शुक्रवार, 24 मार्च 2017

कहाँ पता था

कहाँ पता था
यूँ सजा लुंगी तुम्हे
माथे पे अपने
बिंदी की तरह

कहाँ पता था
यूँ  सजा लुंगी तुम्हे
आँखों में अपनी
काजल की तरह

मुझे कहाँ पता था
महकोगे तुम ही
मेरी हर सांस में
मदमाते इत्र से

मुझे कहाँ पता था
तेरे ख्याल से ही
दहकेगा  बदन मेरा
दावानल की तरह

मुझे कहाँ पता था
तुझे  मिलने से
चहक उठेगा मन मेरा
कलरव की तरह

मुझे कहाँ पता था
यूँ प्यार भी होगा
इकतरफा भी होगा
दीवानो की तरह

मुझे कहाँ पता था
तुम पास भी होंगे
तुम साथ भी होंगे
पर बेगानो की तरह

मुझे कहाँ पता था
बिरहन सी रहूंगी
बहारो में भी
पतझड़ की तरह

सच में नहीं पता था
मुझे तुम यूँ मिलोगे
रेगिस्तान में जैसे
झूठे जल की तरह

जितना निकट जाउंगी
उतना दूर मिलोगे
किसी छल की तरह

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