खुले पन्नों को कौन पढता है
कौन सहेजता है जनाब
कुछ हाथ पोंछ लेते है
कुछ धूल झाड़ लेते है
कुछ मुँह ढांप लेते है
कुछ फेंक देते हैं
मेरा जीवन रहा
खुली किताब के बिखरे पन्ने
कोई जैसे चाहे
शब्दों की मेरे व्याख्या कर ले
मंचासीन है वो
जो नकल हमारी करते रहे
घर बैठे हुनरमंदों को
दे आवाज कौन बुलाता है जनाब
सुनीता धारीवाल
हम तो अपनी किताब बन्द रखते हैं सुनीता जी ।
जवाब देंहटाएंएक भी पन्ना फट कर उड़ गया तो अमूल्य थाती ही चली गई ।
किताबें सीने से लगा कर रखने की होती हैं सुनीता जी