रविवार, 24 जुलाई 2016

नारी कलम कायिवत्रि गोष्ठी का आयोजन संपन्न


















वीमेन  टीवी  इन्डिया वेब  पोर्टल की ओर  से  "नारी कलम" साहित्यिक मंच की दूसरी काव्य गोष्ठी का आयोजन दिनांक 23 जुलाई 2016 को सेक्टर चार पंचकूला में  किया  गया , इस कार्यक्रम में  कवित्रियां अपने कीमती समय से कुछ समय चुरा कर उत्साह से इस कार्यक्रम को  सफल बनाने पहँची। मंच संचालन का दायित्व शिखा श्याम राणा जी ने बाखूबी निभाया । काव्य गोष्ठी का आगाज़ नीलम त्रिखा जी ने अपनी सुरीली आवाज़ में कुछ इस तरह मौजूद कवित्रियों को मंत्रमुग्घ कर किया," मैं सबा कुछ छोड़ कर तेरी पनाह जो आ गई प्यारे,मुझे अबला समझने की कभी तुम भूल न करना।" कंचन जी ने अपनी कलम के माध्यम से वृक्षों की सुंदरता एवं उदारता के विषय में बताया वो कहती हैं," वृक्ष से सुंदर भला और क्या होगा,धरती के सीने पर मूक दर्शक खड़े ये वृक्ष, न किसी से शिकवा न शिकायत, बस निरंतर देने की प्रक्रिया में खड़े ।  कवियत्री सुनीता धारीवाल जी बेटीयों  को सचेत करने के उद्देश्य से कुछ यूं अपनी बात कहती दिखी," सपनों से सगाई ,मत करना बेटी, ये रिश्ता टूटेगा तो टूट जाओगी तुम भी ।" उन की क्षणिकाओं की सभी ने भूरी भूरी प्रसंन्ना की । सामाजिक एवं राजनैतिक कार्य से जुड़ी सीमा भारद्वाज जी सभी में प्रेरणा का संचार करते हुये अपनी बात कुछ यूं रखती हैं," जो बोलते हैं उन्हें बोलने दो,लक्ष्य जो सोचा है उसे ही पकड़े रहना, मुश्किलें तो हमेशा ही आती हैं, मंजिलें उन्हें ही मिल पाती हैं, जो हर घड़ी करते हैं सामना ।" डॉ शालिनी शर्मा जी एक दिन सिर्फ अपने लिए जीने की इच्छा व्यक्त करते हुये कह उठी," व्यतीत करना चाहती हूँ एक दिन खुद के लिए , जिसमें न जिम्मेदारियां का दायित्व हो, न कर्तव्यों का परायण।" अलग अलग काव्य रसों से सजी इस महफिल मौजूद में कंचन भल्ला जी ने अपनी मधुर  आवाज़ में एक गज़ल पेश की ।तो वही दूसरी ओर डाॅ उमा शर्मा  जी अपने देश के जन्नत बनने की ख्वाहिश रखती हुई कह उठती हैं," जन्नत बन जाये अपना वतन, मिलजुल कर करे कुछ ऐसा यत्न, कालेधन  का व्यापार न हो, रिश्वत का गर्म बाजार  न हो,  नीलाम न हो अस्मत का चलन ।" इस के बाद जागृति, डाॅ प्रतिभा  वर्मा  , शिवानी  जांगङा ने अपनी अपनी रचनाओं से समा बांध दिया ।इस साहित्यिक सफर को शिखा श्याम राणा ने औरतो  के मौन रह कर सब सहन करने के बर्ताव  पर रोष जताया और कुछ इस तरह अंजाम तक पहुंचाया।वो कहती हैं," हैरान हूँ मै, कि आखिर क्यूं,  सदियों से  मौन हैं , औरते?  नारी और धरती ने, जाने क्यूं , नियति बना रखी है अपनी, गहरे से गहरा दर्द सहना, और चुप रहना ।इस के बाद  सुनीता धारीवाल जी ने सभी कवित्रियों  का औपचारिक तौर पर सभी का धन्यवाद किया और भविष्य मे दोगुने उत्साह के साथ ऐसे कार्यक्रम  करने का नई प्रतिभाओं को सामने लाने का प्रण दोहराया ।
रिपोर्ट  लेखन -शिखा श्याम राणा 

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