शनिवार, 25 जून 2016

सभी तो काणे हैं



सभी तो काणे हैं
कोई अपनी नजर में
कोई किसी की नज़र में
कुछ कर दिए जाते है
कुछ खुद भी हुए जाते है 
कुछ बस यूँ ही हो जाते है
यूँ भी स्थापित होती है एक सत्ता
एक इंसान की दुसरे इंसान पर
और आँखे सलामत होते हुए भी
वह आँख नहीं मिलाता है
न ही आँख दिखाता है
दरअसल यह खेल नहीं
घिनौना युद्ध है युक्ति का युक्ति से
और हार मनुष्य जाता है
सुनीता धारीवाल

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