हे दया शंकरो
तुम औरत को
वेश्या से ज्यादा
और कह भी क्या सकते हो
इससे इतर उपमाएं
तुमने अभी सृजित नहीं की हैं
थोड़े और रचनात्मक हो जाओ
नया कोई शब्द लाओ
आजकल सभी जानते है
दलालो की नज़र
औरत को वेश्या बनाने
और
वेश्या को पहचान करने में
रत होती है
तुम्हे भी जान जाओ
इन उपमाओ से
औरतो को अब डर नहीं लगता
बल्कि अब वे दलालो को
पहचानने लगी हैं
और जानती हैं कि तुम्हे
कि औरत से मात खाते ही
कब किस घड़ी किस स्तिथि में
तुम उन्हें वेश्या घोषित करोगे
अब वे रोती चिल्लाती नहीं हैं
तुम्हारी दुनिया में कदम रखने से पहले
उस ने सौ बार खुद को
वेश्या कह कर देखा है
और यह अनुभव कर उसने
तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ की है
तो हे दया शंकरो
कुछ तो नया खोजो
तुम्हारा ताकत से पाला तो अभी पड़ा है
और पड़ेगा घर भीतर भी
एक दिन जल्द ही
तुम औरत को
वेश्या से ज्यादा
और कह भी क्या सकते हो
इससे इतर उपमाएं
तुमने अभी सृजित नहीं की हैं
थोड़े और रचनात्मक हो जाओ
नया कोई शब्द लाओ
आजकल सभी जानते है
दलालो की नज़र
औरत को वेश्या बनाने
और
वेश्या को पहचान करने में
रत होती है
तुम्हे भी जान जाओ
इन उपमाओ से
औरतो को अब डर नहीं लगता
बल्कि अब वे दलालो को
पहचानने लगी हैं
और जानती हैं कि तुम्हे
कि औरत से मात खाते ही
कब किस घड़ी किस स्तिथि में
तुम उन्हें वेश्या घोषित करोगे
अब वे रोती चिल्लाती नहीं हैं
तुम्हारी दुनिया में कदम रखने से पहले
उस ने सौ बार खुद को
वेश्या कह कर देखा है
और यह अनुभव कर उसने
तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ की है
तो हे दया शंकरो
कुछ तो नया खोजो
तुम्हारा ताकत से पाला तो अभी पड़ा है
और पड़ेगा घर भीतर भी
एक दिन जल्द ही
सुनीता धारीवाल
( वेश्या से भी गिरी हुई -इस उपमा का शब्द नहीं मिला इन्हें अभी तक )
सन्दर्भ -उत्तर प्रदेश के विधायक दया शंकर द्वारा सुश्री मायावती के लिए प्रयुक्त की गयी अभद्र टिपण्णी पर मेरी त्वरित प्रक्रिया के तहत उपजी यह कविता
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