सोमवार, 4 जुलाई 2016

कामवाली





आज मैंने अपने घर से एक कामवाली की छुट्टी कर दी ।जाहिर है अब ज्यादा जरुरत मुझे नहीं थी ।परंतु उसे मेरी और इस काम की जरुरत थी इसलिए दो तीन महीने से लटका रही थी उसकी छूट्टी करना ।हर रोज उसके लिए घर के छोटे मोटे काम निकाल कर रखती थी मैं -जहाँ मुझे अनावश्यक सुख मिल रहा था वहां बच्चों को उसके अस्वच्छ रहते हुए काम करना कभी नहीं सुहा रहा था और पतिदेव को सारा दिन नौकरो का जमावड़ा पसंद नहीं था (जायज है उनका ऐसा सोचना भी )
मुझ पर थोड़ी कड़ाई बरती गयी तो आज उसे अलविदा कह ही दिया ।वह पसीने से भीगी हुई बुजुर्ग औरत आई तो सच में मुझे भी बांस आ रही थी पानी पी कर उसने थोडा थोडा झाड़ पोंछ
की और मैंने हिम्मत सी कर उसे कल से न आने के लिए कह दिया -पर मैंने नज़र नहीं मिलायी। मैंने महसूस किया कि उसके बाद उसके चेहरे पर चिंताएं उभर आई और हाथ जैसे कई मन भारी हो गए थे उसके झाड़ते झाड़ते वह एक दम मूक हो गयी
और फिर जल्द ही बाकी काम अनमने से किया और चली गयी
जो बोझ वो अपने दिमाग में रखे चुपचाप चिंतित जा रही थी जैसे ही मैंने जाते हुए उसे देखा उसकी नज़र मुझ से मिल गयी लगा उसका सारा बोझ मेरे दिल पर आ गिरा और मेरी सांस अटक गयी कुछ कहते नहीं बना
अब तक वजन महसूस हो रहा है उसके बुढ़ापे का नालायक नशेड़ी बेटे का बहु के बच्चों का उसकी मृत बेटी के बच्चों की रोटी का जो वह रोज कुछ न कुछ खाने का बचा डिब्बों में भर ले जाती थी और हर महीने मेरे दिए पैसों को जोड़ कर घर में बिजली का मीटर का कटा कनेक्शन दोबारा जुड़वाना चाहती थी ताकि पंखे नीचे सो सके इस सावन की चिपचिपी गर्मी से कुछ राहत पा सके ‪#‎उसके‬ ओझल होते ही मैंने तुरंत ac का बटन बंद किया और बाहर बेंच पर कुछ् देर बैठी की शायद बाहर की हवा में कुछ सांस आ सके

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