रविवार, 10 जुलाई 2016

बचपन की बरसात और केंचुआ













एक बार बचपन में मैं जब बहुत छोटी थी (अच्छा बाकी सब बचपन में ही एडल्ट होते है झूटी कही की सुनीता -बकौल कपिल शर्मा )
हुआ यूँ कि -अक्सर बरसात में केंचुए घर की मिटटी की क्यारियों में से निकल घर के फर्श पर आ जाते थे और हम बड़े कौतुहल से उसे देखते रहते हम में से कोई बुद्धिजीवी भी होता था और अनुभवी भी ।सो उसने ज्ञान बांटा कि केंचुआ दोनों और से चलता है यानि उसकी दोनों ड्राईवर साइड है 
तब हम झाड़ू की तीली से उसे दोनों तरफ हिला कर देखते थे कि चलता है नहीं 
फिर ज्ञानी जी ने और टॉर्चरस ज्ञान दिया कि यदि इसके मुह पर नमक डाल तो वह मुह से सारी मिटटी उगल देता है और तड़प कर दिखाता है ।काश उस वक्त समझ होती कि तड़पना किसे कहते है चलो खैर घर से नमक चुरा कर हमने वो भी किया
झाड़ू की तीली पर उसे लटका कर यहाँ वहां भी ले जाया गया
मशरूम के नीचे उसका घर भी खोजा उसके मुँह से उगली गई मिटटी की आकृति की भी पहचान की ।मशरूम को सांप की छतरी कह कर संबोधित करते थे तब
एक ज्ञान और शेयर हुआ था उस वक्त के हम बाल ज्ञानी जनों के बीच कि चाइना में लोग इसी के नूडल्स खाते है ।
हमारी एक सदस्य की जिम्मेदारी थी इनका झुण्ड ढूँढने की हमने चींटियों के बिल में भी इन्हें खोजा ।माँ कसम बचपन से ही बड़ी खोजी थी मैं तो आज एह्सास हुआ
तब हमारी मम्मी ने हमे मेनका गांधी के नाम से डराया नहीं "जैसे मैं बच्चों को डराती हूँ कि तुम्हारी ऑनलाइन कंप्लेंट कर दूंगी किसी जीव के साथ कुछ किया तो "
बेचारा केंचुआ बड़े हो कर समझ में आया कितना ज़रूरी जीव है यह हमारी खेती के लिए


सुनीता धारीवाल 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें