सोमवार, 4 जुलाई 2016

अभी कुछ देर और बैठो












कुछ  देर  और  बैठो 
मेरे हमसफर 
इसी कंकट शाख  पर 
मत करो  कोई   वादा   
अगले  जन्म में 
 फिर  से  मिलने का  
क्या  करेंगे  
फिर  से  इसी जन्म के  
बाकी  हिसाब  होंगे 
ना फरमानियों  की धूल से   भरे 
यही पुराने ख़तो -किताब होंगे 
न  तुम  हम  पे  मेहरबां होंगे 
न  हम  तुम  पे  निगेहबां होंगे 
मुगालता  है  गर कि कोई  
गुलशन मिलेगा  अगले जन्म 
 कि चलो  मरते  हैं 
देखना  वहां  भी
  बियाबाँ से कोई 
सूखे  जंगल  मिलेंगे 
बोई  हैं खामोशियाँ 
तो आगे भी सन्नाटे मिलेंगे 
बेहतर  है  यहीं  बैठो 
उजड़े  चमन की कंकट शाख  पर 
कि गिद्द्दों की नज़र 
रिश्तो  के कंकाल पर है
हम दोनों  की  
सूख  चुकी  - आँखों  से 
बहते  मलाल पर  हैं 
अभी कुछ  देर  और  बैठो  
इसी कंकट शाख पर 

सुनीता धारीवाल 







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