रविवार, 10 जुलाई 2016

जन्मदिन



हाय नी अम्मड़ीए
काहनु जम्मया सी
मैं अक्सर माँ को
कहते सुनती थी
जब भी वह उठती बैठती
थकती या कराहती थी
मैं अक्सर पूछती
ऐसा क्यूँ कहती हो
हंस देती और कहती
ये तो जुमला है
मुह चढ़ा हुआ है
अगर कभी मैं भी कहती
हाय नी अम्मड़ीऐ क्यूँ जम्मया सी
तो बहुत डाँटती
एक सांस में गिनवा देती
सारे मन्दिर गुरूद्वारे
माता मसानी दरगाहें और
पीर फ़कीर
जहाँ पर माथा नाक रगड़ कर
उसने मुझे माँगा था
मुद्दत बाद
उसने मुझे पाया था
मेरे पहले दर्शन से
उसका रोम रोम
रिझाया था
उसे पहली बार माँ
मैंने ही तो बनाया था
और मेरा भी जुमला सुन
वह बहुत गुस्सा हो जाती
और मेरा मुह बंद कर देती थी
फिर समय ने चक्कर खाया
एक दिन उसी के मुँह से निकला
हाय नी धीये मैं तैनू क्यों जम्मया
जब उसने मुझे
कटघरे में खड़े पाया
कि संबकी उँगलियाँ
उठी थी मेरी तरफ थी
और उसकी पांचो उंगलिया
उठी जाती थी
उन सब की तरफ
और उसकी हथेली थी
मेरे सर पर
वो जिरह में मुझे जीत लायी थी
और घर आते ही
फुट फूट कर रोई थी
मुझसे भी ज्यादा
एक बार उसने खुद ही
सच में कहा था
हाय नी धीये मैं क्यों जम्मया सी तैनू
बाँझ ही रह लैंदी
और मैं चुपचाप खडी
उसके जुमले को बदलता देख
सिहर सी गयी थी
सुनीता धारीवाल



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