वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
शनिवार, 5 नवंबर 2016
कुछ दीयों की माटी हो गयी सरहद पर माटी में मेरी दिया आँखों का तेल से दिल में जला है मेरे यह दिवाली सरहद के दियो के नाम
सरहद पर दीयों की जो माटी होती है उसी माटी से फिर दीये बन जाते हैं और दीये हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेते । दीवाली पर शहीदों को आपने जो प्रणाम भेजा स्तुत्य है सुनीता जी
सरहद पर दीयों की जो माटी होती है उसी माटी से फिर दीये बन जाते हैं और दीये हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेते ।
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