बुधवार, 13 जुलाई 2016

लुक्का छिप्पी खेल





















नहीं  जानते  तुम
ये जो  मैं
इतनी  बाते  करती  हूँ  न
इनकी  आवाज से  मैं
अपने  सन्नाटो  को  डराती  हूँ
गा गा  कर  चहचहा कर
अपनी चीखों को दबाती  हूँ
तुमसे  आंसू  बाँट कर
आँखों  का  ध्यान बंटाती हूँ
तुम्हारे लाइक डिसलाइक
के खेल  मैं  भी कुछ  पल
शामिल हो कर
अपनी  नियति से
नज़र चुरा कर
तुम संग लुका छिप्पी का
बेमेल   खेल  लेती  हूँ
और  दुःख मुझे धप्पा  कर
फिर जोर  से  पीठ  पर
दोनों हाथ  मार  चौंका देता है
और मैं पकड़ी जाती  हूँ
नियति के हाथो

सुनीता धारीवाल



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