मंगलवार, 19 जुलाई 2016

जिक्र सुनो उनताली का -स्मृतियां लोक कवि मान सिंह खनौरी वाले

सज्जनों अनेक बार मुझे कहा जाता है कि मैं आज़ादी से पहले की पुराणी बात सुनाऊ -लोग  मुझसे पूछते  हैं  अंग्रेजी  सरकार कैसी थी ?तो  मैं कहता हूँ कि सरकार के पास तो हमे कौन जाने देता था परन्तु मैं उस वक्त के सामजिक लोक जीवन के बारे में आपको इस कविता भजन के माध्यम से बताता हूँ तो सुणो-

पैंतीस छतीस सैंतीस आठतीस जिक्र सुनो उनताली का
आँखे  देखया हाल बताऊँ उनीस सौ चाली का

सन उनीस सौ चाली मेंह -अनपढ़ लोग हुआ करते
बिना दवाई कट जाते कुछ ऐसे रोग हुआ करते
मृत्यु के भी एक साल तक घर में शोग हुआ करते
न रिश्तेदारी टूटे थी इसे पक्के संजोग हुआ करते
सौ सौ पसु चरा कै भी मन खुसी रहवे था पाली का
बैलो से खेती करते भगवान रूप था हाली का
ब्याह सादी में एक दुसरे की खूब इमदाद करया करते
सगे सम्बन्धी मित्र प्यारे सब को याद करया करते

एक दुसरे का कर कै -अपणा उसके बाद करया करते
अल्लाह इश्वर खुदा वाहेगुरु सबसे फ़रियाद करया करते
मिल कै जश्न मनाया करते होली ईद दिवाली का

उपजाऊ धरती थोड़ी थी पैदा हों थे कम दाणे
मंडी मैं कणक बिक्या करती मण एक रूपया छ आने
कीकर जांडी झाड फूस पसुआं नै पड़ते खाने
नहीं टी वी फोन रेडियो थे सब साँगी तै सुनते गाणे
आठ कोस तै घोड़ा आता सब्जी ले कै माली का
होटल मैं भी दो आने कुल मोल पड़े था थाली का

गोरयां की सरकार के सख्त रूल सरकारी थे
बोलण लिखने पर पाबंदी -जुर्माने बड़े भारी थे
गैर गुलामी की कड़ियाँ मैं बंधे हुए नर नारी थे
आम लोग से मुलजिम बरगे -जज बरगे पटवारी थे
अंग्रेज रास्ता बंद राखें थे विद्या की प्रणाली का
फायदा चोर उठाते है सदा रात अँधेरी काली का
मजदूर चव्वनी दिहाड़ी खातर दर दर करया करै था खोज
राज मिस्त्री के आठ आने -देसी घी और मीठा रोज
किसान वयापारी छोटे छोटे सर पै ढोया करते बोझ
रंगरूट रूपये बारां मैं -खतरे में थी हिन्द की फ़ौज
अंग्रेजा के पिट्ठू थे जो करते काम दलाली का
अब तो पहरा हम ने है देना भारत की हरियाली का
मिल के सिरे चढ़ाया करते किसी भी काम अधूरे को
पक्का मीठा कह्या करै थे घर मैं चीनी बूरे को
किणकी कह कै खाया करते कटे चौल के चूरे को
पाट्या कपडा मिल्या करे था माछर दानी जाली की
बिना सूट न मन खिले था ब्याह मैं जीजा साली का
देस आजाद करवावण खातर बोहत लोग बर्बाद हुए
काले पाणी भेज दिए कोई फांसी तोड़े कैद हुए
किसी के बच्चे मार दिए माँ बाप बिना औलाद हुए
उजड़ गए घर बार किसी के बड़ी मुसकल आजाद हुए
भ्रस्ताचारियां नै रंग बदल दिया नीति गांधी वाली का
पैसे खातर पड़े जेल मैं गम न गुस्सा गाली का
कांसी पीतल सोना सिक्का घर घर मैं था चांदी का
हम सब नै डर लाग्या करता गैर हुकूमत आंधी  का
सन उनीस सौ ब्याली मैं उपदेस सुन्या जब गांधी का
मान सिंह हमने मुहँ देख्या अंग्रेज हुकूमत जांदी का
जाते जाते खेल गए थे खूनी खेल संताली का
कश्मीर समस्या मैं घी दे गये आग सुलगने वाली का





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