शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

मैं मधु मक्खी मीठी और डंकिनी













मैं मधु मक्खी मीठी और डंकिनी
सच में
कितने पारखी हो तुम
मुझे पसंद भी आया
तुम्हारा दिया गया विशेषण
मधु मक्खी
वाह मेरे लिए
एक दम नया है
और खूबसूरत  भी
शहद और डंक
दोनों ही देख लिए तुमने
पलक झपकते ही
सच में  कितना शहद
और जहरीला डंक
साथ रखती हूँ हर समय
एक बार फिर से देखो
अब मेरी नज़र से
यह शहद जुटाने
मैं रोज निकलती हूँ
हर जंगल जंगल
बाग़ बाग़
झाड़ी झाड़ी
वन उपवन
और कभी कभी
चीनी की पेटियों में भी
घुस जाती हूँ
अपने साँस नली में
भर लाती हूँ पराग कण
और जान लगा कर
लार में परिवर्तित कर
एक छत्ते में भरती जाती हूँ
और शहद बनाती हूँ
बताओ क्या कभी
मैं खुद अपना शहद
खा पाती हूँ
तुम्हारे जैसे सभ्य मानव
छत्ते की ओर
ऊँगली कर डराते हैं
और तोड़ने के लिए धमकाते हैं
तो मैं डंक लिए आती हूँ
तब मैं  अपने  श्रम का ही  शहद बचाती हूँ
ताकि किसी की दवा बन
जीवन दे दूँ
किसी की जबान में घुल
मिठास दे दूँ
अन्य  जीवो को भी
जीवन दे सकूँ
इस शहद कमाने की दौड़ में
मेरी उम्र चली जाती है
एक रोज  शहद लबालब
जब होता है
तो तुम्हारे जैसा ही
कोई हाथ में मशाल लिए आता है
चहुँ  ओर शोर मचा
मेरे डंको से डराता है
तो डरे हुए सब लोग
तुम्हारी उठाई मशाल में
तेल डाल कर आग जलाते है
और मेरे छत्ते की ओर
 मुंह ढके  चले आते हैं
मेरे श्रम को आग लगाते है
मेरे पंखो को जलाते हैं
और उत्सव मनाते
शहद घर ले जाते है
तब  मैं अपने जख्मी  पंख
ठीक होने का
इंतजार करती हूँ
 फिर से शहद
बनाने लग जाती  हूँ
यह जानते हुए कि
यह तो आदत है
न तो तुम्हारी छूटेगी
न मेरी
न तुम आग लगाने से टलोगे
न मैं शहद बनाने से
ठहरी जो
मधुमक्खी
डंकिनी भी और मीठी भी मैं

सुनीता धारीवाल जांगिड



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें