बुधवार, 26 अप्रैल 2017

समझ

न आंसू समझता है
न खामोशी समझता है
थक गए  मेरे शब्दो की
न बेहोशी समझता है ।
मेरी सपनीली आँखों की 
न मदहोशी समझता है
समझता है कि मैं समझती हूं
कि वो कुछ भी नही समझता है

कहाँ तलाश करूँ
कोई मुझको मिल जाये
जो बस मेरा हो पाए
जब रोना चाहूं मैं
तो कंधा मिल जाये
हो कर भी नही है जो
उसका क्या करूँगी मैं
जब आंसू खुद अपने
हाथों से पोछने हो जाएं

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