वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
सोमवार, 18 जुलाई 2016
गुरु बन गयी हूँ
न पूछे मिला है न ढूंढें मिला है
गुरु बन गयी हूँ तुजुर्बा मिला है ।
सच्चा और पूरा गुरु किसी किस्मत वाले को ही मिलता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें