हे भी जान जाओ
इन उपमाओ से
औरतो को अब डर नहीं लगता
बल्कि अब वे दलालो को
पहचानने लगी हैं
और जानती हैं कि तुम्हे
कि औरत से मात खाते ही
कब किस घड़ी किस स्तिथि में
तुम उन्हें वेश्या घोषित करोगे
अब वे रोती चिल्लाती नहीं हैं
तुम्हारी दुनिया में कदम रखने से पहले
उस ने सौ बार खुद को
वेश्या कह कर देखा है
और यह अनुभव कर उसने
तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ की है
तो हे दया शंकरो
कुछ तो नया खोजो
तुम्हारा ताकत से पाला तो अभी पड़ा है
और पड़ेगा घर भीतर भी
एक दिन जल्द ही
सुनीता धारीवाल
( वेश्या से भी गिरी हुई -इस उपमा का शब्द नहीं मिला इन्हें अभी तक )

सन्दर्भ -उत्तर  प्रदेश  के  विधायक दया शंकर  द्वारा  सुश्री मायावती के लिए प्रयुक्त की गयी अभद्र टिपण्णी पर मेरी त्वरित प्रक्रिया के  तहत  उपजी  यह  कविता

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