कुछ देर और बैठो
मेरे हमसफर
इसी कंकट शाख पर
मत करो कोई वादा
अगले जन्म में
फिर से मिलने का
क्या करेंगे
फिर से इसी जन्म के
बाकी हिसाब होंगे
ना फरमानियों की धूल से भरे
यही पुराने ख़तो -किताब होंगे
न तुम हम पे मेहरबां होंगे
न हम तुम पे निगेहबां होंगे
मुगालता है गर कि कोई
गुलशन मिलेगा अगले जन्म
कि चलो मरते हैं
देखना वहां भी
बियाबाँ से कोई
सूखे जंगल मिलेंगे
बोई हैं खामोशियाँ
तो आगे भी सन्नाटे मिलेंगे
बेहतर है यहीं बैठो
उजड़े चमन की कंकट शाख पर
कि गिद्द्दों की नज़र
रिश्तो के कंकाल पर है
हम दोनों की
सूख चुकी - आँखों से
बहते मलाल पर हैं
अभी कुछ देर और बैठो
इसी कंकट शाख पर
सुनीता धारीवाल
गुलशन मिलेगा अगले जन्म कि चलो मरते हैं
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