बुधवार, 22 जून 2016

बूंदे

हवा ने धकेला बूंदों को 
और वे चली आई
मेरे घर की दहलीज तक 
ताकि कुछ पल 
मैं भी भिगो पाऊं 
अपने पाँव
उसकी सरल सी ठंडक से
और मैं अब भीग रही हूँ
घर बैठे बैठे

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