शनिवार, 1 अप्रैल 2017

मैं चाहती भी नहीं
ये तिल्लिसम कोई तोड़ दे
कि मैं तुम्हारी हूँ
इसका कोई भ्र्म तोड़ दे
नीरस ही है और था
यह जीवन तेरे बिना
कोई पा जाऊं उपाय मैं
जो तुम्हे मुझ से जोड़ दे
अपना ले बस वो मुझे
तमाम दुनिया मुझे छोड़ दे
इश्क़ ज्यादा है किसका
आगे निकलने की होड़ दे
सिर्फ एक बार ही हो जाये
वो बस मेरा यकीनन
फिर चाहे दिल मेरा  तोड़ दे
वो एक बार कुछ तो कहे मुझ से
हे राम तू उसकी चुप्पी तोड़ दे
जुर्म भी है किया मैंने ही गुनाह मेरा है
मेरे कारावास मे उसे कैदी छोड़ दे

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