बुधवार, 8 जून 2016

सहज विश्वास हैं ठगी की खुराक

हम सब जीवन में कभी न कभी ठगी का शिकार होते हैं चाहे कितने भी ऊँचे ओहदे पर हों या चाहे कितने भी उच्च शिक्षित या प्रभावशाली या ताकतवर क्यूँ  न हों . ठगी का सामजिक चलत भाषा में भाव है की कोई हमे मूर्ख बना गया और कोई सार्वजनिक रूप से मूर्ख कहलाना नहीं चाहता इसलिए वह सामाजिक उपहास के भय  से  ऐसे अनेक ठगी के अनुभव छुपा जाता है और यही सामजिक सोच  ठगों की ताकत है जबकि किसी के साथ ठगी हो जाना उसकी मुर्खता नहीं हैं अपितु उसका सहज से  मानव गुण के कारण उसका दुरूपयोग हो जाना है जैसे  -सहज रूप से किसी अन्य पर विश्वास करने की प्रवृति मानव जन्म से साथ लाता है जब वह अपनी माँ पर पूरा विश्वास कर बड़ा होता जाता है ,सहज विश्वास करना मानवीय गुण है और समाज में इस व्यवहार को सराहना मिलती है .इस विशवास करने के गुण के कारण इंसान को  उच्च मानवीय मूल्य से युक्त सामजिक व्यक्ति के रूप म देखा जाता है .किसी -किसी व्यक्ति में यह सहज भाव का अभाव होता है वह कभी किसी पर विश्वास नहीं कर पाता और हर दम शंकित रहने के उसके व्यवहार के कारण उसे समाज में उतनी सहज मान्यता नहीं मिलती जितनी सहज विश्वासी को मिलती है .यह क्रिया की प्रतिक्रिया है ऐसे इंसान का  लोग सहजता लोगों में विश्वास करते है बिना कोई प्रशन चिन्ह लगाये ऐसे सहृदयी व्यक्ति में   विश्वास करने वालो की संख्या भी बहुत होती है ..समाज चूँकि हर प्रकार के गुणों अवगुणों सकारात्मक व् नकारात्मक या दैवीय या पिशाचिय प्रवृति  वाले व्यक्तियों का समूह है ऐसे में संभव है की दानवी और पिशाचिय  प्रवृति  के लोग भी होंगे और इन  लोगों ने भी इसी समाज में अपना पेट पालना है और सांसारिक सुखों का उपभोग भी करना है -ऐसे कुछ लोग  समाज की समानांतर धारा में ही अपनी ठगी की दूकान चलते है ठीक उसी प्रकार जैसे परजीवी दुसरे  भरपूरे जीव पर युक्ति लगा कर  सेंध लगा कर घुसपैठ करते हैं वैसे ही ये ठग कहलाने वाले परजीवी भी  इंसानों के गिर्द मंडराते हैं और सहज प्रवृति मनुष्य का आंकलन कर उसकी व्यक्तिगत आर्थिक या सामाजिक सत्ता  पर जा चिपकते हैं .
लगभग सभी का जीवन में छोटी या बड़ी ठगी का सामना करना पड़ता है ठगी मतलब आपके गाढे  परिश्रम की कमाई का हिस्सा उस इंसान  द्वारा आसानी से ले उड़ना  जिस पर आप गहन विश्वास करने लगे हों .ऐसा नहीं है की ठगों को कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता वे कम समय में ज्यादा हासिल करने वाला कलात्मक परिश्रम करते हैं और किसी को भनक नहीं लगती .
