रविवार, 26 जून 2016

रास्ते

रास्ते


चल तो दूं मैं उन्ही रास्तो पे कहीं जाते तो है मगर पहुँचते ही नहीं तुम जो संग चलो तो चलूँ फिर वहीँ लाएं झोले में भर यादों की एक डली ज़िन्दगी कहते हैं जिसे वो वही थी मिली थे बंद सब रास्ते और तुम थी मिली कैसे क्या हो गया कैसे मैं खो गया था तिल्लिसम नया दिल में है खलबली जानता तो हूँ मगर मानता मैं नहीं तू नहीं है मेरी हासिल ए महजबीं याद है वो घड़ी जब थी तुम यूँ खड़ी जैसे छावं कोई तपती राह पे पड़ी और बस एक बार आओ फिर से चले रास्तो पे उन्ही जायेंगे जो मगर पहुंचेंगे नहीं आ भी जाओ प्रिय पलटो तो फिर सही अब न लौटेंगे हम रास्तों से उन्ही जायेंगे जो ज़रूर पहुंचेंगे नहीं

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