बुधवार, 1 जून 2016

फूस का आदमी


हे औरत
तुम्हारे पेट की आग
कैसे बुझती है
से ज्यादा चिंतित है
ज़माना
कि तुम्हारी तन की आग
कैसे बुझती है
बुझती भी है
या सुलगती रहती है
अकेली होना
सबसे बड़ा  गुनाह है तुम्हारा
और उस से बड़ा गुनाह है
उस आग को भस्म कर रखना
जो तुम्हे तो नहीं
जमाने को  खूब जलाती है
तभी तुम
भस्म कर देती हो
कितने भस्मासुर
अपने नाट से
और
तभी तो
आहत हो कर
रचती हो शब्द
कि आदमी तो चाहे
फूंस का हो
होना चाहिए


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