हवा ने धकेला बूंदों को
और वे चली आई
मेरे घर की दहलीज तक
ताकि कुछ पल
मैं भी भिगो पाऊं
अपने पाँव
उसकी सरल सी ठंडक से
और मैं अब भीग रही हूँ
घर बैठे बैठे
और वे चली आई
मेरे घर की दहलीज तक
ताकि कुछ पल
मैं भी भिगो पाऊं
अपने पाँव
उसकी सरल सी ठंडक से
और मैं अब भीग रही हूँ
घर बैठे बैठे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें