बुधवार, 26 अप्रैल 2017

मुझे क्यों जाना है

जिसे जरूरत का मेरी
कभी कोई अंदाजा नही

उसी से दोस्ती करने का
अब मेरा भी  इरादा नही

रूह की तरंगे  नही  समझा
ज़ुबान क्या खाक समझेगा

जो आह को नही समझा
आंसू क्या खाक समझेगा

जो फुर्सत में ही सुनेगा  मेरी
उसे मैंने अब  क्यूं ही कहना है

अकेली कोमल नदी हूँ मैं
मुझे चट्टानो में बहना है

कहीं पर चोट खाना है
कहीं पर मोड़ खाना है

समुंदर तुम नही शायद
जहां मुझ को मिल जाना है

जब  जहां हवाऐं ले जाएं
उसी दिशा मुझ को बहना है

मेरी हर उम्मीद पर उसने
करना हर रोज बहाना है

गली है  गर संकरी तेरी
मुझे क्यों उस मे जाना है

मिलो जो गैर की तरह
तो क्यूं मिलना मिलाना है

शेष फिर

सुनीता

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