सहज प्रवृति के बाद लालच या जीवन में आसानी की कल्पना भी इंसान की मनोवैज्ञानिक अवस्था है जिस की परिधि में आ कर इंसान ठगों का आसान शिकार हो जाता है - शातिर  ठग कोई वैधानिक सबूत नहीं छोड़ते या फिर चतुराई से सभी वैधानिक सबूतों को  इस प्रकार व्यवस्थित करते है की शिकायत करने वाला  ही स्वयं ही उलझ जाए .और अपने पैर पीछे हटा ले .ठगी  का आज  व्यवस्थित  बाज़ार है और लोग समूह में ठगते हैं सूचना और  अभिनय से लैस यह  ठग आसान धन के आदि हो चुके होते हैं हालाँकि देर सबेर यह अपनी किसी चूक के कारण पकडे जाते है पर फिर उसी काम पर लौट आते हैं .
आज विकसित समाज में महिलाये आज हर क्षेत्र में हाथ आजमा रही हैं  और धन अर्जित कर रहीं हैं परन्तु पर अर्थ की सही लाभदायक व्यवस्था करने की महारत हासिल करने में अभी वक्त लगेगा क्यूंकि उनकी परवरिश में कहीं भी धन की सही संभाल व् निवेश शामिल नहीं हैं यह सब वह अनुभव कर के सीख रहीं हैं नए चलन में ठगी का शिकार सबसे ज्यादा महिलाएं हैं ,स्त्री की भावुक प्रवृति ,सहज विश्वास. मानसिक रूप से पर निर्भरता जीवन में आसानी की अभिलाषा और धन अर्जन /प्राप्ति  की स्वतंत्रता व् निवेश की अज्ञानता ही स्त्रियों  ठगों  का आसान शिकार बनाती हैं .स्त्रियाँ न लेवल आर्थिक रूप से ठगी जाती है वे मानसिक व् शारीरिक रूप से भी ठगी जा रहीं हैं ठग स्त्रियों का डबल दोहन कर लेते हैं जबकि पुरषों को ठगने पर आर्थिक ठगी होती है .जिस ठग को या ठग समूह ने  स्त्रियों से ठगी का स्वाद चख लिया है वह बार बार स्त्रियों को ही शिकार बनाते हैं ..धन की ठगी को अमूमन पुरुष   हंस कर नजरंदाज कर देते हैं और स्त्रियाँ भी नज़र अंदाज करती हैं अगर मामला धन की ठगी से भी आगे निकल जाए तो औरत को खुद को  संभालना दुष्कर हो जाता है .
अगर ठगी और धोखा धडी पर गहरा खोजे तो यह कई प्रकार की होती है -धन सम्पति में ठगी ,रिश्तों में ठगी ,क्रेडिट देने में ठगी ,किसी के मूल सृजन कार्य की ठगी ,अमानत में खयानत वाली ठगी और भी अन्य प्रकार की ठगी खोजे तो फेरहिस्त लम्बी होती जाएगी .
समाज में सक्रियता के कारण आये दिन कुछ न  कुछ मामले सुनने को मिलते रहें हैं पर जब खुद भी ताज़ातरीन सो काल्ड कारपोरेट ठगी का शिकार हुई तो सोचा कि क्यूँ न आपसे ठगी के अनुभव ही बाँट लिए जाएँ ताकि आपको भी कुछ भान हो जाये की ठगी की सम्भावना कहाँ कहाँ जन्म ले सकती हैं और शायद आप भी किसी शातिर को समय रहते पहचान जाएँ .आपके पास भी ऐसे  अनुभव ज़रूर होंगे जब आप भी किसी ठग का शिकार हुए होंगे तो आप भी लिख भेजिए -ताकि हम इस ठगी पुराण में आपका अनुभव भी शामिल कर ले -शर्मायें नहीं ठगी से आप बेवकूफ नहीं कहलाये जायेंगे बल्कि हमारी सहानुभूति आप के साथ होगी मिल  कर गम बाँट लेंगे -आप नही लिख पायें तो कृपया सुना ही दीजिये रिकॉर्ड कर के भेज दीजिये हम लिख देंगे .

आईये आप से किस्सा शेयर करती हूँ हलके अंदाज में ताकि आप हंस भी ले और समझ भी लें -क्यूंकि अगर आप बेवकूफ कहेंगे भी तो क्या सच में बेवकूफ थोड़े न मान लुंगी खुद को
अगली पोस्ट का इन्जार करें -अभी लिख रही हूँ


सुनीता धारीवाल



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें