ऐ सुनीता
कानाबाती कानाबाती तक तो ठीक है
अगर किसी के कान में कुर्र रर कर दिया न
तो देखना एक झापड़ लगेगा तेरे ही कान पे
फिर कानाबाती भी न हो पाएगी
संभल के लिखना
किसी के कानो को बुरा न लगे सुन कर
दिखा ज़रा क्या क्या लिखा तूने
----मेरी माँ----
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
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