शुक्रवार, 24 जून 2016

ऐ तन्हाई



ऐ तन्हाई
तुमसे कब अघाई मैं
तुम ही तो जो
मिलने चली आती हो
हर रोज सबसे नजर बचा के
और काँधे चढ़ जाती हो
कि पुचकारू तुम्हे
और बाते करूँ तुमसे
पर मैं मौन
बस देखती हूँ तुम्हे
आते जाते
और कुछ कह नहीं पाती
बस आदत हो जाती है मुझे
उन सब की
जो खुद ब खुद चले आते है
मुझसे मिलने
और तुम तो भला रोज़ आती हो
तुमसे भला क्यूँ अघाऊंगी मैं

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